सिद्धार्थ मिश्र   (स्वतंत्र)
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Joined 4 April 2018


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Joined 4 April 2018

हसरत ही रह गई है,
कुछ सुनाने की,
तुम्हारे पास आने की,
तुम्हें मनाने की,
तुम्हारी शोखियों पर,
नज़्म लिखते जाने की,
लेकिन लंबा अंतराल है,
तुम्हारे हाथ छुड़ाने,
और
मेरे खामोश हो जाने
के बीच,
लगता है इस बार,
नहीं तय कर सकूंगा,
ये फासला,
कर लिया है खामोश,
रहने का फैसला,
बस,
हसरत ही रह गई है.!

#सुना_तुमने

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ज़िंदगी गले लगाती नहीं,
मौत है की आती नहीं,
अधूरेपन की दहलीज पे,
ठिठकती सी हर बात,
तुम्हारे ना होने के अफ़सोस में,
बेचैन जागती सी हर रात,
आंखों को आज भी है,
तुम्हें देखने का इंतजार,
बोलो ना और कितना करूं?
तुमसे प्यार.?

सिद्धार्थ मिश्र

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यादों से मिटा देंगे तुमको,
ये कर के दिखा देंगे तुमको.!

सिद्धार्थ मिश्र

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प्यार नहीं, दुनिया सिर्फ़ नफ़रत और ताकत की भाषा समझती है।

सिद्धार्थ मिश्र

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सारी रतिया चुराए नज़रिया हो,
मेरी हालत ना समझे सांवरिया.!

कभी ले ले हमारी खबरिया..!
मोहे काहे सताए सांवरिया..!

भूली हंसना मैं कितने दिनों से,
लोग कहने लगे हैं बांवरिया..!

तेरे रंग में रंगी मैं मेरे हमसफर,
मैंने ओढ़ी वफ़ा की चुनरिया.!

दर्द इतना मैं कैसे सहूंगी कहो.?
अभी है मोरी बाली उमरिया.!

रात भर दीप यादों के तेरे जलें,
बड़ी लंबी लगे दोपहरिया.!

चौक बाजार कुछ भी भाए मोहे,
मोहे भाए पिया की नगरिया..!

सिद्धार्थ मिश्र

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मोहब्बत क्या हुई तुमसे,
नया अंदाज़ पाया है,
तुम्हारी आशिक़ी ने अब,
मुझे जीना सिखाया है.!

गिला दिल मे नहीं कोई,
वफ़ा तुमसे मिली ज्यों ही,
मेरे अरमान का गुलशन,
सनम तुमने सजाया है.! मोहब्बत..

यकीं मानो तुम्हारा हूँ,
तेरे हिस्से का तारा हूँ,
दुआ पूरी हुई मेरी,
ख़ुदा ने यूँ मिलाया है.!मोहब्बत..

सिद्धार्थ मिश्र

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तेरे दर पे आया मईया,
पार लगा दो डूबती नईया,
नाम तुम्हारा जग लेता है,
दीन दुखी की तुम हो सहईया!

खुद पे कोई नाज़ नहीं है,
कोई सहारा आज नहीं है,
हाथ पसारे मांग रहा हूँ,
माई तुझसे लाज नहीं है.!
भंवर में डूबा जाता हूँ अब,
तुम बन जाओ मेरी खेवइया.! तेरे..

माँ चामुंडा राह दिखा दो,
आशाओं का दीप जला दो,
दुनिया से मैं हार चुका हूँ,
अपने दिल में मुझको जगह दो,
मैं प्यास हूँ आस मुझे दो,
तुम हो पावन शीतल नदिया.! तेरे दर

सिद्धार्थ मिश्र

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तुमसे मिलने वाला सपना अच्छा है,
दिल तो मेरा अब भी छोटा बच्चा है.!

नींद की वादी में भी तुम ही साथ रही,
बात कोई हो बस तेरी ही बात रही,
चढ़ कर ना उतरा जो मेरे ज़ेहन से,
रंग तुम्हारे इश्क़ का इतना पक्का है.! दिल..

शाम तुम्हारे संग सुहानी हो जाए,
काश की तू भी मेरी दीवानी हो जाए,
बंध जाओ तुम प्रीत के पावन बंधन में,
विश्वास ना टूटे ये तो धागा कच्चा है.!दिल तो..

सिद्धार्थ मिश्र

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तुमने मेरे कदमों को तब थाम लिया,
लौट रहा था जब मैं मेरा नाम लिया.!
नशा है तारी अपनेपन का जेहन पर,
दिल ने जैसे हसरत वाला जाम लिया!

सिद्धार्थ मिश्र

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तुम्हारे बिना!
ज़िंदगी में,
एक ऐसा खालीपन,
महसूस होता है,
जो दुनिया के,
किसी भी एहसास से,
भरा नही जा सकता.!

सिद्धार्थ मिश्र

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