महेन्द्र मनोमंथन   (Mahendra Inaniya)
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Joined 1 April 2018


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बूंदां सूं जद भींजे धरती, ज्वार उठे मुस्काय,
किसानां री आंख्यां म, आशा रा फूल खिलाय।

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पंडित बाँधे मौली, मंत्रों में विश्वास।
रक्षा-सूत्र में बंधे, ईश भक्ति का प्रकाश।।

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तेरी यादों की किताब रोज़ ही खोलता हूँ,
हर पन्ने पे तेरा नाम मैं धीरे से बोलता हूँ।
शब्द तेरे, जो तूने कभी कहे थे प्रेम में,
मेरे लिए खास, उन्हें रोज़ ही तोलता हूँ।

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ओ प्रियतमा

सावन में प्रेम का श्रृंगार लुटाए,
तीज की उमंग मन रंग सजाए।
बिंदिया की चमक में तेरी छवि मुस्काए,
चूड़ियों की रुनझुन में तेरा स्वर झंकृताए।

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मेरी महीन दाढ़ी को देखकर वो शरमा गई,
नज़रें झुकीं तो जैसे मोहब्बत कहर ढा गई।
उसने कहा ये रौब तुम्हारा दिलकश अंदाज़,
तेरी हर अदा में मोहब्बत का मधुर राज है।

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अब मैं मौन हूँ।
और शायद यही मेरी शांति है।
क्योंकि आवाज़ें धोखा देती है,
पर पत्थरों को कोई छल नहीं सकता।

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पर्वत सा अडिग है सलोना रूप अद्भुत सा,
चाँद सी उजली जैसे मधुर धूप प्यारी सी।
नयनों में गहराई झील सी समाई सपनों में,
केशों में बसी है रात की परछाई गहरी सी।

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ध्वनि तेरी मन में मधुरिमा लाए,
तेरे स्वर से हृदय गीत बन जाए।
शाम की छाँव में मन राग सुनाए,
तेरे कदम बढ़ते ही गूँजे पायल,
तेरी ध्वनि से प्राण खिल जाए।

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मिलियो कठिन रास्तों जद,
थारो साथ रहै सांचो।
कांट्यां बीं फूलां लागे,
प्रेम रो रंग हो गाढ़ो।
धूपां री धारां सहे,
मन नी घबराय थारो।
थारी नजरां री छांव,
बने जीवन रो पाथो।

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तू किरणों की शांत प्रभा है,
मैं अंधेरे का मौन स्वर हूँ।
तेरी बातों में गीत बसा है,
मैं उसी का मधुर असर हूँ।
तेरे नयनों की दीप-लहरी,
मैं उजालों का एक छोर हूँ।
तू स्वयं बहती प्रेममयी सरिता,
मैं तुझमें डूबा निश्छल ठौर हूँ।

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