अनकहे ख्वाब मुकम्मल हो जाएं,
कि सफर अब भी जारी है,
बुझे चिराग़ों को जलाओ,
कि रात अब भारी है।-
अभिजीत आनंद 'काविश'
(काविश_की_कलम_से ✍️)
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🎀 *परिचय* 🎀
⭐ लेखक, कवि, साहित्यकार, अध्ययन प... read more
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Joined 31 March 2020
10 SEP AT 22:51
21 AUG AT 18:18
कभी असीमित रही अनुरक्ति पर,
अब विरक्ति के पहरे,
हम ही तलबगार,
और हम ही गुनहगार ठहरे।-
7 AUG AT 18:29
मत पूछो हाल-ए- हयात मेरे,
दर्द से भरे हैं हर लम्हात मेरे,
हम उस दौर से गुजर रहे हैं जहां,
हालात के हवालात में कैद हैं जज्बात मेरे।-
1 AUG AT 14:42
इतनी तो अभी उम्र भी नहीं थी,
जितने तजुर्बे ये हादसे दे गए,
जब संभले तब अहसास हुआ कि,
जैसे कभी थे नहीं हम अब वैसे हो गए।-