अभिजीत आनंद 'काविश'   (काविश_की_कलम_से ✍️)
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Joined 31 March 2020


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Joined 31 March 2020

अनकहे ख्वाब मुकम्मल हो जाएं,
कि सफर अब भी जारी है,
बुझे चिराग़ों को जलाओ,
कि रात अब भारी है।

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कभी असीमित रही अनुरक्ति पर,
अब विरक्ति के पहरे,
हम ही तलबगार,
और हम ही गुनहगार ठहरे।

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वंदे मातरम 🇮🇳

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मत पूछो हाल-ए- हयात मेरे,
दर्द से भरे हैं हर लम्हात मेरे,
हम उस दौर से गुजर रहे हैं जहां,
हालात के हवालात में कैद हैं जज्बात मेरे।

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महादेव 🙏

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इतनी तो अभी उम्र भी नहीं थी,
जितने तजुर्बे ये हादसे दे गए,
जब संभले तब अहसास हुआ कि,
जैसे कभी थे नहीं हम अब वैसे हो गए।

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