क्षणभंगुर से इस जीवन में गुरूर कैसा?
माटी की काया है एक दिन माटी में ही मिल जानी है,
खत्म हुई जिंदगानी की तेरे कर्मों जैसी ही कहानी है।
धरे रह जाएंगे धन, दौलत, रिश्ते नाते और परिवार,
पल भर में राख हो जाएगा चाहे तन का जैसा भी हो आकार।
ईर्ष्या, द्वेष, मद, लोभ सब मिथ्या है प्यारे,
इस शहर को खाक ही होना है चाहे जितना तू संवारे।
माया की दुनिया में काया पर इतराना फिजूल जैसा।-
🎀 *परिचय* 🎀
⭐ लेखक, कवि, साहित्यकार, अध्ययन प... read more
स्वच्छ एवं हरित पर्यावरण से ही स्वस्थ समाज,
की नीति को अपनाना है,
वृक्ष,हवा,पानी सब प्रकृति की देन है,
इन धरोहरों को हमें बचाना है।
अगर अभी भी नहीं चेते तो,
भावी पीढ़ी क्या पाएगी,
जीवन अर्थहीन न हो जाए,
हमें अपना उत्तरदायित्व निभाना है।-
कभी-कभी जीवन में एक साथ कई मोर्चों पर ठन जाए,
और फिर भी आपके चेहरे का भाव बिल्कुल नहीं बदले,
तब यह एहसास होता है कि अब हम वास्तव में बड़े हो गए हैं।-
हम थोड़े झुक कर अदब से क्या मिले लोगों से,
जमाने ने तो हारा हुआ समझ लिया...!!-
किस फिजूल के अपनेपन के वहम में जी रहे हो काविश,
यहां तो आपकी उपयोगिता के अनुसार ही आपकी कीमत तय की जाती है।-
कई वजहें हैं इस तन्हाई की साहब,
ढलती शाम बेवजह रुसवाई सी लगती है,
जीवन के कुछ मसले इस कदर उलझे हैं,
कि अपनी परछाई भी पराई सी लगती है।-
परिपक्वता का दस्तूर निभाना मैंने भी सीख लिया है,
दहकती जिंदगी में सुलगती ख्वाहिशें अब अनर्थ लगती हैं।-
माई के दूधवा के करज ना कबो तोहरा से दियाई बबुआ,
माई के मर्म काहे तोहरा बस एक ही दिन बुझाईल बबुआ?
जबले जीयत जिनगी बा तबले हर दिन माई के समर्पित रहे,
धन,संपति सब मिल जाई बाकि कहां मिली माई के दुलार बबुआ?-