आरती गोस्वामी   (©®✍️आरती अक्षय गोस्वामी)
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Joined 28 January 2018


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Joined 28 January 2018

हे गौरिसुत गणपति गणाध्यक्ष हे लम्बकर्ण हे लम्बोदर ,
हे प्रथम पूज्यनीय देव मेरे हे भालचंद्र प्रभु हे एकाक्षर ,
हे एकदंत हे गजकर्ण हे गजवक्र भुवनपति हे पीताम्बर ,
हे विद्यावारिधि वीरगणपति वरद विनायक हे विघ्नेश्वर ,
मन के देवालय में विराज कर तम को हर लो हे गौरीनंदन ,
अपने भक्तों पर कृपा करो प्रभु हे रुद्रज भूपति प्रथमेश्वर।।

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श्रृंगार किए सारे ही उसने , दिल में अपने साजन को बसाया था ,
बिंदिया कुमकुम रोली महावर और प्रीत का काजल लगाया था ,
हिय में पिया के आने की आस लिए निहार रही थी चंद्रमा को ,
रूप स्वयं का देखा जब आईने में काजल ख़ुद शर्माया था ,
हर आहट पर उसकी बढ़ बढ़ जाती थी धड़कन दिल की ,
न जाने आज पिया ने आने में क्यों इतना समय लगाया था ,
अचानक तेज हवा का एक झौंका आया सबकुछ उड़ा ले गया ,
श्रृंगार गिरे सब ही धरती पर , धवलता ने उसको गले लगाया था ,
चंद्रमा भी फिर लौटा फिर रातें तीज त्योहार की आती रहीं ,
सारे वादे तोड़ दिए सजना ने केवल धरती का कर्ज़ चुकाया था ,
निहार न सका मुखड़ा सजनी का , काजल की कोर न देख सका ,
सजनी का व्रत न तोड़ सका , एक सैनिक का फर्ज़ निभाया था ।।
©®आरती अक्षय गोस्वामी

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चहुँदिश अहिंसा और करुणा की व्याप्त आज दुर्गत है ,
छल कपट द्वेष ईर्ष्या की भावना चलती आ रही परंपरागत है ,
आज सबको है बैर सबसे और है एकदूसरे से जलन ,
आज के समय में आईए तथागत आज फिर आपका स्वागत है । ।

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कहीं मंदिरों में देवी तुल्य पूजी जाती हैं ,
कहीं जन्म से पहले ही मार दी जाती हैं ,
कहीं ये विमानों की सवारी कर रही होती हैं ,
कहीं दहेज रूपी दानवों की भेंट चढ़ जाती हैं ,
कहीं देश समाज का प्रतिनिधित्व कर रही होती हैं ,
कहीं ख़ुद के ही घर में अपनों द्वारा ही दबा दी जाती हैं ,
कहीं आने वाले पीढ़ी का सृजन करती हैं ,
कहीं ये भेड़ियों से भी नहीं बच पाती हैं ,
ये नारियाँ युगों युगों से आजतक भटकती हुई आईं हैं ,
त्रेता से कलियुग तक अपना अस्तित्व तलाशती आईं हैं ।।

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हे भारत माता के वीर सपूतों तुम्हें नमन है ,
हे सीमाओं के अड़िग प्रहरी तुम्हें नमन है ।
अपने रक्त से करते श्रृंगार तुम माँ माटी का ,
गौरव सदा बढ़ाते आए बलिदानी थाती का ।
राष्ट्र प्रथम का ध्येय लिए अपना जीवन जीते ,
निजस्वार्थ तजकर वसुंधरा के ये घाव हैं सीते ।
प्रतिकूल परिस्थितियों में सीमाओं पर खड़े हैं ,
रक्षा हेतु देश की बन प्रहरी शैलराट से अड़े हैं ।
निज प्राण आहूत करके कर्तव्य अपना निभाते ,
मातृभूमि का बन गौरव मान राष्ट्र का हैं बढ़ाते ।
संकट कोई भी आ जाए , पथ से ये हटते नहीं ,
मातृभूमि पर मरने वाले वीर कभी मिटते नहीं ।
भारती की आरती में निजभाल अर्पित कर देते ,
हर रिश्ते को जन्मभूमि पर समर्पित हैं कर देते ।
शीश नहीं झुकने देते भले बिन शीश वापस आ जाते ,
अंतिम श्वांस तक लड़ते फिर औढ़ तिरंगा आ जाते ।।

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उर में जला ज्वाल राष्ट्रभक्ति की अभिमान बढ़ा दिया परिणय माला का ,
हो गया साया भी दूभर शत्रु को जब इक इक चित्तौड़ की बाला का ,
तरस गया था खिलजी तब पाने को एक झलक माँ पद्मावती की ,
होम कर दिया नश्वर तन को वरण कर लिया था जौहर ज्वाला का ।।

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जब तक भागीरथी की लहरें कल कल छल छल गुंजार करे ,
कोटि कोटि भारत पुत्रों के उर में देशभक्ति ज्वाल अंगार धरे ,
अंबर तक लहरा आए तिरंगा सम्मुख अरि के ललकार भरे ,
तब जय जय हिन्दुस्तान करे जय जय भारत हुंकार भरे ।।

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सुप्त होते जा रहे स्वाधीनता मर्म हेतु ,
जन्मभूमि कर्मभूमि खातिर कर्म हेतु ,
नकार दिए चर्बी से बने हुए कारतूस ,
मंगल पांडे ने अपने सनातन धर्म हेतु ।।

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एकलिंग जी का कृपापात्र महाँकाल का रोष वही है ,
सिंह की दहाड़ वही विजयनाद का भी उद्घोष वही है ,
भगवा परचम लहराता हिन्द का वह दिनमान हिंदुआ ,
अरि दल में हाहाकार मचा दे प्रतापी जयघोष वही है ।।

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मान ही जब गुनहगार हमें ,
तो कोई भी दलील क्या देते ।

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