रद्दी काग़ज़   (रद्दी काग़ज़)
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सिर्फ़ काग़ज़ रद्दी है, अल्फ़ाज़ में वो है और वो नायाब 🙏
इंदौर
Joined 18 May 2020


सिर्फ़ काग़ज़ रद्दी है, अल्फ़ाज़ में वो है और वो नायाब 🙏
इंदौर
Joined 18 May 2020

ये शायरियां कुछ नहीं ख्वाहिशों की कब्रगाह है
मैंने ख़ुद को अपनी ही शायरियों में दफ़नाया है

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ख़्वाबों के पंख कुतर दिए ख़्वाहिशो की टांगें तोड़ दी
जिस तरफ़ जली शमा मैंने हवा भी उस तरफ मोड दी

इक तरफ़ तो तेरे दीदार से भागता रहा था ये मेरा दिल
जब हुआ मयस्सर दीदार तेरा मैने सारी कसमें तोड़ दी

किसी को हक़ नहीं की तेरे किरदार पर उंगली उठाए
जब उठी नज़रे तेरी तरफ़ मैंने वो सारी आंखें फोड़ दी

मान ले की प्रेम की डोर नहीं जुड़ती टूटने पर ए 'राज'
फिर क्यों तूने बिखरी हुई डोरियों को फिर से जोड़ दी

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न हक़ था और न हक़ीक़त थी तुम मेरी
ज़रूरी थी और अब भी ज़रूरत हो मेरी

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मैं घना पेड़ हूं हरेक की मंज़िल के राह किनारे
कोई वहां थकान मिटा सकता है ज़िंदगी नहीं

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तुम चाह कर भी मेरे वज़ूद को न मार पाओगे
मैं उस अधूरी कहानी का मुकम्मल क़िरदार हूं

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मैं उसके लिए अहम था
बस यही मेरा वहम था;

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ये कैसी हालतों का शिकार हो गया हूं
ख़ुद अपनी ही खुशियों को खा गया हूं

मेरे साथ में बैठे तो तुम्हें सुनाऊं दास्तां
कहां से चला था और कहां आ गया हूं

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कमरे से निकलने लगा हूं अब तैयार होकर मैं
क्या पता किस रास्ते पर मौत से मुलाक़ात हो जाए

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गुलाबों की कब्र पर मैंने इश्क़ को पनपते देखा है
आइने में खड़े शख़्स को इश्क़ में तड़पते देखा है

महफ़िल में आया वो मेरा पसंदीदा रंग पहन कर
उस शख़्स को मेरी इक नज़र को तरसते देखा है

जिस शख़्स हाथों से जला मेरा इश्क़ का दरख़्त
उस शख़्स के जिगर में मैने इश्क़ पनपते देखा है

मेरे ख़्वाबों ख्यालों से दूर भागता था एक शख़्स
वो ही शख़्स को मेरे हालातों से उलझते देखा है;

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इश्क़ में नहीं यूं उनके शौक में हुआ हूं मैं बर्बाद
उन्हें इश्क़ नहीं था उन्हें बस इश्क़ का शौक था;

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