यशी बरुआसागरी   (स्वछंद लेखनी (यशी)✍️)
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Joined 23 March 2018


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Joined 23 March 2018

खरे तराजू पर एक दिन तौलेगा।
मैं खामोश हूं मगर वक्त बोलेगा।

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महकती मेंहदी से यूं ही हाथ सजाती रहूं,
आखिरी सांस तक हर कसम निभाती रहूं,
विनती है विधाता से बन्धकर प्रेम-बन्धन में,
यूं हीं सौभाग्य से सजकर तीज मनाती रहूं।

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शहरों में हर रोज़ यूं बेतहाशा भागती है ज़िन्दगी।
ज़रा भी रुकती नहीं है, महज़ हांफती है ज़िन्दगी।
गर देखना चाहते हैं ज़िन्दगी की ज़िन्दादिली साहब,
तो गांव में देखिए, कैसे सुबह जागती है जिन्दगी।

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ऐ जिन्दगी! सुन, रुक तो जरा धीरे चल।
जी भर जरा जी तो लूँ मैं ये सुहाने पल।
कौन जाने मौसम यूं बरसे न बरसे कल।
आँख दिखा के बादल यूं ही जाएं निकल।
रोक लूँ बादलों को भर लूँ बूंदों से आंचल।
समेट लूँ ,सहेज लूँ दिल में ये सुनहरे पल।
ऐ जिन्दगी! सुन, रुक तो जरा धीरे चल।
जी भर जरा जी तो लूँ मैं ये सुहाने पल।

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आप जाते हैं,रह जातीं तन्हाईयां।
हमको डसतीं हैं प्रियवर ये तन्हाईयां।
आप निर्मोही हैं, छोड़ जाते हमें।
लौट आएंगे कहती हैं तन्हाईयां।

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बिना आपके एक पल काटने में, मानो कई पहर लग जाते हैं।
आप साथ हों तो यकीन मानिए, वक्त को भी पर लग जाते हैं।

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🙏सलाम🙏
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
लहू से लिख गया वो इंकलाब की दास्तान।
सलाम शहीद-ए-आजम,शेर-ए-हिन्दुस्तान।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

शहीद-ए-आजम सरदार भगतसिंह जी
की जयंती पर उनको शत्-शत् नमन🙏

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सुखी, शतायु, समृद्ध,सम्पन्न रहें।😊
प्रखर, प्रभावी, प्रतिभासम्पन्न रहें।😊
अपूर्व,अद्वतीय आभा हो आपकी,😊
प्रार्थना है प्रिय प्रतिपल प्रसन्न रहें।😊

आपको जन्मदिवस कीं अनेकानेक
🙏शुभकामनाएं🙏

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नामुमकिन से लगते थे जो कभी,
सपने वो पूरे हो गये देखते देखते।
हंसी,नमीं,और मोहब्बत के साथ,
सात माह पूरे हो गए देखते देखते।

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थी बेफिक्र अब फिक्रमंद हो गयी मैं
ऐसा लगता कि अब बड़ी हो गयी मैं

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