Prashant Shakun   (प्रशान्त शकुन ✍️)
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Joined 23 September 2018


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Joined 23 September 2018
4 AUG AT 14:39

भीगा है बेहद, फिर इस सावन,
तन्हा तन्हा, मेरा तन्हापन।

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25 JUL AT 0:40

"नदी के किनारे"

अनुशीर्षक में पढ़ें

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23 JUL AT 10:59

छोड़ कल को आज में हम जी रहे,
फिर मसर्रत की ज़रूरत है हमें।

हम नहीं हैं अब कहीं भी इस जगह,
हो गई फिर से मोहब्बत है हमें।

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20 JUL AT 15:22

हमें अपनी निगाहों का बना काजल सजा लो तुम
बना लो नींद अपनी मुझको आँखों में सजा लो तुम

मुझे तो ग़ैर लगते हैं सभी जो अपना कहते हैं
नहीं तुमको यकीं गर तो भले ही आज़मा लो तुम

ख़ुशी कुछ रोज़ की मेहमाँ है बनके आती जीवन में
बहुत ज़्यादा ना इसको सर पे आँखों में बिठा लो तुम

हमें हमसे मिलाती है जो वो नज़रें तुम्हारी है
हमें भी अपनी आँखों में ज़रा सी देर बैठा लो तुम

करीने से सजाया था कभी कमरे को हमने भी
इसे अब प्यार की खातिर बिखरने से बचा लो तुम

हमारी चिट्ठियां तुमने कभी दिल से लगाईं थीं
हमें भी अपने सीने से लगाकर के सुला लो तुम

हमारी आँख के आँसू कभी थे तेरे गालों पर
नहीं है वो ज़माना दूर बहुत उसे फिर बुला लो तुम

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19 JUL AT 21:37

मन का डस्टबिन

मन का डस्टबिन,
जहां रखता हूँ सबकुछ जैसे
जूठे रिश्ते, अधूरी बातें,
किसी की कही बेहूदी बातें,
अपनों के दिए उलहानें
और अपने ही
सवालों के गले सड़े जवाब।

हर मुस्कान के पीछे
छुपे हैं कुछ ऐसे कचरे,
जिन्हें न फेंक सका,
न जला सका…
बस जमा करता रहा,
मन के डस्टबिन में।

अब दुर्गंध सी आती है,
खुद से ही।

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19 JUL AT 19:21

याद है,
रंग-बिरंगी कमीज़ें,
मैं कई खरीद लाया था,
सफ़ेद कमीज़ पर जब,
माँ ने तुम्हारे लबों को पाया था।

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19 JUL AT 14:44

स्याही में मिला कर इत्र-ए-गुलाब
लिख रहा हूँ तेरे ख़तों के जवाब

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18 JUL AT 19:55

ये झोंके जो तुम्हारी खुशबू लिए आते हैं,
जानती हो, कितना मुझे ये चिढाते है,

मयस्सर नहीं हमें दीदार भी तुम्हारा और
ये कमबख़्त तुम्हे छूकर महक जाते हैं।

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17 JUL AT 0:47

मुझे मुझ से ही तो मिलाया है उसने

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17 JUL AT 0:07

"तुम हो"

मेरी कविताओं का रूपक, तुम हो।
मेरी कविताओं की वजह, तुम हो।
मैं जिसे सोचता हूं समय की परिधि पर, तुम हो।
मेरे लिए मेरा आकाश, मेरी ज़मी, तुम हो।
मेरे बोलने की, मेरी ख़ामोशी की वजह, तुम हो।
ये जो मैं थोड़ा बहुत हंसता हूं दिन में, वजह तुम हो।
उम्र के इस पड़ाव में भी, ये जो मैं बच्चा हो जाता हूं,
मेरे इस बचपने की वजह, तुम हो।
मैं जानता हूं नहीं हो मेरे भाग्य,
मेरे हाथों की लकीरों में तुम,
मगर मेरी जिंदगी के हर क्षण में, हर मौसम में,
हर सपने में, तुम हो।
मेरी जागने की, मेरे सोने की वजह, तुम हो।

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