कदाचित सुकून मुमकिन नहीं अब,
शौक से सामंजस्य भी ज़रूरी है,
परिपक्वता की बेतुकी बातें कर,
दिल को बहकाना भी ज़रूरी हैं।-
वाहवाही है चारो तरफ फैली,
दुनिया को शायद पता चल गया,
किस्से है मेरे ही हर इक जबां पे,
संघर्ष अपन का शायद सफल हो गया।
सोचता हूं समाज से परे मगर,
उस शख्स की अधूरी दास्तां,
किसी की फर्जी चकाचौंध में फंस कर,
वह मशक्कती घुट-२ के मर गया।-
अब न हुआ तो हो न सकेगा,
दौर ये ज़रा तकनीकी हैं,
मै न रहा तो कोई और रहेगा,
प्रतिस्पर्धा यहां ज़रा लंबी है।-
झूठे वादों पे ऐतबार करना ठीक है क्या,
थोड़ा बहुत इंकार करना ठीक है क्या,
सफर लंबा है और मंजिल दूर है अभी,
मुकाम से पहले बहकना ठीक है क्या!-
मेरे वास्तो पर तो टिकी नहीं है,
तेरे कायदों पर तो बिकी नहीं है,
खामोशी उसकी शायद सस्ती है बहुत,
मेरी मुस्कुराहट अभी भी हटी नहीं है।-
बदलना शौख है या फितरत क्या पता,
वो शख्स पराया है या अपना क्या पता,
अभी जिंदा हूं तो नज़रों में चुभना लाज़मी है,
मरने के बाद मंजर कैसा हो क्या पता,
बेरुखी पनपी है अभी या ये दौर पुराना है,
गुनाहों के दरिया का किनारा क्या पता,
थकान छाई है एक अरसे से ज़हन में,
मौत की दस्तक है या रुख़सत क्या पता।-
बोली लगी है बाज़ार में खरीददार बहुत है,
जो अज़ीज़ है मेरे वो बिकाऊ बहुत है,
जीत हार का सिलसिला तो चलता रहेगा ज़माने में,
अपनापन जताने पर यहां विवाद बहुत है।-
मेरा व्यक्तित्व गतिमान है खयाल है मुझे,
तेरा अंदाज-ए-बयां क्या मालूम है तुझे,
अब मसला-ए-विवाद तो यही है जनाब,
तेरी सोहबत बिकाऊ है ये मालूम है मुझे।-
आओ बात करते है,
जिंदगी की उलझनों से दूर कहीं मुलाकात करते है,
निकल के इस दिखावटी के जहां से,
इन बेतुकी मतलबी सामाजिक कवायतो से,
हट कर एक नई शुरुवात करते है,
दिल में जो बातें दबी है एक अरसे से,
परते खोल के उसे आज़ाद करते है,
माना दौर है ये वीडियो कॉल का,
व्हाट्सएप पे घर बैठे चैट का,
मगर मिल के हकीकत में अब रूबरू होते है,
मोबाइल को अलग रख के आज,
आओ सिर्फ बात करते है।-
ये बेगैरतपन ये बैचैनियां ठीक तो नहीं,
खुद से खुद को यूं बहलाना ठीक तो नहीं,
गमों का सौदा तुम कर बैठे हो इस कदर,
यूं बेवजह ज़िद कर जाना ठीक तो नहीं,
चलो आओ फोन लगा के जायज़ा लिया जाए,
गलत सही हातोहाथ तय किया जाए,
बैठे हो हताश होके यूं मुंह फुलाए,
यूं बेवजह इस्तेमाल हो जाना ठीक तो नहीं।-