शिकायतें बहुत थीं पर बताकर क्या करताचाहत थी ये अपनी ज़िंदगी तेरे नाम करताआज़ाद किया उस कबूतर को कैद से मैंनेअब उस बंद कैदी का भला मैं क्या करतानज़रों में बस एक चेहरा सपने भी बस तेरेये बीमारी तो नहीं फिर इलाज़ क्या करतावो मशवरा देता है खुश रहने की मुझ कोतेरे होने से भला इन गमों का क्या करता पनाह मिली नज़रों में अनजान शख़्स कोअब मैं उन मुरझाई आंखों का क्या करताइसे गम न कहो अब तो ये हैं रोजगार मेराबिन गम के ज़िंदगी बसर कैसे क्या करता -
शिकायतें बहुत थीं पर बताकर क्या करताचाहत थी ये अपनी ज़िंदगी तेरे नाम करताआज़ाद किया उस कबूतर को कैद से मैंनेअब उस बंद कैदी का भला मैं क्या करतानज़रों में बस एक चेहरा सपने भी बस तेरेये बीमारी तो नहीं फिर इलाज़ क्या करतावो मशवरा देता है खुश रहने की मुझ कोतेरे होने से भला इन गमों का क्या करता पनाह मिली नज़रों में अनजान शख़्स कोअब मैं उन मुरझाई आंखों का क्या करताइसे गम न कहो अब तो ये हैं रोजगार मेराबिन गम के ज़िंदगी बसर कैसे क्या करता
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मैं चाहता तो बतला देता गुजरी आपबीती मगरमुझसे खामोशियों का दरवाज़ा तोड़ा नही गया; -
मैं चाहता तो बतला देता गुजरी आपबीती मगरमुझसे खामोशियों का दरवाज़ा तोड़ा नही गया;
लौट आया ये सोचकर वो मुझे रोकेगारोया नहीं मैं कोई देखेगा क्या सोचेगाजला दी बहुत सी गज़लें लिखकर मैंनेडर गया कोई पढ़ लेगा तो क्या सोचेगामिटा देता हूं तकिए से आंसू के निशानगुजरी हर रात इम्तेहान में यही सोचेगाजागता हूं रात भर बुझा कर चराग कोजलता चराग कोई देखेगा क्या सोचेगाकहते हैं लोग जाऊं तेरी शादी में मैं भीसोचता हूं तू मुझे देख कर क्या सोचेगा;— % & -
लौट आया ये सोचकर वो मुझे रोकेगारोया नहीं मैं कोई देखेगा क्या सोचेगाजला दी बहुत सी गज़लें लिखकर मैंनेडर गया कोई पढ़ लेगा तो क्या सोचेगामिटा देता हूं तकिए से आंसू के निशानगुजरी हर रात इम्तेहान में यही सोचेगाजागता हूं रात भर बुझा कर चराग कोजलता चराग कोई देखेगा क्या सोचेगाकहते हैं लोग जाऊं तेरी शादी में मैं भीसोचता हूं तू मुझे देख कर क्या सोचेगा;— % &
काश हो अजनबी सी मुलाक़ात तुमसेमिलाऊं हाथ और हाल पूछ लूं तुमसे;— % & -
काश हो अजनबी सी मुलाक़ात तुमसेमिलाऊं हाथ और हाल पूछ लूं तुमसे;— % &
हो रही एहसासों की कमी मुझमेंभरा है आंसुओं का सागर मुझमेंमुझे कहता है अब हर कोई बुराजैसे तेरे सारे ऐब भर गए मुझमेंतेरी आखिरी बातें याद करता हूंदेखता हूं कोई मर गया है मुझमेंमैं तन्हाई पसंद इंसां न था कभीतुम इस कदर घर कर गई मुझमेंतेरी शक्ल दिखाई दे अब हरदमऔर कुछ देखूं जज़्बा नहीं मुझमें;— % & -
हो रही एहसासों की कमी मुझमेंभरा है आंसुओं का सागर मुझमेंमुझे कहता है अब हर कोई बुराजैसे तेरे सारे ऐब भर गए मुझमेंतेरी आखिरी बातें याद करता हूंदेखता हूं कोई मर गया है मुझमेंमैं तन्हाई पसंद इंसां न था कभीतुम इस कदर घर कर गई मुझमेंतेरी शक्ल दिखाई दे अब हरदमऔर कुछ देखूं जज़्बा नहीं मुझमें;— % &
झुकी हुई नजरों से बंद आंखों तकएहसास मरते नहीं मौत आने तकजुगनू से पूछो कोई दिन का दुःखबाहर निकलते नहीं रात आने तकजम गया मुकद्दर पत्थर बन गया मैंमैं यहीं रहूंगा तेरे नदी हो जाने तकचाहत है डूब मरूं बिन बहे आंसू मेंरुका हूं इनका समुंदर हो जाने तक; -
झुकी हुई नजरों से बंद आंखों तकएहसास मरते नहीं मौत आने तकजुगनू से पूछो कोई दिन का दुःखबाहर निकलते नहीं रात आने तकजम गया मुकद्दर पत्थर बन गया मैंमैं यहीं रहूंगा तेरे नदी हो जाने तकचाहत है डूब मरूं बिन बहे आंसू मेंरुका हूं इनका समुंदर हो जाने तक;
उम्र गंवाई कुछ ख़्वाब टूटे फिर वो शख़्स छूटा हैये लुटेरों का शहर है यहां हर इक शख़्स झूठा है; -
उम्र गंवाई कुछ ख़्वाब टूटे फिर वो शख़्स छूटा हैये लुटेरों का शहर है यहां हर इक शख़्स झूठा है;
सपने और हकीकत में बहुत फासले मिलेंगेबातें पहाड़ों की होगी और हम जमीं पर मिलेंगे,जो कहते थे अबके मिले तो सीधे गले मिलेंगेजानते हैं हकीकत में तो सिर्फ हाथ ही मिलेंगे,आरज़ू थी मुलाकात आंखों में आंखें डाल मिलेंगेकहां पता था झुकेंगी नजरें और बस दिल मिलेंगे,वो तेरी चाय के झूठे कुल्हड़ नहीं संभाल पाया मैंमैने तो सोचा था दोबारा भी हम चाय पर मिलेंगे; -
सपने और हकीकत में बहुत फासले मिलेंगेबातें पहाड़ों की होगी और हम जमीं पर मिलेंगे,जो कहते थे अबके मिले तो सीधे गले मिलेंगेजानते हैं हकीकत में तो सिर्फ हाथ ही मिलेंगे,आरज़ू थी मुलाकात आंखों में आंखें डाल मिलेंगेकहां पता था झुकेंगी नजरें और बस दिल मिलेंगे,वो तेरी चाय के झूठे कुल्हड़ नहीं संभाल पाया मैंमैने तो सोचा था दोबारा भी हम चाय पर मिलेंगे;
इतना स्याह है मुकद्दर की परछाई का रंगजो भी मेरे पास आया वो ओझल हो गया; -
इतना स्याह है मुकद्दर की परछाई का रंगजो भी मेरे पास आया वो ओझल हो गया;
टूटा हूं बिखरा हूं और जलता रहामैं इंसान हूं या रद्दी काग़ज़ कोई; -
टूटा हूं बिखरा हूं और जलता रहामैं इंसान हूं या रद्दी काग़ज़ कोई;