तुम्हे देख कर मेरी पलकें झपकना भुल जाती हैं ,
इससे नाज़ुक और ऋजु सबूत क्या दू मोहब्बत का तुम्हें-
मैंने देखा एक वृद्धाश्रम ,सोच कर आयी बहुत शर्म
बच्चे पहुंचा रहे है मां-बाप को इसके दर ,
जिन मां-बाप ने पढ़ाया, जिन्होंने चलना सिखाया,
उन्हीं को वृद्धाश्रम का रास्ता दिखाया ।
मैंने देखा एक वृद्धाश्रम ,सोच कर आयी बहुत शर्म
बच्चे पहुंचा रहे है मां-बाप को इसके दर ...
जिन मां-बाप ने बनाया इनको सर्मथ,
उन्हीं मां-बाप का खर्जा उठाने में है असर्मथ,
जिसनें बनाया तुम्हें अपने आखों का तारा
उन्हीं का बन ना सके बुढ़ापे का सहारा ,
जिन मां-बाप ने बच्चों के लिए बनाया घर
उन्हीं को उनके बनाये घर से किया बेघर ।
मैंने देखा एक वृद्धाश्रम, सोच कर आयी बहुत शर्म
बच्चे पहुंचा रहे है मां-बाप को इसके दर...
उनसे पूछा जब मैंने एक सवाल ,
बेटे ने क्यों किया घर से बाहर ?
उनके आखों में आसूं झलक गए ,मोती के जैसे ढुलक गए ,
उन्होंने कहा नहीं एक भी बार ,बेटे ने किया घर से बाहर ,
उनकी ममता उन्हें रोक रही थी ,
बच्चों के बारे मे सोच रही थी ।
मैंने देखा एक वृद्धाश्रम ,सोच कर आयी बहुत शर्म
बच्चे पहुंचा रहे है मां-बाप को इसके दर...
मां-बाप वो फर्ज हैं जिनका उतार नहीं सकते ,
जिन्दगी भर वो कर्ज हैं.....🙏-
मेरी प्यारी बहन अर्चना शुक्ला,
जिन्होंने सीखा नही कभी रुकना।
आप ह्रदय से सशक्त दिखती हैं,
माँ पर बहुत प्यारा लिखती हैं।
रचनाओं पर उत्साह बढ़ाती हैं,
कलम से कुछ नया पढ़ाती हैं।
पता नही शब्द कहा से लाती हैं,
रचनाएं मार्मिक हो तो सबको भाती हैं।
आपको सीखना है कभी नही झुकना,
मेरी प्यारी बहन अर्चना शुक्ला।।-
आज प्रश्न पडला मनाला....
कुणी आहे माझे की मी एकटी फार आहे???
उत्तर देणारा वाराही बघा ना...
किती हुशार आहे
आता इथेच तर होता,
आता पसार आहे..
(बहुधा माझ्या प्रश्नास धार आहे..)
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प्रेम ' कब कहता है '
मारो काटो कर दो ख़ून
विश्वास का ;
प्रेम निश्छल है प्रेम रक्तरंजित नहीं
प्रेम तो प्रकृति के कण कण में व्याप्त है
कुछ लोगों के कारण प्रेम बन गया
अभिशाप्त है..!!-
अपूर्ण या संपूर्ण?
रूढ़ीवादी नहीं थी, तो प्रेम विवाह जिया,
पारिवारिक राजनीति ने,वो भी तबाह किया।
खून के ना होकर भी रिश्ते,अनजान से क्यों जुड़ जाते हैं?
अपनों से ज़्यादा जब वो समझे, तो अपने बन जाते हैं।
यह भ्रम पैदा करके ही तो अनजान पास आते हैं,
मौका देखकर पता नहीं क्यों? मनमर्जी से दूर भी जाते हैं।
अब एक अरसा हो आया है और बाहर त्योहारों का मौसम छाया है,
समय की बदली काया है, हर त्यौहार अकेले मनाया है।
मानसिक - शारीरिक - भौतिक , कोई कमी न हुई पूरी,
शादी के सात फेरे और सारी रस्में भी रही अधूरी।
किसी बात की अब शिकायत नहीं,
मेरी जिंदगी किसी की इनायत नहीं।
मैं स्वयं हूं इसकी निर्माता,
त्यागती हूं,जो नहीं भाता।
मैंने अपना कल लिख डाला है,
अपनी ममता को पाला है।
अपने आंगन के फूलों को,
माली बनकर संभाला है।
आसपास खरपतवार नहीं,
बूंदों की भी बौछार सही।
अपकार नहीं है किरणों से,
ना मंद है ना तेज़, हवा के झोंके।
है ऐसा संरक्षण, मुझ, माली का,
तूफानों में खड़े होकर अपक्षरण को सहा।
विधाता है मेरे साथ, मुझे भय है कहां?
हर बार अंत से, है मेरा उद्गम नया।
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●ती एक मार्मिक●
कुठली कोण ती एक तनया
भेदक नजर, तपनीय काया
निलवर्णी सुंदर अक्ष
मारी मज वर तीक्ष्ण कटाक्ष
वाटसरू मी तिच्या वाटेचा
ती एक मेदिनी तिलोत्तमा
निलवर्णी सुंदर अक्ष
मारी मज वर तीक्ष्ण कटाक्ष
फाल्गुन वेध धरी मज हृदयी
घायाळ करिती त्याच क्षणी
निलवर्णी सुंदर अक्ष
मारी मज वर तीक्ष्ण कटाक्ष
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दर्द हुआ भी है तो कैसे बताऊं
टूट हुए दिल को कैसे सुनहरी में सजाऊं
तमाशा बना दिया तुमने ज़िन्दगी का
अब ये मार्मिक किरदार कैसे निभाऊं ।-
नदीच्या प्रवाह सोबत वाहतांना जसे दगडाचे गोटे तयार होतात
तसेच शाळेत शिकत असतांना किती दगड आणि किती गोटे आहेत
हे फक्त आपल्या शिक्षकांना चांगले माहीत असतात
😀😁😆😉😊🙂☺️😚😙😗😃😄😅🤣😂-
" इक हुस्न
की
देवी से "
प्यार हुआ था
_( अनुशीर्षक में
पढ़ें
विस्तार से )-