प्रेम क्या है कभी समझा है क्या
प्रीत के प्रेम में कोई लहजा है क्या
प्रीतम के प्रेम में तुम रंग जाना
दुर जा कर भी वापस घर ही आना
मेरी दुआ है की आप का प्रेम हमेशा अमर रहे
तुमने कहा अतिसुन्दर है वो
तो हमेशा सुंदर ही रहे
तुम उस पे मोहित हो तो मोहित ही रहो
प्रेम गीत है दो दिलों के मीत का तो मीत ही रहे
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मानव है तु मानवता काम कर
दानव बन कर तु इसे बदनाम न कर
धार्मिकता की आड़ में मानवता को यू न ठोस पहुँचाया कर
आध्यात्मिकता और नैतिकता में मानवता से बड़ा कोई कर्म नहीं
विधाता का है पुत्र यही मानवता का है शूत्र यही
हो नर संहार यहाँ
मानवता हो रहा कलंककार यहाँ
दानवता के इस दौर में मानवता का रुप दिखाया कर
तु गीत प्रेम का गाया कर मानवता का धर्म निभाया कर-
मुझे सुहाने लगते है वो नयन , गुस्से में जब तुम होती
अपलक तुम्हे निहारा करता जब तुम जगी जगी सी सोती ।
किन्तु सजीले नयनों से जब आँसू झरझर झरने लगते
लगता है जैसे अम्बर से बरस रहे मनभावन मोती ।।-
छली गई नारी फ़कत ,
कह देवी भगवान ।
सहनशीलता को मिला ,
पग -पग पर अपमान ॥
- नीतू सिंह भदौरिया-
शब्द ही सिर्फ़ व्यक्त कर पाते
तुम से
तो कितना अच्छा होता
हम होते , तुम होती
और ना होती
ये ग्लानि
कि शब्द ही सिर्फ़ व्यक्त कर पाते
तुम से
तो कितना अच्छा होता
पिछली स्मृतियों को किनारे रख
इस बार नयी स्मृतियाँ
शब्दों में उभर आना चाहती है
कहती है
शब्द ही सिर्फ़ व्यक्त कर पाते
तुम से
तो कितना अच्छा होता ।-
खुदा का अप्रतिम कृति हो तुम
हर घरों को करे रौशन वो दीप ज्योति हो तुम
कभी माँ कभी बहन कभी बहु कभी बेटी
हर रूपों में खुदा का एक नया रुप हो तुम
विश्व कि संचालनी हो तुम
कोमल पर शक्तिशालनी हो तुम
तुम से ही तो जग निर्मित है
परहित के लिये अर्पित हो तुम
हे नारी !
प्रेम हो तुम ,स्नेह हो तुम
वात्सल्य हो तुम ,दुलार हो तुम
बच्चो के लिये माँ का प्यार हो तुम
हे नारी !
अपरम्पार हो तुम-
बूँदों से नहीं
पसीने से नहाता है ।
मेहनतकश आदमी "मजदूर "ही कहलाता है ।-
अब से हमारा नाम ही रहेगा लोगों के जहन में
हम तो रह न सके लोगो के बीच-
अब से हमारा नाम ही रहेगा लोगों के जहन में
हम तो रह न सके लोगो के बीच-