कहीं मंदिरों में देवी तुल्य पूजी जाती हैं , कहीं जन्म से पहले ही मार दी जाती हैं , कहीं ये विमानों की सवारी कर रही होती हैं , कहीं दहेज रूपी दानवों की भेंट चढ़ जाती हैं , कहीं देश समाज का प्रतिनिधित्व कर रही होती हैं , कहीं ख़ुद के ही घर में अपनों द्वारा ही दबा दी जाती हैं , कहीं आने वाले पीढ़ी का सृजन करती हैं , कहीं ये भेड़ियों से भी नहीं बच पाती हैं , ये नारियाँ युगों युगों से आजतक भटकती हुई आईं हैं , त्रेता से कलियुग तक अपना अस्तित्व तलाशती आईं हैं ।।
हे भारत माता के वीर सपूतों तुम्हें नमन है , हे सीमाओं के अड़िग प्रहरी तुम्हें नमन है । अपने रक्त से करते श्रृंगार तुम माँ माटी का , गौरव सदा बढ़ाते आए बलिदानी थाती का । राष्ट्र प्रथम का ध्येय लिए अपना जीवन जीते , निजस्वार्थ तजकर वसुंधरा के ये घाव हैं सीते । प्रतिकूल परिस्थितियों में सीमाओं पर खड़े हैं , रक्षा हेतु देश की बन प्रहरी शैलराट से अड़े हैं । निज प्राण आहूत करके कर्तव्य अपना निभाते , मातृभूमि का बन गौरव मान राष्ट्र का हैं बढ़ाते । संकट कोई भी आ जाए , पथ से ये हटते नहीं , मातृभूमि पर मरने वाले वीर कभी मिटते नहीं । भारती की आरती में निजभाल अर्पित कर देते , हर रिश्ते को जन्मभूमि पर समर्पित हैं कर देते । शीश नहीं झुकने देते भले बिन शीश वापस आ जाते , अंतिम श्वांस तक लड़ते फिर औढ़ तिरंगा आ जाते ।।
उर में जला ज्वाल राष्ट्रभक्ति की अभिमान बढ़ा दिया परिणय माला का , हो गया साया भी दूभर शत्रु को जब इक इक चित्तौड़ की बाला का , तरस गया था खिलजी तब पाने को एक झलक माँ पद्मावती की , होम कर दिया नश्वर तन को वरण कर लिया था जौहर ज्वाला का ।।
जब तक भागीरथी की लहरें कल कल छल छल गुंजार करे , कोटि कोटि भारत पुत्रों के उर में देशभक्ति ज्वाल अंगार धरे , अंबर तक लहरा आए तिरंगा सम्मुख अरि के ललकार भरे , तब जय जय हिन्दुस्तान करे जय जय भारत हुंकार भरे ।।
एकलिंग जी का कृपापात्र महाँकाल का रोष वही है , सिंह की दहाड़ वही विजयनाद का भी उद्घोष वही है , भगवा परचम लहराता हिन्द का वह दिनमान हिंदुआ , अरि दल में हाहाकार मचा दे प्रतापी जयघोष वही है ।।
चन्द्रमौलि जटाजूटधारी बाघाम्भरधारी का विवाह है , मशानवासी भस्मीभूत हर गणाधिकारी का विवाह है , अद्भुत अतुलनीय वर की ये आज बारात है सजी हुई , त्रिनेत्रधारी विरुपाक्ष कण्ठ हलाहलधारी का विवाह है ।।
भुजंग भूषण महारुद्र महा विकराल का विवाह है , अनाथों के नाथ शिव दुखियों के भाल का विवाह है , शक्ति का वरण करने हेतु ये आज बारात है सजी हुई , औघड़दानी कालों के काल महाकाल का विवाह है ।।