यह ऐसी हैं वह वैसी हैं,
ऐसा कहने वालों ने कभी अपने अंदर झांक कर देखा हैं क्या के उनकी सोच कैसी हैं।-
अपने ससुराल में भी अकेले सो लेती है ।
किसी से कुछ न बोलती, बस रो लेती है ।-
आसमंताला भिडणाऱ्या वृक्षांच्या घनदाट जंगलात
काही रोपटी आशेची एक उमेद मनी बाळगत
अवतीभवतीच्या काळोखाला बाजूला सारून
प्रकाशाच्या दिशेने अखंडितपणे कुच करीत असतात
आणि असाच काहीसा संघर्ष समाजाच्या विविध स्तरातील
आमच्या माताभगिनी करीत असतात त्यांच्या या
दिव्यस्वरूपाला, दिव्यशक्तीला आणि सबंध सर्वव्यापी, सकल-चराचर
निर्माण-स्रोत स्त्री- तत्वाला माझा शिरसाष्टांग नमस्कार...
"जागतिक महिलादिनाच्या हार्दिक शुभेच्छा!"-
उस ईश ने जन्म लिया ,
मेरे लिए माँ के रूप में ।
मुझे मेरी माँ ने पिला दिया ,
अमृत दूध में ।
मैं ढूढता रहा पत्थरों में ईश्वर ,
ईश्वर मिला मुझे ,
माँ , बहन,बेटी , पत्नी के रूप में ।।-
साथियों जो स्त्री बहन नहीं है बेटी नहीं है मां नहीं है पत्नी नहीं है वह कौन है? पुरुष से रिश्ते के अलावा क्या किसी औरत का वजूद पहचाना जा सकता है??
असली सवाल यह है कि क्या आप अपने घर में मौजूद महिला को अपने रिश्ते से अलग एक महिला के रूप में स्वीकृति दे सकते हैं??
क्या आप अपनी पत्नी को सिर्फ एक औरत के रूप में जीने की आजादी दे सकते हैं??
क्या 18 साल की बालिग होने के बाद आप अपनी बेटी के लिए घर आने जाने का व उसके दोस्त बनाने की संवैधानिक और वास्तविक आजादी उसे देने के लिए तैयार हैं??
आप अपने घर की महिलाओं को इस देश के पुरुषों के बराबर अधिकार प्राप्त नागरिक मानने को तैयार हैं??आप बाप पति और भाई के रूप में अपने घर की महिलाओं के सर पर बैठे हुए हैं और उनके सारे फैसले आपके मुताबिक करने की जिद पर अड़े हुए हैं लेकिन समाज में आपको अपने लिए बराबरी चाहिए जो चीज आपको दूसरों के लिए बिगड़ जाने का खतरा लगती है, अपने लिए वह जायज हक लगता है !!
असलियत में तो आप औरतों की बराबरी के विचार के भी खिलाफ है आप भीतर से मानते हैं कि औरतों को अक्ल नहीं होती और आजादी देने से यह बिगड़ जाती है यही पितृसत्ता है जिसका विरोध स्त्रियां करती हैं तो आप उन्हें बिगड़ी हुई औरतें कहते हैं !!-
Between the power of swords and words, women power is the most fierce and incomparable one!
Happy Women's Day Charming Ladies!-
"नारी" : "हमारी ताक़त" "हमारा अभिमान"
जब बचपन में वो घर मे आई अपने सारे घर में खुशियाँ लाई फिर थोड़ी बड़ी हुई बहन बन के भाई के मुस्कान की वजह बनी
जो मिला उसे अपने अपनो से प्यार भूल बैठी के वो तो है एक कठपुतली भूल बैठी के सारी ज़िन्दगी उसे तो सहने पड़ेंगे औरों के अत्याचार
धीरे उसने घर का हर काम सीखा, सीखते सीखते उसने सीख ही लिया ज़िन्दगी जीने का तरीका
जब हुई जवान तो उसको पढ़ने की आदत लग गयी बस यही तो वजह थी जो उसकी ज़िन्दगी डस गयी
अचानक उसे हो गया किसी अनजाने अज़नबी से प्यार लो बज गयी तुरन्त शहनाई उसकी शादी की कि इससे पहले वो कर पाती अपनी मोहब्बत का इज़हार
ससुराल गयी वो सब कुछ छोड़ और त्याग कर
उसे क्या पता थी कि ये शादी का बन्धन नही उसकी बर्बादी का बन्धन है जो उसे आजीवन तकलीफ और दुख से बांधकर रखेंगा
बहुत कि कोशिश उसने अपने ससुराल को स्वर्ग बनाने की लेकिन क्या करती वो वो अबला थी
उसके हाथ में तो कुछ भी नही था न उसकी ज़िन्दगी न उसकी मौत बस हर पल हर लम्हा भगवान को याद और उससे फरियाद करते रहती थी
कब आएगी उसके जीवन मे खुशियाँ इस बात की दुआ एक बार नही सौ सौ बार करती थी
लेकिन क्या करती वो बेचारी आधी ज़िन्दगी तो अपने मायके और आधी ज़िन्दगी अपने ससुराल के इज़्ज़त और मर्यादा के खातिर ही बिता देती है
दर्द और ज़ख्म सहना ही है नियति उसकी ये बात वो सबको बता देती है-
स्त्री श्रृंगार से विमर्श तक
(अनुशीर्षक में )
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स्त्री श्रृंगार से विमर्श तक— % &-
महिला दिवस
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सोच किसी की नहीं बदली
बस डरना छोड़ दिया औरतों ने
न बंधती है न चुप रहती है आज वो
आवाज़ बुलंद कर लिया औरतों ने
मात्र सौन्दर्य का प्रतिमान नहीं है औरत
और न ही पाबंदियों का हक़दार है
हौसला इतना कि आसमान छू ले
दृढ़ इच्छाशक्ति की थोड़ी और दरकार है
अनाचार बहुत हुआ है औरतों पर
कीमत इसकी समाज को चुकाना पड़ेगा
मोर्चा खोल दिया है अब औरतों ने
तथाकथित मर्दों को अब खुद को बचाना पड़ेगा
"महिला दिवस" की हार्दिक बधाई
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