Nilesh Borban   (अपरिभाषित)
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Joined 3 March 2017


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Joined 3 March 2017
7 JUN 2022 AT 12:29

पेड़ काट दिये और वहाँ घर बनाया
परिंदे बना दिये गए दीवारों पर

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7 JAN 2022 AT 0:36

एक शख़्स़ को दुनिया समझ रहे थे,
कितना कमज़ोर है भूगोल हमारा

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26 DEC 2021 AT 12:23

"तारे तोड़ कर लाना",
हम दोनो जानते है
कि यह एक बेतुकी सी बात है

पर वो बना देती है
टिमटिमाते हुए तारे
काग़ज़ पर एक ब्रश से

और मैं लिख देता हूँ
उसके तारे उतारने पर यह कविता

और अब मेरी कविता में
चाँद और तारे दोनो है।

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4 DEC 2021 AT 21:53

दूसरा तकिया भी नही लिया हमने
याने कि तेरी कोई उम्मीद ही नही

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24 NOV 2021 AT 21:43

"हम भूल गये"
(Poem in caption)

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5 NOV 2021 AT 0:22

यहीं पर जैसे दुनिया रुक गयी है
हमारी बात आगे कब बढ़ेगी?

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1 NOV 2021 AT 0:49

भीड़ जुट गयी अचानक से मोहल्ले में
उसके छत पर होने की अफवाह पर

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29 SEP 2021 AT 11:22

हम पर तो बस आँच हल्की आ रही है
जहाँ बस्ती जल रही है क्या हाल होगा

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12 SEP 2021 AT 10:24

"तुम्हारे लिए"
*in caption*

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8 SEP 2021 AT 0:18

सभी को लगता है
आकाश में बिखरे हुए तारे
है कोई सूरज की तरह
चमकते हुए पिण्ड

मुझको लगता है
ये है तुम्हारे छोड़े हुए
आकाशीय लालटेन

सभी तर्क वाली बातें करते है
और मैं प्रेम वाली ।

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