न कोई श्रृंगार..है बस नजाकत,मासूमियत और भोलापन,
कहां से सीखा है तुमने सादगी से यूँ खुदको सजा लेना !!
मुरीद कर देता है मुझको,हर लहजा......हर अदाएं तुम्हारी,
कातिलाना लटों को चेहरे पे लाके..यूँ उंगलियों से हटा लेना!!
कि किस कदर कहर ढाया है मुझ पर....क्या बताएँ तुमको,
हैं क़यामत माथे पर बिंदी व आंखों में यूँ काजल लगा लेना !!
मेरी चाहत व हर ख्वाहिश की ख्वाहिश तुम क्यों न बनो,
है आरजू तुम्हे दिल में,रूह में तो कभी आंखों में बसा लेना!!
कि तुम धड़कन,इबादत,आदत मेरी,बताओ तुम्हें क्यों न चाहे,
तुम्हें देखने का मतलब...है सुकून व अरमां कोई जगा लेना !!
तुम प्रिय कोई ख्वाब हो,एहसास हो.......नजरों कि प्यास हो,
रब से..दिल मांगता है,चाहता है..तुम्हें बस अपना बना लेना !!-
||क्षत्रियाज्जातमेवं तु विद्याद्वैश्यात्... read more
दिल को न जाने कब से,मैंने तसल्ली देकर मना रखा है,
पता नहीं खुद को प्रिये तुमने,कहाँ आख़िर छुपा रखा है!!
कि मेरे रब्बा तू कुछ तो कर,जाकर मेरी खबर दे उनको,
हमने एक चेहरा सदियों से इंतेज़ार में उदास रखा है!!
लोग पूछते हैं ,कि क्या लिखते रहते हो हांथों पे अपने,
क्या बताएं,पूरा हाँथ हमने शिकायतों से भर रखा है!!
कि मेरी हर शाम गुज़रती है,ढलते सूरज को तकते हुए,
हमने खुद को प्रिये,तुम्हारे लिए हीं तो बचा रखा है!!
जो मिले फूर्सत तो देखना,कभी आसमान की तरफ,
एक चिट्ठी तुम्हारे लिए कबूतर के हांथों भेज रखा है!!
कि काश तुम कहीं से आओ और कहो कैसे हो नीरू,
चलो मुस्कुराओ, ये क्या हाल अपना बना रखा है!!-
आख़िर किस सरहद कि हैं ये मोहब्बत न जानें,
हो जाती है,होती नहीं ये किसी के बस की!!
कि लिखता कौन है कविता,ग़ज़लें यहां,
शायरी,नज़्म कहाँ हैं किसी के बस की!!
तुम्हें सोचता हूँ तो धड़कता है ये दिल मेरा,
अब तो मेरी सांसें भी नहीं है मेरे बस की!!
तुम्हारी सादगी,झुमकें,आंखों को क्या कसूर दूं,
इनसे बचा न कोई और न है ये मेरे बस की!!
मोहब्बत कि हद क्या होती है मैं नहीं जानता,
एक तो ये एहसास व न हीं कुछ है मेरे बस की!!
कि एक हीं चाहत तुम्हें पाने,तुम्हें ताउम्र चाहने कि,
तुम्हारे सिवा कुछ चाहना,अब नही है मेरे बस की!!-
सबसे मुझको साथ नहीं सुनने को बस बातें मिले हैं!!
अक्सर मुझको तन्हा बस रातें हीं मिले हैं!!
कि सोचता तो हूँ फूल को फूल हीं समझूँ....
पर क्या करूं फूल के नाम पर मुझको बस कांटे हीं मिले हैं!!-
तेरी आंखों में वो पढ़
रहा हूँ मैं!!
तुझे दिल में बसाकर तेरे नाम के
साथ अपना नाम गढ़
रहा हूँ मैं!!
कि कुछ तो ज़रूर है तेरे मेरे
दरमियान...
यूँ हीं नहीं तुझे प्रेम और तेरी ओर
ऐसे बढ़ रहा
हूँ मैं!!-
कि ये कहीं बिखर
न जाए!!
रखो अपने पास मुझको,मंजिल
तुम हो फिर ये नीरू
किधर जाए!!
कि बना लो न यारा अपने लबों
कि हंसी मुझको .....
जो आये लबों पे हंसी तेरी तो
तेरी सादगी और ज्यादा
निखर जाए!!-
हो शाम का सुहाना मौसम और
हम दोनो यूं हीं साथ में
बैठे रहे।।
सिली सी कोई हवा चले,तुम कंधे
पर सर रखो और बात दिल
की यूं हीं होती रहे।।
कि चुमूं तेरा माथा,थामू तेरा
हाथ मैं उम्रभर के
लिए....
तेरी इज्जत हो पहला प्रावधान मेरा
और ये हसीं तेरे लबों की यूं हीं
सदा बनी रहे।।-
दिल के हर जज़्बात मुकम्मल
हो जाए।।
रब से जो मांगी है मैंने वो
अरदास मुकम्मल
हो जाए।।
कि उनको रखूंगा अपनी सांसों
में बसाकर मैं...
वो जो आए तो ख्वाहिश क्या,
हर ख़्वाब मुकम्मल
हो जाए।।-
सुनो कभी-कभी ख़ुद हीं समझ जाओ ना
प्रिये दिल की बात मेरी ....
हर बार लबों से कुछ कहना शब्दों में कुछ
लिखना ये ज़रूरी है क्या ...-
थोड़ी मासूम थोड़ी तीखी,थोड़ी
ज़हर सी लगती
हो मुझको ।।
जो मुझे बहाकर ले जाए,समुन्दर
की वो लहर सी लगती
हो मुझको।।
कि ढूँढा तुझको हर जगह हर
क़स्बे में पर तू कहीं मिली
नहीं मुझको ।।
शायद कहीं दूर है ठिकाना तेरा
मेरे शहर की प्रिये,तुम नहीं
लगती हो मुझको।।-