नेताओं की चीख में खामोशी का मधुर राग है
लोकतंत्र में उंगली पर ये सबसे स्वच्छ दाग है।।-
"जाकर देना वोट उसीको जो है उचित हकदार..
आपके हित के लिए मिला है मतदान का अधिकार..
सोच समझ कर लेना फैसला तब करना मतदान..
बंद करना होगा हम सबको ये चुनावी भ्रष्टाचार!"-
बेरोजगार हैं हम तो फ़र्क नहीं तुम्हें,
ख़ैर चुनाव आ रहा हैं, मतदान से तो फ़र्क पड़ेगा ही।
#रोजगार_नहीं_तो_मतदान_नहीं
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अगर भारत से "जाति-धर्म" अचानक गायब हो जाए तो सबसे बड़ी मुश्किल खड़ी हो जाएगी "उम्मीदवार"
और "मतदाता को"
क्यूंकि जब जाति-धर्म नहीं होगी तो "उम्मीदवार"
मत किस नाम पर मांगेंगे और "मतदाता"
मत किस नाम पर डालेंगे..!!!!-
भूखों का भंडारा
मतलब चुनावी अखाड़ा
नया पैतरा नयी चाल
मतदान केंद्र पर
'पानीपुरी का स्टाल'
नेता जी का उद्घोषण
जन जन को मिलेगा पोषण
पहले खाओ गोलगप्पा
फिर लगाओ चुनाव चिन्ह पर ठप्पा...
गोलगप्पों की महिमा अपार
देखते देखते दिखी
मतदान केन्द्र पर
स्त्रियों की लम्बी कतार
कुछ नयी नयी वयस्क थीं इस बार
पर बहुतायत में थीं सत्तर के पार...
इतनी लम्बी कतार देखकर
नेता जी गदगद हो गये
चरणों में नतमस्तक हो गये
बोले
माता जी इधर से आइये
और वहां जाकर
पहले वोट डाल आइये...
माता जी आंखें सजल हो आयीं
बोलीं अबकी
न 'ह' से 'हाथ'
न 'क' से 'कमल'
पहले खायेंगे गोलगप्पा
फिर ही लगायेंगे
सबसे उचित चुनाव चिन्ह पर ठप्पा...। कविता सिंह ✍️
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वो बट गया धर्म में किंतु देश धर्म निरपेक्ष चाहिए,
वो बेच आया वोट अपना,उसे नेता ईमानदार चाहिए
नैतिकता का हुआ पतन चलो अब मैं भी नेता हुआ
इस देश में कहां किसी को नैतिकता वाला नेता चाहिए
देश पर मर मिटने को अब कहां कोई तैयार होता है,
हर एक की यही तमन्ना अब देश बर्बाद होना चाहिए
अखण्ड भारत का सपना हुआ करता था कभी,
अब हर नेता को अलग अपना एक देश चाहिए
आतंकी नेतृत्व भी मंजूर है,गर मुफ्त में सबकुछ मिले,
मुफ्तखोरी की लत हमें हर कर्ज माफ़ होना चाहिए
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आज भी एक त्यौहार है,
मतदान करना अपना अधिकार है।
न जाति से न धर्म से ,
मेरा मत, उसके अच्छे कर्म से।
देश को दिलाएं एक नई उड़ान,
करें उसी को अपना मतदान।
मन में रख सवाल हजार, कौन करेगा देश का उद्धार,
मतदान अपना अधिकार, पांच साल तक रहेगी अपनी ही सरकार।
फिर न कोसना देश के सरकार को, न कहना नेता भष्ट्राचार है,
सोच समझ कर करना मतदान, वोट उसी को जो इसका शख्त हकदार हैं।
किसी ओर को देख के नहीं कि उसने क्या चुना है,
जो दिलाए देश को नई पहचान, उसे ही वोट देना हैं।
इस कुर्सी पर किसे बैठाना है,
इसका चुनाव हमें ही करना है।
जो देश के प्रत्येक नागरिक के मुश्किल में साथ,
अपनी पसंद से चुने सरकार यह अपने हाथ।
जब न आए कोई सरकार पसंद ,बटन दबाना नोटा पर,
लेकिन मतदान अवश्य करें यह अपना है अधिकार।
आज भी एक त्यौहार है,
मतदान करना अपना अधिकार है।-
अपने वतन के बारे में ...
कहीं हमारी एक चूक से ,
चला ना जाए गलत हाथों में...
सब मिलकर अपने ,
अधिकार का सम्मान करो ...
उठो अब ,सब मिलकर मतदान करो...-
लोकतंत्र के महापर्व में अपने कर्तव्य का ध्यान करो,
संविधान ने जो अधिकार दिया उसका सम्मान करो,
भय और लोभ को तज कर अंतर्मन की पुकार सुनो,
उठो,चलो, आलस्य को त्यागो और मतदान करो।
मेरा वोट ! मेरा अधिकार ! मेरा कर्तव्य !-