shivam maurya   (◥Shiv.k◤...✍️)
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Joined 7 August 2018


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25 JUL AT 19:31

अब उसने वक़्त देना छोड़ दिया,
और मैंने वक़्त माँगना...

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13 JUN AT 20:54

इतनी गर्मी में भी गर न पिघला उसका दिल,
तो किसी और मौसम की ख्वाहिश ही क्या करें...

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4 JUN AT 22:19

बाक़ियों के जैसा नहीं है मेरा प्यार,
मेरे लिए तुम्हे पाने से ज्यादा ,,
तुम्हें खुश देखना ज्यादा जरूरी है....

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1 JUN AT 23:36

गर "समझूँ" तो सारी मुश्किलो का जवाब हो तुम!
गर "सुनू" आवाज तुम्हारी,
तो सैकड़ों कोयलों का संवाद हो तुम!!
सब बोलते हैं झूठ कि महकता है गुलाब,
गर लिखूँ "खुशबू"तो संस्कारों का पूरा बाग हो तुम!!
क्या ही लिखूँ तुझ पर कुछ नहीं आता समझ,
गर बैठ गया लिखने तो पूरी एक "किताब"हो तुम...

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1 JUN AT 23:06

तेरी यादों को कुछ यूं कह कर रोक देते है ए दोस्त,
कि वो आएगा लौटकर गुफ्तगू करने,,
तपती गर्मी के बाद के सावन की तरह...

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1 JUN AT 16:52

तुझे याद करते-करते एक अर्से बाद,
हमनें लिखना शुरू तो किया,
फिर क्या लिखूँ तेरे बारे में,,,,,,
सोचकर कुछ यूं पलकों को बंद किया,
और फिर तेरे ख्याल में खो बैठे...

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1 JUN AT 16:28

कुछ किस्से कुछ यादें,
जो किसी से न कह सकूँ तुझसे ही होती हैं वो बातें,,
मुकम्मल न हो नसीब तुझसे रूबरू होना शायद इस जन्म,
मगर क्यूँ लगता है कि रोज़ होती हैं अपनी मुलाकातें,,
तुझे बहन कहूँ,दोस्त कहूँ या कहूँ खुदा का फरिश्ता,
जो मिला मुझे वो अनमोल हीरा,,
जिससे जुड़ गया कभी न बिछड़ने वाला रिश्ता,
तुझे देखता हूँ तो लगता है कि.......
एक बेटी,एक पत्नी,एक बहू एक माँ,
नारी के सब रूप हो तुझमे,,
बस यही माँगता हूँ उस उपरवाले से,
तुम मिलो हर जन्म मुझे किसी न किसी रिश्ते में......

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9 MAY AT 23:53

ख्वाइशें थी कभी कि लिख दूंगा मैं भी कलम से इस कदर इश्क ए जज्बात को,
मगर कमबख्त ये दुनिया के चक्कर में इतना उलझा लिया मैंने खुद को,
जानता था नासमझ मैं भी नही कि उलझन में भूल जाऊंगा उसको,
मगर इस उलझन में उलझा मैं कुछ इस कदर कि लगता है भुला दिया हो मैने खुद को ...

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19 MAR AT 14:40

मन मे दबी कुछ बातें गर बताऊँ तुझे मैं,
हम भीग रहे हों बारिश में,,
फिर तेरी जुल्फों को सहलाउँ मैं,
फिर धीरे धीरे तेरे होंठो से अपने होंठ मिलाउँ मैं,,
कुछ इस कदर मन की दबी कसक मिटाऊं मैं...

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26 DEC 2024 AT 4:27

वो मोहब्बत नहीं थी तो क्या था,
उस ने चाय को लबों से छूकर कुछ तो मिलाया था...

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