Prashant Shakun   (प्रशान्त शकुन 'कातिब' ✍️)
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Joined 23 September 2018


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Joined 23 September 2018
8 AUG 2023 AT 23:06

मैंने तो लिख ली तेरी कहानी, अपने चेहरे पर!
मैं भी पढ़ूं काश अपनी कहानी, तेरे चेहरे पर!!

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5 AUG 2023 AT 1:15

...मेरी लिखी ग़ज़लें, शायरी, कविताएं तूने पढ़ीं...
...तेरा दिल नहीं किया, मेरा दिल भी पढ़े कभी...

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21 JUN 2023 AT 2:05

मैं चाहता हूं, वो मुझे पत्र लिखे।

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26 OCT 2022 AT 0:06

ना खुशी कोई, ना ही कोई मरासिम मेरी हयात में ठहरा है,
मैं देखूं चाहे जिस भी सम्त, हरसू फ़क़त गमों का कोहरा है।

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4 OCT 2022 AT 0:12

जितना ख़ाली मन है मेरा,
उतनी ख़ाली उसकी आंखें।

जिसको वो देखे, वो मदहोश,
मय की प्याली उसकी आंखें।

चश्म -ए- प्याले भरती रहती,
कैसी मतवाली उसकी आंखें।

मन आंखों से ही पढ़ लेती,
कितनी आली उसकी आंखें।

क्षण में सवाल हज़ारों करती,
कैसी सवाली उसकी आंखें।

ख़्वाब सुनहरे ही देखें हैं,
काली - काली उसकी आंखें।

जब भी मैं देखूं कोई सपना,
करती रखवाली उसकी आंखें।

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26 SEP 2022 AT 1:04

मैं अनचाहा विरान मरुस्थल सा,
तू चाहत बरसते पानी सी,
मैं आंसू ख़त्म कहानी का,
तू मुस्कान शुरुआती कहानी सी।

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27 AUG 2022 AT 16:46

मैं अक्सर अपना
अक्स छोड़ आता हूं
अपने कमरे के
आईने में ही....

मेरे अपनों को
मुझे मुस्कुराता
देखने की बुरी
आदत है।

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8 MAY 2022 AT 0:29

तेरे लिखे ख़त रख लिए संभाल कर
यूं भी रखा मैंने ख़ुद को संभाल कर

मेरे दिल-ओ-जहान में हर वक़्त तू ही है
ज़हन से ही भले कुछ और ख़याल कर

आ कर समेट मुझे दामन में अपने अब
और ना मुझे मुंतशर-उल-ख़याल* कर
*{बिखरे हुए विचारों वाला}

भर चुका हूँ मैं बे-वजह ही जाने क्यूँ
लगा गले मुझे और बे - ख़याल कर

चला गया है जो अब तू भी जाने दे उसे
जाने पर उसके अब ना और मलाल कर

रो लिया बहुत उस बेवफ़ा के लिए
अब और रो कर तू आँखें ना लाल कर

ना बैठ रूठ कर यूँ दूर ख़ुद से तू
आगे बढ़ा कदम ख़ुद को मिसाल कर

कातिब से ही क्यूँ हैं सभी को उलझने
छोड़ ख़ुद को अब ज़माने से सवाल कर

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24 MAR 2022 AT 13:38

थामा है इन हाथों ने कलम को
हाथों से उसका हाथ निकल जाने के बाद

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24 MAR 2022 AT 8:50

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