Zakir Qadri  
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Joined 7 December 2019


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Joined 7 December 2019
11 MAY AT 17:30

अजीयतों से भरा सफ़र काट रहा हूं
हर सांस एक नया कहर काट रहा हूं

हर एक साँस में राख उड़ती है दिल से
लगता है मैं कोई शरर काट रहा हूं

नींदों के खेत में कांटे बो कर आया था
अब ख्वाब के नाम पर ज़हर काट रहा हूं

दुनिया जो देखती है वो सच नहीं होता
मैं आईनों में अपनी पहचान काट रहा हूं

उम्मीदें बुझ चुकी हैं कब की ज़ाकिर
अब तो राख में से ही शजर काट रहा हूं

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10 MAY AT 19:15

धड़कनों की साज़िश है या नज़रों का फ़साना
इक रूहानी कशिश है बन गया जो अफ़साना

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27 APR AT 14:40

हज़ारों ग़मों के साथ चल रहा हूँ
हर वक़्त तेरे ख़याल में जल रहा हूँ

उजालों ने मुझसे मुँह मोड़ लिया है
क्या करूं अंधेरी राहों में पल रहा हूँ

वफ़ाओं का बाज़ार सूना पड़ा है
मैं टूटे हुए ख़्वाबों में ढल रहा हूँ

जहाँ हँसते थे कल मेरे अश्कों के क़िस्से
वहीं आज चुपचाप गल रहा हूँ

ना मंज़िल का चर्चा न राही का किस्सा
बस एक गर्द-ए-सफर में टहल रहा हूँ

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22 APR AT 21:53

मैं तन्हा चल रहा हूँ तेरी याद साथ है
मेरी ख़ामोशियों में कोई बात साथ है

तेरे जाने के बाद अब कोई राह नहीं
हर मंज़िल की तन्हाई में एक रात साथ है

ये राह-ए-इश्क़ है यहाँ मिलते हैं ग़म भी अक्सर
खुशी की एक झलक आँखों में बरसात साथ है

समझ ले तू भी ओ नादाँ ये दुनिया है सराए
यहाँ हर एक मुसाफ़िर के कुछ लम्हात साथ है

हर पल जो तुझको मैंने अपने दिल में रखा
उसी दिल में तेरा प्यार और हर याद साथ है

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21 APR AT 22:52

कभी जो था पाक दिल अब दाग़ों से भर गया
ज़माने की गर्दिशों में वो रंग उतर गया

वो हौसला जो कभी मुझमें पल रहा था
ज़माने की ठोकरों से आख़िर वो मर गया

वो रौशनी जो कभी राहों में जलती थी
हवा-ए-बेरुख़ी से उसका शरर उतर गया

बहुत संजो के रखा था हर एक ख़्वाब दिल में
हक़ीक़त की तपिश से वो मंज़र बिखर गया

तलाश करता है अब वो सुकून के लम्हे ज़ाकिर
जो शोर-ए-ज़िंदगी में कहीं पर ठहर गया

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21 APR AT 20:54

दिशा दिखाओ मन को भटक मत ओ नादान
समझ ज़रा फ़साने बदल दे तू पहचान

यह दुनिया एक मेला है रंग और रूप भरा
न कर अभिमान इतना कि मिट जाए निशान

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21 APR AT 10:33

अमीर होकर भी उसे हँसना नहीं आता
सच तो ये है कि उसे जीना नहीं आता

हर एक लम्हा वो जीता है तन्हा सा
उसे किसी के साथ रहना नहीं आता

कभी जो टूट के रोया था भीड़ में
उसे दर्द खुल के कहना नहीं आता

बड़ा सलीक़ा है लिबासों के चुनाव में
मगर ये सच है दिल को पहनना नहीं आता

वो इश्क़ से ग़ाफ़िल नहीं है ज़ाकिर
उसे मोहब्बत को जताना नहीं आता

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20 APR AT 0:24

यही एक बात न बदली
कि वक़्त ने हर लम्हे को बदला...
चेहरे, रिश्ते, मौसम, मंज़र
सब कुछ दरिया बन बह निकला...

पर दिल का ये सन्नाटा अब भी
उसी गली में ठहरा है शायद
जहाँ एक इंतज़ार था
जो आया नहीं और गया भी नहीं...

हर फ़साना मिट गया दास्तानों से
हर नक़्श बह गया बयानों से
पर एक धुंध-सा एहसास है
जिसे ना नाम मिला
ना अंजाम...

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20 APR AT 0:13

सुबह की धूप मुसकाई ख़्वाबों से आँखें मिलती हैं
उम्मीदें फिर से जाग उठीं जैसे कलियाँ खिलती हैं

कल जो टूटा था दिल अपना आज नए रंगों में है
ग़म की शाख़ों से भी आख़िर कुछ ख़ुशबू मिलती हैं

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18 APR AT 8:04

मैं सवाल की तरह उभरा हर अक्स में
जो जवाब सा लगे वो कोई और दिखता है

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