भादों मौसम
प्रभु कृष्ण का जन्म
हरित मन।
रश्मि सहाय-
लेख लिखने का शौक, दो पुस्तकें प्रकाशित, उद्गार... read more
शायद कम सोचने से ही अधिक काम
करना पड़ता है। पहले दिमाग में एक खाका
तैयार करो काम का, तब कर्म क्षेत्र में उतरो।
रश्मि सहाय-
झूठी सहानभूति,
यूं सांत्वना देना, और दिल ही
दिल में मेरे हालातों से खुश होते जाना।
रश्मि सहाय-
ये कहना नहीं,
माना चोट गहरी है,
पर वक़्त भर देता है सारे ज़ख्म,
ज़िंदगी फिर मुस्कुराती है।
रश्मि सहाय-
ईमान को आजकल कोसते,
ईमानदार को देते धकियाए,
देख जाए झूठ को अगर,
वो अंत काल पछताए,
ईमान देता इक अच्छा फल,
भले देर से आए।
रश्मि सहाय-
कविता उलझती ही जा रही थी,
अल्फाजों की जकड़ से निकलना चाह रही थी,
एक दौर फिर ऐसा भी आया,
उसने खामोशी को अपनाया, ताज़्जुब है,
उस खामोश कविता को ,
हर कोई पढ़ पाया।
रश्मि सहाय-
तो मुंह की खाओगे,
कहे देती हूं मैं,
सहने का ज़माना गया,
टिट फॉर टैट में ही उत्तर पाओगे।
रश्मि सहाय-
पर ये अपने हैं कौन?
जिन्होंने गुरबत में साथ छोड़ दिया,
या वो जिन्होंने,
झूठी सांत्वना दे मुख मोड लिया।
रश्मि सहाय-