ये शायरियां कुछ नहीं ख्वाहिशों की कब्रगाह है
मैंने ख़ुद को अपनी ही शायरियों में दफ़नाया है-
इंदौर
ख़्वाबों के पंख कुतर दिए ख़्वाहिशो की टांगें तोड़ दी
जिस तरफ़ जली शमा मैंने हवा भी उस तरफ मोड दी
इक तरफ़ तो तेरे दीदार से भागता रहा था ये मेरा दिल
जब हुआ मयस्सर दीदार तेरा मैने सारी कसमें तोड़ दी
किसी को हक़ नहीं की तेरे किरदार पर उंगली उठाए
जब उठी नज़रे तेरी तरफ़ मैंने वो सारी आंखें फोड़ दी
मान ले की प्रेम की डोर नहीं जुड़ती टूटने पर ए 'राज'
फिर क्यों तूने बिखरी हुई डोरियों को फिर से जोड़ दी-
मैं घना पेड़ हूं हरेक की मंज़िल के राह किनारे
कोई वहां थकान मिटा सकता है ज़िंदगी नहीं-
तुम चाह कर भी मेरे वज़ूद को न मार पाओगे
मैं उस अधूरी कहानी का मुकम्मल क़िरदार हूं-
ये कैसी हालतों का शिकार हो गया हूं
ख़ुद अपनी ही खुशियों को खा गया हूं
मेरे साथ में बैठे तो तुम्हें सुनाऊं दास्तां
कहां से चला था और कहां आ गया हूं-
कमरे से निकलने लगा हूं अब तैयार होकर मैं
क्या पता किस रास्ते पर मौत से मुलाक़ात हो जाए-
गुलाबों की कब्र पर मैंने इश्क़ को पनपते देखा है
आइने में खड़े शख़्स को इश्क़ में तड़पते देखा है
महफ़िल में आया वो मेरा पसंदीदा रंग पहन कर
उस शख़्स को मेरी इक नज़र को तरसते देखा है
जिस शख़्स हाथों से जला मेरा इश्क़ का दरख़्त
उस शख़्स के जिगर में मैने इश्क़ पनपते देखा है
मेरे ख़्वाबों ख्यालों से दूर भागता था एक शख़्स
वो ही शख़्स को मेरे हालातों से उलझते देखा है;-
इश्क़ में नहीं यूं उनके शौक में हुआ हूं मैं बर्बाद
उन्हें इश्क़ नहीं था उन्हें बस इश्क़ का शौक था;-