हज़ारों लाखों,
शब्दों से भरी किताब...
कितनी ख़ामोशी से,
एक बुकशेल्फ पर चुप-चाप
चौबीसों घंटे पड़ी रहती है।
...
कुछ ऐसे ही
पड़ा हुआ हूं मैं भी...
अपने अंदर,
असंख्य शब्दों के साथ,
एक इंतज़ार लिए,
अपनी ज़िंदगी के
बुकशेल्फ पर
अनपढ़ा सा...!-
Prashant Shakun
(प्रशान्त शकुन 'कातिब' ✍️)
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हर किसी के हिस्से में थोड़ा-थोड़ा रह जाऊँगा
बन कर राख़ एक दिन मैं भी कहीं बह जाऊँ... read more
बन कर राख़ एक दिन मैं भी कहीं बह जाऊँ... read more
Joined 23 September 2018
25 FEB AT 15:00
10 JAN AT 17:15
दया
करुणा
और ममता
का माँ के पास
ही तो एक भंडार है
तभी तो माँ की ममता
का अनुभव पाने को ईश्वर
लेता खुद भी मानव अवतार है।
पाल वो लेती है उस ईश्वर को भी बड़ी
आसानी से, पालता खुद जो पूरा संसार है।
-
24 DEC 2024 AT 23:11
ये सब लोग यहाँ YQ पर पागल हो रहे हैं
ऐ पर्वर्दिगार घर इन सबके खबर कर दे।-
18 NOV 2024 AT 19:42
मधुर, मधुर मुस्कान से उसकी, मेरी मति मारी गई
धनराशि थी जो अकाउंट में सारी की सारी गई😒-