(रुतबा)
गुमनाम हूँ मैं बेनाम नहीं
लो आज से अपनी पहचान यही
एक शांत सुबह का साग़र हूँ
कल उठेगा जिसमें तूफ़ान कही।
तू मुस्कुराले चाहे जितना
मैं पसीनें से प्यास बुझाऊंगा
बनेगा छाला मोती जिसदिन
मैं उसदिन नायब कहलाऊंगा।
हर सोच में मौज के रंग समाये
हुए जन्म-जात से लोग पराये
बादल से निकली रिमझिम बरखा
आँख का पानी आँसू कहलाये।
संगीत है साधक सारथी मन का
अफवाहों में क्या रखा है?
दिन ढलने पर ख़ामोशी सुनना
की कैसे हर सूर सजता है।-
_रुतबा_
रुतबा-ए-हुस्न गज़ब था उनका
और हम अंधे हो गए...
वजूद सांभालाने से पहले ही...
इश्क़ मे डूबकर गंदे हो गए.......
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गरीब होना ही गुनाह है जमाने मे
शोहरत से ही रुतबा है जमाने मे
झूठ फरेब का जो हुनर जानता है
उसकी ही कद्र है ईस जमाने मे-
रुतबा,ओहदा,काग़ज़ी टुकड़े,ये चीज़ें रद्दी है तमाम
एक तेरे न होने से मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लगता;-
मान बदलते देखा मैने, वक़्त बदलते देखा
है,,,।
रोज प्यार से बतियाते, वो शख्स बदलते देखा है,,,।
होठों की मुस्कान से लेकर, अश्क बदलते देखा है,,।
क्या रुतबा,क्या बेईमानी मैने, तख्त बदलते देखा है,,,।-
सुना है आज कल बड़ा ग़ुरूर रहता उनको
अपने रुतबे अपनी खूबसूरती पर ।।
मगर उन्हें ये कौन समझाए यारों....
ये रुतबा ये खूबसरती उनकी सब उनपे लिखी
मेरे लफ़्ज़ों का कमाल है ।।-
रुतबा तो खाँमोशियों का होता है,
अल्फ़ाज़ का क्या है साहब,,
वो तो बदल जाते हैं,
अक्सर हालात देखकर...
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"मोहब्बत का रुतबा तुम क्या जानो जानम
तुम्हारे सीने में दर्द है तो मेरी आंखों में भी इश्क़ है"।-
ये कह के गयी
किसी ख़्वाहिश की उम्मीद में ना रहना !!
मेरे रुतबे के आगे अधूरा हो जाए चाँद भी
ना होगा पूरा ख़्वाब कभी ये याद रखना !!
जिसे सौंप दोगे कोई मिलेगा ही नहीं
ये ख़्यालों का मौसम मुझ तक है रहना !!
मैं हूँ सुबह के हवाले पलकें खुलते ही
तुम आँखों में कुछ सजाए ना रखना !!-