तेरे अकेले छोड़ जाने का दुख है लेकिन
मुझसे अकेले रहकर भी तो कुछ न बन सका
तुम तो एक मुकम्मल कहानी थी लेकिन
मैं ख़ुद में भी तो कोई वाकिया नहीं बन सका-
इंदौर
बस एक झलक को पागल होते देखा है
मैंने मस्ताने को ज़ुनूनी होते हुए देखा है
मैंने बे-वज़ह हंसने की रिवायत पाली है
यूं ख़ुद को हंसते हुए आंसू पीते देखा है
मुन्नज्ज़िम ने कहा तुम्हें तो मर जाना था
तुमने तो हाथों से हाथ फिसलते देखा है
बस इत्तफ़ाक़ से ज़िंदगी संभल गई मेरी
यूं वीराने में इश्क़ के चराग़ जलते देखा है-
तन्हाइयों में यूं सोचता हूं कि काश तुम होते
अपनों से घिरा सोचता हूं कि काश तुम होते-
मुझको मौका न देना मैं सब को छोड़ने की फिराक में हूं
मैं अपने साए से भी आजकल बेरूख़ी से बात करता हूं-
ये कैसा रिवाज़ है एक बार देखा और मर जाना
मैने देखा है बिना जान के निकले भी मर जाना
वो जो इक आख़िरी सलाम मेरा बच गया शायद
कह पाता तो आसां होता मेरे लिए भी मर जाना-
रद्दी काग़ज़ सा हो गया हूँ मैं,
कभी किसी ख़त का हिस्सा था।
लफ़्ज़ों में लिपटी थी मेरी साँसें,
अब ख़ामोशी में गुम हूँ, बेअसर सा।
कभी अश्आर बनते थे मुझ पर,
किसी दिल की दास्तान कहता था।
अब धूल भरे इक कोने में पड़ा हूँ,
जिसे कोई छूना भी नहीं चाहता।
कभी महबूब की आँखों से गिरा आँसू था,
अब कबाड़ी की बोरी में छिपा जज़्बा हूँ।
रद्दी समझकर जिसने फेंका मुझे,
उसी का ही लिखा … अधूरा किस्सा हूँ।-
बारिश की बूंदें गवाही दे रही थीं,
उसकी यादें आज फिर धुंआ बन गईं।
एक सिगरेट थी, एक तन्हा दिल मेरा,
और उन दोनों में आग बराबर सी थी।
हर कश में उसका अक्स नजर आया,
हर धुंए में एक सवाल सा उभरा।
वो जो कभी बारिशों में भीगते थे संग,
आज उन्हीं बारिशों में बस मैं भीग रहा।
तन्हाई बैठी थी चुपचाप बगल में,
सिगरेट की राख सी बिखर गई शाम।
ना वो आया, ना ख़्वाब लौटे कभी,
बस जलती रही यादें... और मैं।-
मिलता था तुझसे तो बस तुझे पाने की चाह में
सितम है तुझसे मिलकर हर दफ़ा बिछड़ा हूँ मैं-