अभिजीत आनंद 'काविश'   (काविश_की_कलम_से ✍️)
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Joined 31 March 2020


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Joined 31 March 2020

दूसरों के जीवन सुलभ बनाने को,
समर्पित है जिसका संपूर्ण जीवन,
अपने पसीने से अभिसिंचित कर,
जो पल्लवित करता है औरों का चमन,
फिर भी आनंदित रहता है पाकर वो,
आधा ढका तन और,आधा पेट भोजन।

श्रम पुजारियों को शत-शत नमन।
श्रमेव जयते !!

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जब संबंधों में अनुबंध का एहसास होने लगता है,
तब रिश्ते में मिठास का तटबंध टूटने लगता है।

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जिनका शौर्य अपार, शस्त्र शास्त्र के वो धाम हैं,

नारायण के अवतार वो भगवान श्री परशुराम हैं।

वैशाख शुक्ल तृतीया को अवतरित हुए परशुराम हैं,

शिव जी के प्रदत्त परशु के धारी श्री परशुराम हैं।

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शय पर मां भारती के शेर ढा दिए,
चंद कुत्तों ने हथियारों से।
भर लो अब के मुठ्ठियां अपनी सब,
अमर चिताओं के अंगारों से।
वतन की फिजा गुंजायमान हो अब,
क्रोधाग्नि में तप्त ललकारों से।
दहशतगर्दों के आकाओं को दफना दो,
जहन्नुम की गहरी गारों में।

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कभी-कभी शांति के लिए युद्ध आवश्यक हो जाता है,नहीं तो कृष्ण ना ही गीता का पाठ पढ़ाते,और ना ही कोई भेद बताते।

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तथाकथित सेकुलरिज्म और गंगा जमुनी तहजीब का कब तक पाठ पढ़ाया जाएगा,
आतंकी का कोई मजहब नहीं होता, और धर्म पूछकर मारा जाएगा,
जाति में बंट कर कटने की बजाए एक एकजुटता से ललकार हो,
इन बुझदिल काफिरों की जघन्यता पर भारी अब राष्ट्र का प्रतिकार हो।

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कब से बाट जोह रहे हैं ये सजल नयन मेरे,
अब्र की ओट से निकल चांद कब अपनी चांदनी बिखेरे।

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बेशक विनम्रता व्यवहार कुशलता का प्रतीक है, किंतु अधिक होने पर यह अल्प-आत्मविश्वास का आभास भी कराती है।

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माना रास्ते पर बंदिशों की बिछी बिसात थोड़ी जटिल है,
पर चोटिल कदमों से चलने का हुनर हमें भी आता है।

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विकल्पों की बैसाखी से संकल्पों की सिद्धि रह जाती है अधूरी,
जब तक दृढ़ इच्छाशक्ति ना हो, कर्मपथ के परिधि की धूरी।

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