QUOTES ON #मज़दूर_दिवस

#मज़दूर_दिवस quotes

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1 MAY 2022 AT 12:02

अजीब परिंदा है अपनी मज़दूरी पर नाज़ करता है,
वह शहर-दर-शहर रोटी के लिए परवाज़ करता है!

عجیب پرندہ ہے اپنی مزدوری پر ناز کرتا ہے،
وہ شہر در شہر روٹی کے لئے پرواز کرتا ہے !!

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1 MAY 2022 AT 16:14

रोटी की खातिर मिटा दी हाथों की लकीरें
अब शिकवा तकदीर से करें तो भी कैसे

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1 MAY 2020 AT 17:30

जिस अख़बार से कमाता
उसी अख़बार को बिछौना,
उसी को थाली बना लेता है,
मज़दूर है, पर मजबूर नहीं,
सूखी रोटी को भी दावत
समझ कर खा लेता है।

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1 MAY 2021 AT 14:21

मजदूर हैं हमें हमारी मजदूरी तो दे दो साहब,
इस खराब मौसम में दिलासे रखे नहीं जाते..!

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1 MAY AT 8:55

मज़दूर दिवस।

ज़िंदगी के कारखाने में, है मज़दूर हर आदमी।
वक्त के हाथों में बंधकर,है मजबूर हर आदमी।।

कैसी बीत रही है,क्या बतलाऊं जानां तुम को।
कि तलाश-ए-सुकूं,है थककर चूर हर आदमी।।

मिल जाते हैं चौराहे हर दोराहे पर ख़ुदा यहां।
है मग़र आदमी से मीलों दूर, हर आदमी।।

रोज़गार के जैसा दूजा रब़ कोई नहीं है।
इसी मौला की बदौलत है मशहूर हर आदमी।।

तुम मनाओ दिन ,मैं अपना ख़ुदा मनाता हूं।
ये रूठे जो 'सागर', है बे-मक़्दूर हर आदमी।।

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मज़दूर ज़िन्दाबाद - मज़दूर ज़िन्दाबाद

सर्दी हो गर्मी हो या बारिश का हो मौसम
बस हाथों में उठाए हुए अज़्म का परचम
मेहनत में लगा रहता है मज़दूर ये हरदम
इसके सिवा और कुछ रहता नहीं है याद

मज़दूर ज़िन्दाबाद - मज़दूर ज़िन्दाबाद

सड़कों पे डालता है कहीं पर यही डामर
ढोता है ईट गारा पर ख़ुद का नहीं है घर
फ़ुटपाथ पे सोता है महज़ बोरी बिछाकर
हरगिज़ नहीं करता है कोई भी फ़रियाद

मज़दूर ज़िन्दाबाद - मज़दूर ज़िन्दाबाद

मज़दूर ने ही दिल्ली में संसद को बनाया
मज़दूर ने ही शाहों को मसनद पे बिठाया
सामान भी लोगों का क़ुली बनके उठाया
फिर भी इसकी ज़िन्दगी रहती है बरबाद

मज़दूर ज़िन्दाबाद - मज़दूर ज़िन्दाबाद

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एक ट्रैक्टर जितना बोझ वो अपने कंधों पर ढोता है,
दूसरों को आश्रय देने वाला शख़्स खुद सड़कों पर सोता है।
सपने उसके भी होते हैं महलों में बसने के,
अपने ख्वाब छोड़ दूसरों की खुशी का ख़्याल उसे होता है।
कड़ी धूप में भी लोहे की भांति तपकर,
तेज़ बारिश में भी काम करता है वो डटकर।
चाहे लाख मुसीबतें उसके सामने तैयार होती हैं,
अधरों पर मुस्कान उसके बरकरार होती है।
कुल्हाड़ी की चोट, कील की खरोंच उसके लिए आम होते हैं,
अपने मालिक के लिए उसके कंधे नीलाम होते हैं।
हाथ पाँव गल जाते हैं सीमेंट बालू के प्रभाव से,
फिर भी लगा रहता है दो वक्त की रोटी के लगाव से।
इतना सब के बावजूद भी वो ईश्वर को नहीं कोसता है,
भला किसको हिम्मत इतनी कि वो महल बना दे?
वो ये सोचता है।
उसमें उम्मीदें, हिम्मत अभी जारी है,
वो काम करेगा हंसकर यूँ ही..
क्योंकि उसे अपना परिवार और पत्नी बेहद प्यारी है।

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1 MAY 2020 AT 18:25

मेहनत करने वाले मज़दूर हो गए

शोषण करने वाले मशहूर हो गए

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1 MAY 2023 AT 11:07

धक धक ये करता है
यही इसकी चंचलता है,,
दिल ऐसा मज़दूर
जो थक कर भी धड़कता है!!
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#मज़दूर_दिवस

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1 MAY 2020 AT 23:46

चलो माना वो मज़दूर थे पर क्या हम भी मजबूर थे,
बात उठी अधिकारो की जब तब भी वे मजबूर थे,
कुचले पड़े रहे सड़कों पर,खुशियों से काफी दूर थे,
शायद यही गलती थी उनकी क्युकी वे मज़दूर थे।

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