दिल को न जाने कब से,मैंने तसल्ली देकर मना रखा है,
पता नहीं खुद को प्रिये तुमने,कहाँ आख़िर छुपा रखा है!!
कि मेरे रब्बा तू कुछ तो कर,जाकर मेरी खबर दे उनको,
हमने एक चेहरा सदियों से इंतेज़ार में उदास रखा है!!
लोग पूछते हैं ,कि क्या लिखते रहते हो हांथों पे अपने,
क्या बताएं,पूरा हाँथ हमने शिकायतों से भर रखा है!!
कि मेरी हर शाम गुज़रती है,ढलते सूरज को तकते हुए,
हमने खुद को प्रिये,तुम्हारे लिए हीं तो बचा रखा है!!
जो मिले फूर्सत तो देखना,कभी आसमान की तरफ,
एक चिट्ठी तुम्हारे लिए कबूतर के हांथों भेज रखा है!!
कि काश तुम कहीं से आओ और कहो कैसे हो नीरू,
चलो मुस्कुराओ, ये क्या हाल अपना बना रखा है!!
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