ये कैसा नुकसान इश्क़ में अपना कर गया हूं
सांसे हैं चल रही और अंदर से तो मर गया हूं
ख़ुद गुनहगारों को न मिली गुनाहों की सज़ा
बेगुनाह था मैं और सितमगरों से घिर गया हूं
ये शहर की गलियां तो तुम्हें याद आती होंगी
तूने है जबसे छोड़ा मैं कहां अपने घर गया हूं
दिन का पहला तो रात में आख़िरी ख़्वाब हो
तेरे ख़्वाबों से मेरी नींद का सौदा कर गया हूं-
इंदौर
वो जिस शख़्स की याद में गंवा दी इक उम्र मैंने
दोस्तों मैं तो उसका पसंदीदा शख़्स भी नहीं था;-
मेरे हाथ में कलम थी तेरी मोहब्बत लिखूं
मेरी जेब में पैसे नहीं थे कि तुझे पा सकूं;-
दिल के सवाल है और दिमाग़ के जवाब है
तुम्हारे जवाबों की ख्वाहिश अब नहीं रही;-
मेरे सवालों के जवाब दे इससे ज़्यादा नहीं चाहता
तुझे याद आती नहीं या तू याद करना नहीं चाहता
मुसलसल घूम रहा हूं और तेरा शहर ढूंढता रहा हूं
कभी तू मुझे घर नहीं बुलाता कभी मैं नहीं चाहता
ज़िंदगी की उलझनों में तू परेशां है जानता हूं मगर
मज़बूत है कांधे पर वापसी का रास्ता नहीं चाहता
तू दिखे एक-दम और मैं निहार लूं तुझे उस वक़्त
इत्ती सी है इल्तिज़ा और ज्यादा कुछ नहीं चाहता;-
अपने किए वादों से जो तुमने किनारा कर लिया
फिर मैंने भी ख़ुद को इक कमरे में बंद कर लिया
लौटने के इरादे से जाता तो सब्र रहता ज़िंदगी में
तुमने तो रकीब को ही अब हम-सफ़र कर लिया
रोज़गार को रोऊं या रो लूं तुम्हारे छोड़ जाने पर
जान एक उसपे ये दो आफ़तों को सर कर लिया
रिश्तेदारों के तानों और फिर बोझ हूं अपनों पर
तूने 'राज़' किन रास्तों पे अपना रुख़ कर लिया;-
महफ़िलों से उठता हूं फिर तन्हा कमरे में भाग जाता हूं
मैं मुश्किल से सोता हूं और कच्ची नींद में जाग जाता हूं
मैंने सीखी इस दुनिया से चतुराई तेरे छोड़ जाने के बाद
मेरी एक ही रही कमजोरी बस तेरे नाम से ठग जाता हूं
यूं तो ज़िंदगी गुजारने को कई हसीन सपने हैं पहलू में
जो ख़्वाब नहीं है मुकम्मल उसी के पीछे भाग जाता हूं;-
ख़ुदा की नेमत थी कि इश्क़ नहीं हुआ स्कूल में
यूं बचपने में समझदार होना भी अच्छा नहीं है;-
ज़िन्दा है दिल जिसमें एक शख़्स दफनाए फिरता हूं
जाग जाता हूं तब भी कुछ ख़्वाब सजाए फिरता हूं
तेरे घर का पता जानता हूं पर मिलने नहीं आ पाया
तेरे शहर जाता हूं फिर गलियों में जाकर फिरता हूं;-