Upendra Saini   (उपेन्द्र सैनी (अल्पज्ञ))
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Joined 10 April 2018


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Joined 10 April 2018
2 APR AT 17:41

धूम्रपान,
जिंदगी के साथ,
बहुत चीजें फूंक देता हैं।

यही सोचकर,
सिगरेट सुलगा कर ,
कस लेते हुए धुआँ खीचता हूं,
दर्द,चिंता और बहुत कुछ है,
जिन्हें फूंक देना चाहता हूं।

मैं अकेला नही हूं,
इन सभी मे,
एक बीड़ी का बंडल,
लिए हुये व्यक्ति जब,
बीड़ी जलाकर धुंआ छोड़ता है,
तो उसे ज्यादा जल्दी होती है,
अपने ज्यादा दर्द और समस्याओं को फूंक देने की!

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6 JAN AT 14:53

भूगोल,
जिसकी किताब से पहले,
मैं ब्रह्मांड, चांद, तारे,सूर्य,
ग्रह और उल्का पिंड जैसे शब्द,
अपने घरवालों के द्वारा जान गया।

पिता,
जो मेरी शरारत के बाद,
बिना फीते के जूते से,
मुझे दिखाते थे ब्रह्मांड

अनुशीर्षक में

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7 APR 2023 AT 14:12

दुनिया की,
विभिन्न भाषाओं में,
बोले गये कुछ संवाद ,
पूर्णतया झूठे होते हैं।

जैसे- कन्नौजी भाषा में,
प्रश्न-"दद्दा कईसे हो?
उत्तर- बढ़िया है।
प्रश्न-घर मे सब ठीक?
उत्तर-सब ठीक कटि रही हैं।

ऐसे संवाद,
जो बोले जाते है,
निम्न वर्ग के मुखिया के द्वारा,
इनका उद्देश्य,
घर के मुखिया के,
चेहरे के पीछे की पीड़ा को छिपाना,
पेशानी की चिंता को मिटाना,
सदस्यों को खुश देखना होता हैं।

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21 MAR 2023 AT 15:13

कविताएँ,
लिखी गयी आज,
बहुत लोगों के द्वारा,
"प्रेम युक्त"

मैं भी ,
लिख सकता था,
प्रेम पर गजल।

अगर मैंने कभी,
फुटपाथ,
भिखारी,
या भूखेलोगों को,
न देखा होता।

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26 JUL 2022 AT 16:13

मैंने लिखे,
कई प्रेमपत्र,
कुछ प्रेम पत्र ,
मेज़ पर,
कुछ कूड़ेदान में,
तो कुछ बंद लिफाफों में पड़े रहे।

कुछ प्रेम पत्र ,
मैं डाकखाने लेकर गया,
तुम्हे प्रेषित करने के हेतु।
मगर तुम्हे प्रेषित न किये!

मैं मानता हूँ,
प्रेम पढ़ने का नही,
समझने का विषय है।

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27 FEB 2022 AT 15:38

मानचित्र,
नदियों का सबसे सुंदर,
मैंने चार्ट,किताबों में नही,
अपने पिता के हाथों में देखा।
और समझ गया उनके उद्गम स्थान।
अनुशीर्षक में— % &

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23 FEB 2022 AT 12:13

मानचित्र,
पृथ्वी का सबसे सुंदर,
मैंने दुनिया के ज्यादातर,
एक शख्स के चेहरों पर देखा।

देशांतर और अक्षांश रेखाएं,
आप छू कर महसूस कर सकते हैं।

पिता,
जब चिंतित हो,
तो बनती है अक्षांश रेखाएं।
प्रसन्नता में बनती है,
उनके गालों पर देशांतर ।

सभी हालातों में,
उनके होंठ हमेशा,
विषुवत रेखा बनाते है।

पिता,
उत्तरी और दक्षिणी गोलार्ध,
में बंटे हुये एक चेहरा हैं।— % &

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22 JAN 2022 AT 21:05

हाथ मिलाना भी पैसों का ज़रिया हो गया,
वज़न जेब मे पहुँचा सब बढ़िया हो गया।

एक तन्हा बूँद सी गुजरी जिंदगी मेरी,
उसने छुआ मै बूँद से दरिया हो गया।

कुछ पत्थरों का नसीब हमसे अच्छा हैं,
कोई मूर्ति बन बैठा कोई खड़िया हो गया।

सिखाया था चलने का सलीका जिसने,
उम्र गुजरी उनको अब गठिया हो गया।

खेल कर बचपन बिताया था जहाँ "अल्पज्ञ"
पक्की सड़क गुजरी वो अब पटिया हो गया।

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20 JAN 2022 AT 21:35

अपना गाँव छोड़कर जाना पड़ेगा,
पेट के ख़ातिर अब कमाना पड़ेगा।

दवा से नमक सस्ता हो जहाँ पर,
अपने ज़ख्मो को छुपाना पड़ेगा।

आवाज़ अच्छी होना जरूरी नही,
जागते बच्चों को लोरी सुनाना पड़ेगा।

बहरे बन बैठे जहाँ हुक्मरान हमारे,
क़लम से अपनी चिल्लाना पड़ेगा।

साजिशें अच्छी नही होती "अल्पज्ञ",
ऐसो को अपने से दूर हटाना पड़ेगा।

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13 JAN 2022 AT 19:39

ख़ामोश हैं लब पर मैं लिख सकता हूँ
क़लम नही तो क्या मैं लिख सकता हूँ।

पलकें उठायी है तो सम्भालना ज़रा,
गिराई तो मैं नजरों से गिर सकता हूँ।

बिकते है लड़के अब शादियों के लिये,
लड़का हूं जल्दी कर मैं बिक सकता हूँ।

इश्क़ जायज़ नही कभी शर्तों पर होना ,
तुम जैसा चाहो मैं वैसा दिख सकता हूँ।

वफ़ा हो न हो तुम्हारे पास इश्क में ,
"अल्पज्ञ" हूँ तुमसे अब भी मिल सकता हूँ।

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