कुछ बेरोजगार हुए, कुछ मुफ़लिसी का शिकार हुए..
वक़्त के इस अफ़रा-तफ़री में जाने कितने लाचार हुए।।-
ख़ुदगर्ज़ियों का एक बाज़ार है ये दुनिया
मनमर्ज़ियों का एक मज़ार है ये दुनिया
इसी में घर बनाने को लड़ रहें हम सब
मौत का बस एक इन्तज़ार है ये दुनिया
ना किसी की हुई और ना ही होगी कभी
क़िस्मत से बस थोड़ी लाचार है ये दुनिया
किसी की ख़ुशी से कोई ख़ुश नहीं होता
सबकी बेइज्ज़ती का अख़्बार है ये दुनिया
ग़रीब बस ग़रीब हैं और अमीर बस अमीर
सिर्फ़ दौलत का एक व्यापार है ये दुनिया
यहाँ किसी के साथ कुछ भी होना सम्भव है
बेझिझक ही धोख़ा देती हर बार हे ये दुनिया
मुसीबत में अपने भी छोड़ देते हैं "आरिफ़"
बस ठोकरों से भरा एक संसार है ये दुनिया
इज्ज़त सबकी "कोरा काग़ज़" ही होती है
मगर झूठ लिखने का आधार है ये दुनिया-
उम्र की उस स्थिति में आ गया हूँ
कि बुढापे में किसी बच्चे सा हो गया हूँ
चाहता हूँ कि कोई संभाले मुझे बच्चे की तरह
पर किसी के पास वक़्त नही,व्यर्थ जो हो गया हूँ
छोटा हो गया हूँ इतना कि घुटनों पर चलता हूँ
बड़ा हूँ इतना कि कदमों पर चला नही जाता
जिंदगी ने मुझे कितना लाचार बना दिया
अब निवाला भी उठाकर खाया नही जाता
पर ये मेरी पीड़ा का कारण नही,
दुख इतना सा है कि,,,,,
एक उम्र गुजार दी मैंने जिनका जीवन सवारने में,
आज मेरी उस औलाद से मेरा बुढ़ापा उठाया नही जाता-
नफ़रत की आग में 'अपनो' से ही कितना लाचार हूँ ।
शैतानों के इस शहर में मैं मोहब्बत का दुकानदार हूँ ।
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चित्ता भस्म से तेरा
नित नित हो श्रृंगार ,
काल भी तेरे आगे
हाथ जोड़ खड़ा लाचार ।
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पता है इंसान विवश कब होता है
जब वो किसी को खुद से ज्यादा महत्व दे
और वो इंसान उसको कुछ समझे हीं ना
तब आदमी लाचार भी होता है और विवश भी-
यहां हर कोई माहिर है अपने हुनर से
चंद खरीददारों की बातों से
ख़ुद को कमज़ोर मत मानो,
जिंदगी हर पल एक नया मोड़ लेती है,
कभी ठोकर से गिर जाये जुनूं ज़मी पर
तो ख़ुद को लाचार मत मानो,
अभी तो बाकी है जितने के लिए सबकुछ,
अभी तो हार मत मानो...-
जो पढ़े लिखें हैं, जिनके हाथ में है "कलम",
फिर भी ना लिखते देश की "बदहाली" पर,
ना "गरीबों" की लाचारी पर,
ना "औरतों" के अत्याचार पर,
ना "सत्ता" के फरेब पर,
तो जिनके "हाथ" में है कलम,
वहीं कलम थामने वाला "प्रत्येक हाथ" सारे "पीड़ितों" के
परिस्थितियों के लिए हैं "सर्वाधिक गुनहगार" !!!
(:--स्तुति)-
हम इश्क़ करते-करते बे-ज़ार हो गए हैं
दिल टूटने के अब तो आसार हो गए हैं
पहचान थे कभी हम मुस्कान की लबों पर
रिश्ते के अब मरासिम लाचार हो गए हैं
उनकी वफ़ा के चर्चे मशहूर थे गली में
अब ज़ख़्म देने वाली तलवार हो गए हैं
वो सिर्फ़ थे हमारे हक़ था हमारा उन पर
गुस्से में वो भी रद्दी अख़बार हो गए हैं
आते हैं ख़्वाब उनके मिलते हैं हम ख़ुशी से
दुनिया में वो किसी के घर-बार हो गए हैं
क्या ख़्वाब क्या हक़ीक़त सब झूठ हो गया अब
जब जान कहने वाले ख़ूँ-ख़्वार हो गए हैं
बस जिस्म से मोहब्बत 'आरिफ़' कभी न करना
ऐसा किया है जिसने मक्कार हो गए हैं-
हद्द हो गई ये तो, ये चंदा लेने वाले की इंसानियत कहा गई, वो गरीब बाबा से बस एक रुपए लेकर उसकी आस्था और उसकी गरीबी दोनों की कदर कर लेता !!ऐसे लोगों के लिए घर बनाना चाहिए लेकिन महानता तो देखो यह लोग भगवान का घर बना रहे हैं !!🙏🙏
जिन आदमियों को दो वक्त की रोटी के लाला पड़ रहे हैं उनसे पैसे मांगे जा रहे चंदा के नाम पर,,टोटल झूठी मनगड़त कहानी का झूठा ओर नपुंसक किरदार है !!
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