आया है वो मुकाम इस दौरे उम्र मे.. जिससे था दिल बचाना उसपे ही मर गए। है कशमकश मे जींदगी किस से करे गिला... थी झूठ से नफरत जिसे वो सच से डर गए। होगी किसी को चाहत पाने की माहताब.. हम तो उसकी नादान बेरूखी पे मर गए। चुपके से मुझे रोज आके देखते थे जो.. उनको इधर से गुजरे जमाने गुजर गए। वक्त गुजरा उम्र गुजरी दिन गुजर गए.. आने का कर के वादा वो जाने किधर गए। कहते थे जो फौलाद है छोडेंगे नही साथ.. वो मोम निकले आँच लगते ही पिघल गए।