Pankhuri Kumari   (पंखुड़ी कुमारी (pankhurikumari.com))
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Joined 8 September 2017


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21 APR 2023 AT 21:08

कुछ भी तो नहीं जो साथ जाएगा
फिर भी बटोरने से मन भरता नहीं
हरदिन ही कोई निकल रहा अकेला
फिर भी ये मन भला क्यों डरता नहीं ?

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21 APR 2023 AT 20:54

दोष उसमें है, गलती भी उसकी है
रे मन ! ठहर जा कितना भगायेगा ?
भरमा के, बहका के तू थकता नहीं?
दुनिया के कितने चक्कर लगवायेगा?

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21 APR 2023 AT 20:45

जितनी बची है
उससे ज़्यादा बीता चुके
पहले भी भागे
अब भी कहाँ है रुके

ये जीवन भी क्या
फिर से कोरा ही रहेगा
इस मन पे क्या कभी
श्याम रंग न चढ़ेगा

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30 MAR 2023 AT 11:18

नाम तुम्हारा जिह्वा पर
मर्यादा जीवन में उतरे
हे राम तुम्हारी करुणा
जन जन पर ही बिखरे

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24 OCT 2022 AT 17:52

छँटा विषाद,फैला प्रकाश
अवध में लौट आए हैं राम
हे पूरनकाम हे चिर सुखधाम
हमारे हृदय भी करें विश्राम

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30 JUN 2022 AT 3:33

संगत की रंगत तो चढ़नी ही है
हरकोई नहीं लंका का विभीषण
वाणी का, मन का, विचारों का
संग से ही तो होता सबका सिंचन

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22 JUN 2022 AT 4:38

हर चीज़ यहाँ निर्धारित
कुछ भी न होता संयोग
अपना ही किया होता हर
हानि लाभ मिलन वियोग

भटक रहे जाने कब से लिए
अपने अपने हिस्से का भोग
जोड़ ले पिता से टूटा नाता
यही तो मानव का परम योग

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22 JUN 2022 AT 4:04

चलते रहना ज़रूरी है
बाधाएँ आयी हैं तो जाएँगी भी
समंदर में नौका उतारा तो
लहरें तो इससे टकराएँगी ही

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22 JUN 2022 AT 3:54

हार के बैठ जाने से
मंज़िल कभी मिलती नहीं
सफ़र में रूक जानेवाला
रह जाता वहीं का वहीं

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9 MAY 2022 AT 4:13

दूर भी कहीं उसके होने भर से
जीना आसान हो जाता है
उसके जाने के बाद सहसा ही
सब बड़ा वीरान हो जाता है

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