अभिजीत आनंद 'काविश'   (काविश_की_कलम_से ✍️)
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Joined 31 March 2020


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Joined 31 March 2020

इतनी तो अभी उम्र भी नहीं थी,
जितने तजुर्बे ये हादसे दे गए,
जब संभले तब अहसास हुआ कि,
जैसे कभी थे नहीं हम अब वैसे हो गए।

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महादेव 🙏

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क्या खूब बरस रहा सावन पर अब वो मन ना रहा,
रुत बदली फिर भी अब वो आवारापन ना रहा,
बारिश की बरसती बूंदों ने तो खूब रिझाया हमें,
पर अब ना वो इश्क़ रहा ना वो अल्हड़पन रहा।

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उनके हिस्से में मनोरम भ्रमण आया,
जिनके वर्तमान जीवन की राहें थी सुगम,
हम संघर्ष पथ पर अग्रसर रहे,
क्योंकि हमारी खुशियों के रास्ते बड़े दुर्गम।

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मैं जब भी उसे पुकार कर थकता हूँ,
जज़्बात कागजों पर लिखकर,
एहसासों से लिपटता हूँ।

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इस ऋतु परिवर्तन में वक्त, बेवक्त,
यूं मौसम का बदलना तो जायज है काविश,
पर बारिश की बौछारों से कई चेहरे ऐसे धुले,
कि महफिल में हंगामा हो गया!!

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तन्हाई से है वास्ता अपना,महफिलों से ओझल ही रहेंगे,
कई ख़ाब समेटे ये दोनों रतजगे नयन,सजल ही दिखेंगे,
ढूंढ रहे हो मेरे शब्दों में अगर वफ़ा की बातें तो रहने दो,
यहां तो जमाने के सताए,
दर्द में जीवन बिताए सिर्फ गीत ग़ज़ल ही मिलेंगे।

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क्षणभंगुर से इस जीवन में गुरूर कैसा?

माटी की काया है एक दिन माटी में ही मिल जानी है,
खत्म हुई जिंदगानी की तेरे कर्मों जैसी ही कहानी है।

धरे रह जाएंगे धन, दौलत, रिश्ते नाते और परिवार,
पल भर में राख हो जाएगा चाहे तन का जैसा भी हो आकार।

ईर्ष्या, द्वेष, मद, लोभ सब मिथ्या है प्यारे,
इस शहर को खाक ही होना है चाहे जितना तू संवारे।

माया की दुनिया में काया पर इतराना फिजूल जैसा।

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स्वच्छ एवं हरित पर्यावरण से ही स्वस्थ समाज,
की नीति को अपनाना है,
वृक्ष,हवा,पानी सब प्रकृति की देन है,
इन धरोहरों को हमें बचाना है।
अगर अभी भी नहीं चेते तो,
भावी पीढ़ी क्या पाएगी,
जीवन अर्थहीन न हो जाए,
हमें अपना उत्तरदायित्व निभाना है।

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कभी-कभी जीवन में एक साथ कई मोर्चों पर ठन जाए,
और फिर भी आपके चेहरे का भाव बिल्कुल नहीं बदले,
तब यह एहसास होता है कि अब हम वास्तव में बड़े हो गए हैं।

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