काश वो केवल रेखांकन होते,
हमने उनमें रंग भरे न होते,
तो हृदय यूं आज न रोता,
टूटे स्वप्न आंखों में न चुभते,
मर्म धरा का समझ गए होते,
यूं भावों का संग्रहण न करते,
हृदय में न कोई आस जगाते,
तो यूं पीड़ा में आज न होते।
हर पल बुनते रहते ख्वाब,
और जोड़ते उनसे अपने भाव,
कभी खुशी तो कभी ग़म अपार,
जान गए होते सुख दुख का सार,
तो यूं मकड़ी सा उलझे न होते।
चित्त को देना अपने विराम,
नहीं हम जैसे मानुष का काम,
ये काम कठिन समझ गए जो होते,
तो हम यूं धरती पर विचरण कर रहे न होते।
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