महेन्द्र मनोमंथन   (Mahendra Inaniya)
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Joined 1 April 2018


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प्रेम पगे व्यवहार से, जग में फैले शांति।
मूल्य यही मानव का, मिटे यहाँ से भ्रांति।।

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भादवा रो सुगंध में, मन हरषै अति घणो ।
मेघा झर-झर बरसता, खेतां रा तन मणो ॥

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मन की मनमर्जी, बहती जैसे नदिया।
सपनों की नगरी, लगे अपना सहारा।।

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मेरी स्मृतियों में सुवासित हैं तेरे अनुराग के पुष्प,
तेरे वचन चाँदनी समान हृदय को करते हैं तुष्ट।।

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सावन की ठंडी हवा सी हैं बहन की मुस्कान,
फूलों सी कोमल पर पर्वत सी मजबूत उसका मान,
मेरी दुनिया की सबसे प्यारी हैं पहचान!

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जो बिना बात के तंग करे!
और फिर बोले यार,
तू ही तो मेरा साथी है रे!

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हम तो चाय पीने गए थे एक कप,
वो बोले ला दूध, शक्कर, अदरक सब!

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बूंदां सूं जद भींजे धरती, ज्वार उठे मुस्काय,
किसानां री आंख्यां म, आशा रा फूल खिलाय।

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पंडित बाँधे मौली, मंत्रों में विश्वास।
रक्षा-सूत्र में बंधे, ईश भक्ति का प्रकाश।।

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तेरी यादों की किताब रोज़ ही खोलता हूँ,
हर पन्ने पे तेरा नाम मैं धीरे से बोलता हूँ।
शब्द तेरे, जो तूने कभी कहे थे प्रेम में,
मेरे लिए खास, उन्हें रोज़ ही तोलता हूँ।

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