हज़ारों ग़मों के साथ चल रहा हूँ
हर वक़्त तेरे ख़याल में जल रहा हूँ
उजालों ने मुझसे मुँह मोड़ लिया है
क्या करूं अंधेरी राहों में पल रहा हूँ
वफ़ाओं का बाज़ार सूना पड़ा है
मैं टूटे हुए ख़्वाबों में ढल रहा हूँ
जहाँ हँसते थे कल मेरे अश्कों के क़िस्से
वहीं आज चुपचाप गल रहा हूँ
ना मंज़िल का चर्चा न राही का किस्सा
बस एक गर्द-ए-सफर में टहल रहा हूँ
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मैं तन्हा चल रहा हूँ तेरी याद साथ है
मेरी ख़ामोशियों में कोई बात साथ है
तेरे जाने के बाद अब कोई राह नहीं
हर मंज़िल की तन्हाई में एक रात साथ है
ये राह-ए-इश्क़ है यहाँ मिलते हैं ग़म भी अक्सर
खुशी की एक झलक आँखों में बरसात साथ है
समझ ले तू भी ओ नादाँ ये दुनिया है सराए
यहाँ हर एक मुसाफ़िर के कुछ लम्हात साथ है
हर पल जो तुझको मैंने अपने दिल में रखा
उसी दिल में तेरा प्यार और हर याद साथ है
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कभी जो था पाक दिल अब दाग़ों से भर गया
ज़माने की गर्दिशों में वो रंग उतर गया
वो हौसला जो कभी मुझमें पल रहा था
ज़माने की ठोकरों से आख़िर वो मर गया
वो रौशनी जो कभी राहों में जलती थी
हवा-ए-बेरुख़ी से उसका शरर उतर गया
बहुत संजो के रखा था हर एक ख़्वाब दिल में
हक़ीक़त की तपिश से वो मंज़र बिखर गया
तलाश करता है अब वो सुकून के लम्हे ज़ाकिर
जो शोर-ए-ज़िंदगी में कहीं पर ठहर गया
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दिशा दिखाओ मन को भटक मत ओ नादान
समझ ज़रा फ़साने बदल दे तू पहचान
यह दुनिया एक मेला है रंग और रूप भरा
न कर अभिमान इतना कि मिट जाए निशान
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अमीर होकर भी उसे हँसना नहीं आता
सच तो ये है कि उसे जीना नहीं आता
हर एक लम्हा वो जीता है तन्हा सा
उसे किसी के साथ रहना नहीं आता
कभी जो टूट के रोया था भीड़ में
उसे दर्द खुल के कहना नहीं आता
बड़ा सलीक़ा है लिबासों के चुनाव में
मगर ये सच है दिल को पहनना नहीं आता
वो इश्क़ से ग़ाफ़िल नहीं है ज़ाकिर
उसे मोहब्बत को जताना नहीं आता
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यही एक बात न बदली
कि वक़्त ने हर लम्हे को बदला...
चेहरे, रिश्ते, मौसम, मंज़र
सब कुछ दरिया बन बह निकला...
पर दिल का ये सन्नाटा अब भी
उसी गली में ठहरा है शायद
जहाँ एक इंतज़ार था
जो आया नहीं और गया भी नहीं...
हर फ़साना मिट गया दास्तानों से
हर नक़्श बह गया बयानों से
पर एक धुंध-सा एहसास है
जिसे ना नाम मिला
ना अंजाम...
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सुबह की धूप मुसकाई ख़्वाबों से आँखें मिलती हैं
उम्मीदें फिर से जाग उठीं जैसे कलियाँ खिलती हैं
कल जो टूटा था दिल अपना आज नए रंगों में है
ग़म की शाख़ों से भी आख़िर कुछ ख़ुशबू मिलती हैं-
सोचते रह गए कि क्या रोग है ये हयात
हर लम्हे में छुपा कोई शोर है ये हयात
लब मुस्कराए दिल मगर खामोश ही रहा
छलकी नज़र में बसा कोई ज़ोर है ये हयात
भीड़ में भी न मिली कोई सच्ची सदा
अजनबी चेहरों का ही दौर है ये हयात
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