क्रैश से ऐन एक मिनिट पहले
ईश्वर से मोह और अधिक हो गया होगा
ऐन एक मिनिट पहले
बच्चों के नाम पर सहम गया होगा
पत्नी अधिक प्रिय हो गयी होगी
माॅं को याद कर
बिलखकर रोया होगा
बच्चों की तरह…
सदियों के इंतजार के बाद
घर लौटने की उम्मीद दुगनी हो गयी होगी
क्रैश से ऐन एक मिनिट पहले...।
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"मानवी त्रैमासिक ई पत्रिका"
वह कोई
जगह है मेरे रहने के लिए
जहाँ न कपाट है न खिड़कियां
दर्पण ही दर्पण है, बिम्ब ही बिम्ब है
बच नहीं पाती प्रेम करने से
जहाॅं अस्वस्थ देह भी करती है प्रेम
चाहूँ भी तो नहीं सूखता हृदय...
कब से चल रही हूँ
घूम फिरकर वहीं आ जाती हूॅं
थककर
मीठा हो जाता है स्वेद...
कितना शहद है तुम्हारी बातों में
ओक भर चखा था प्रेम
तबसे मीठी हो गयी है जिह्वा…
सैकड़ों चुप, सैकड़ों धड़कनों के भीतर
तुम्हारी आत्मा—
सबसे सुंदर जगह है
मेरे रहने के लिए...। कविता सिंह ✍️-
यथार्थ से कोसों दूर
सोशल मीडिया पर उड़ता हूॅं मैं
पंख फैलाए...
उड़ते हुए
एक दिन गिरूॅंगा छपाक् से
धरती पर...
जब झर जाऍंगे पंख…।
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( सीढ़ियाॅं…)
अब आ ही गया हूॅं क्या करूॅं
कहाॅं बैठूॅं...
अनुशीर्षक में पढ़ें—-
'बिहारी जी' सबसे गर्म पंक्तियां
छिटककर फूट रही हैं
मक्के के दानों की तरह...
रचना अनुशीर्षक में पढ़ें...-
फिर एक रविवार
खुद को समेटा
आकाश को निहारा
मिट्टी से तलुओं को सनने दिया,
हवा को छूआ
पत्तों का सौरभ लूटा
पृथ्वी के पोर-पोर से प्रेम किया…
फिर एक रविवार मैंने
खुद को समेटा
दुनिया की हर एक चीज से प्रेम किया…
फिर एक रविवार
मैंने—
खुद से प्रेम किया…।-
आज नहीं तो कल हो जाएगा
युद्ध विराम… !
शांति समझौते के बाद
एक-एक करके निकाली जायेंगी
राख के ढेर से लाशें…
गिनी जायेंगी शौर्य गाथाएं
और फिर...
एक दिन जब—
सब शांत हो जायेगा तब
सुनायी देंगी
अनाथ बच्चे, विधवा औरतें और
संतानहीन माॅं बाप की चीखें...
आज नहीं तो कल हो जाएगा
युद्ध विराम… !
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युद्ध सिर्फ युद्ध नहीं है—
युद्ध में सबसे पहले
मर जाती हैं देश की आत्माएं
एक-एककर
मरती जाती हैं सभ्यताएं
अंत तक
मरने लगती है भाषा की देह
और अंततः
सूख जाती हैं कविताएं...।-