पराठा बनते ही ज़रा मुझे भी आवाज़ लगाना,
चाय हाथ में हैं बस बाकि है अब इसको ही खाना।-
Pees raha hai waqt mujhe
mehndi ki tarah
Tay hai ki rang mera
Gehra hoga-
बहुत दिनों से खिचड़ी न पकाई,
शब्दों ने मसालों से नज़र है हटाई..
दाल चावल बीन लूं ,धूं पानी में भिगाये
क़लम में स्याही भरूं, फिर हांडी चढ़ायें..
डालूं उसमें नमक, धनिया, घोलूं हल्दी
शीर्षक तो सोच लिया ,अब लिखूं जल्दी जल्दी..
दो सीटी उबाल कर ,धीमी कर पांच मिनट आंच,
लिखकर जेहन में ,कर लूं मात्राओं को जांच..
बंद कर चूल्हा, तड़का लगाऊं हींग जीरे का खास,
बिखरा लेख ,टूटी तूलिका , कविता न हुई पास..-
मसले हुए हो आलू😀मसाला मिलाती हूँ
चल आज करारा सा मैं पराठा बनाती हूँ-
मसालों सा हमारा प्रेम प्रिय
भभका दे तन-मन हिय
तामसिक मिर्च सुर्ख लाल
सात्विक हल्दी मुख भाल
गरम मसालों सा ओज तेज
कड़ी पत्तों सी सुगंधित सेज
तुम लौंग तीक्ष्ण हो अंगीकार
मैं जायफल सर्व गुण भंडार
तुम अदरक लहसुन के आकार
मैं सौंफ हूँ मिष्ठ मधुर भार
हम मिलेंगे यूं ही हर बार
मसालों सा हमारा प्यार
मसालों सा हमारा प्यार-
"मेरा शब्दों से रिश्ता ऐसा खाने में मसालों जैसा,
शब्द नहीं तो ज़िन्दगी में लगने लगेगा सब फीका-फीका।।"
- अंजली सिंघल
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मोटिवेशनल फैक्टर-☺️
पुरुषों से दोस्ती---
स्त्रियों से मित्रता, पत्नी से चुहल,
बच्चों संग खिलखिलाना--
यारों संग ठहाके लगाना,
कुछ नही है यार--☺️, मसाले हैं,
कभी खाना पकाने के,
कभी घरों की ईंट की दीवार जोड़ने को,
सीमेंट का मसाला---
असली उद्देश्य तो,
रोटी, कपड़ा और मकान,
और नारंगी ,हरे गुलाबी,---
कमाना है।
रश्मि सिन्हा
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वो मेरे इरादों को कमजोर समझते है,
मैंने तो पानी में मसालो को जलते देखा हैं,
किनारे से पत्थर उठाया, सड़क पर रख दिया,
मैंने लोगों को ठोकरो से संभलते देखा हैं।
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बन परांठा, तुम्हारे हाथों की छुअन का अहसास लेंगे
दिल तो दे ही चुके तुम्हें इस बहाने अब जान भी देंगे-