लिखने की कोशिश तो थी ,अल्फाज़ नही मिल रहे थे
तमन्ना पूरी थी दिल में पूछ ने की
मगर सवाल नही मिल रहे थे,
स्याही इंतजार में रहा कि कलम कुछ तो बोलेगा
दिल में दबी जज़्बात कम से कम पन्नों पे तो खोलेगा,
यूंही कट गया सहर बारी अब भरी दुपहरी की
बड़ा सख्त रहा वक़्त,
अब इंतजार है तो बस लहजों में नरमी की...-
हजारों ख्वाहिशों में जीते है
हजारों बंदिशों में गमों को सीते है,
अनकही कहानी है मेरे पन्नों का
कभी हसाता है तो कभी है छुपाता
स्याही है सुखता है तो कभी है छपता,
जान हलक में है फिर भी नाक से ही सांस लेते है
खुददारी का शौक है साहब
खड़े है कगार पे फिर भी ईमान के साथ जीते है
ये जिंदगी समंदर है ख्वाहिशों का
कभी इस पार तो कभी उस पार
माझी हूं तूफानों का भले डूबे कश्ती मेरी
फिर भी तैरने को हाथ नहीं कपकपाते हैं ....।-
उसकी हर बातों को मैं अल्फाज़ लिखूंगा
उसे मेरे कहानी में हर दफा मुमताज़ लिखूंगा,
कुछ इस तरह
कागजों में दिल के अरमान लिखूंगा
मैं भले ही रहता हु उससे से मिलों दूर
फ़िर भी उसके इश्क़ में
खुद को परिस्तार लिखूंगा...-
ज़िंदा रहे तो लौटेंगे
वरना किसी दीवाल पर अपनी भी तस्वीर टंगी होगी,
कागज के टुकड़ों में अपनी काया बंधी होगी
हवा के झोकों से हर रोज उसकी बात होगी,
अधूरी ख्वाहिशों के साथ अपनी भी सवालात होगी
कोई अपना छुएगा तो होगी आखें नम
रहेंगे तस्वीर में मगर उस में भी जज्बात होगी,
धड़कते रहेंगे किसी किसी के यादों में किसी रोज
वरना अपनी यादें तो किसी पन्ने पे सुखी स्याही होगी
ज़िंदा रहे तो लौटेंगे,
वरना किसी दीवाल पर अपनी भी तस्वीर टंगी होगी...-
बस कुछ दिन ओर..
फिर वहीं मैं और मेरी अधूरी ख्वाहिशें,
मिलों दूर दिल के किसी कोने में दबी होगी, डरी होगी
शायद ज़िंदा होगी भी की नहीं पता नहीं
आख़िर मेरी ज़िंदगी कब तक है?
दूर बहत दूर फिर वहीं मैं और मेरी अधूरी ख्वाहिशें...-
एक अनजान राह पर चल दिये
जिंदगी के कई सारे रंजिशें ढूंढने टहल दिये,
राहों में कई नये चेहरे मिले
उनमे से कईयों के राज गहरे मिले,
मैं चलता रहा, सूरज ढलता रहा
कुछ मौके मिले, कुछ लोग अनोखे मिले
कुछ चाहते अधूरी, कुछ मन्नतें हुई पूरी,
मैं चलता रहा, सूरज ढलता रहा
हर रोज एक नया सवेरा,उनमें कुछ दर्द का बसेरा,
कुछ लिखावटे तकदीर के, कुछ बनावटे तस्वीर के,
मैं चलता रहा, सूरज ढलता रहा...-
इश्क़ करने के उम्र में तन्हाइयों के साथ काट रहा हू
इश्क़ लिखू या फिर बेवफ़ाई
जज़्बात को तो पनाह तक न मिला
गुज़रते लम्हों को कोरे कागजों में बाट रहा हू,
बड़ी बेदर्द सर्द है जवानी का,तूफ़ान बर्फ़ में जम रहा है
ग़मों का लहर तो देखो
तन्हा रातों में रूठे फ़िजाए धड़कनों में थम रहा हैं...-
सुना हैं आज कल वो हस्ती बहत है ,
जरा बताओं मेरे बारे में
बोलना उसकी कुछ उधार बाकी हैं ,
अभी तो कलम वाले हाथों ने AK-47, AKM पकड़े हैं ,
अभी तो उसे मेरे सीने में दागीं हुई
हर एक खंजर का हिसाब देना बाकी हैं...
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मैं जीने की वजह ढूंढने बाजार निकला
चलते राहों पर कई माजार निकला,
कई संत-महात्मा निकले
उसमें से बहत दिल हारे मजनू निकले,
लबों पे दबी दबी सी मुस्कान रख्खे थे बहतों ने,
दिल में कुछ अंगारे सुलगती रहीं
जिंदगी चला करती थी पहले दर्द में अब दर्द में ज़िन्दगी हैं गुजर रहीं,
कुछ आदतें थी उस बेवफ़ा को याद रखने की,
वक़्त के पैमानों में वो सारे सुधर रही है
अब उसके न होने से कोई गिला नहीं, शिकवा नहीं
लगता है लहजा-ए-इश्क़ तजुरबे की ओर कदम बढ़ा रही हैं....-
नींद आजकल ख़फ़ा सी हैं
यादें आजकल हमारी वफ़ा सी है,
आँखें है तो हमारे सपने किसी और के लिए
दिल है तो हमारा लेकिन इनमे धड़कती ज़ज्बात
किसी और के लिए,
सासों में हमेशा किसकी खुशबू है
जो जानी पहचानी है,
फ़िज़ाओं के झोंके बताते हैं
वो गुलाब जानी पहचानी हैं...-