चुगलख़ोरों से परेशां क्या ही होना मेरी जान,
ग़र ना होती मंथरा राम को कौन राम कहता।-
यदि मन कैकेयी हुआ
कोई मंथरा भरेगी कान
फ़िर भूल जाएँगे करना
हम अपनों का सम्मान
अपनों के सम्मान से
होती है अमृत की वर्षा
कष्ट मिटे तन का
आशीष पाकर मन हर्षा
यही है मानुष जीवन में
सफल होने की कुंजी
जीवन धन्य है बने
मरण हो जाए बैकुंठी-
(दोहा)
सारा जग है क्षुब्ध हुआ, अद्य आपदा झेल।
और मंथरा खेलती , राजनीति के खेल ।।
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कैकेयी (सास)तो बदनाम हो गयी
कानों की कच्ची मोह की में गच्ची
😃😃😃😃😃😃😃😃
असली खेल तो मंथरा (देवरानी या जेठानी)
खेलती हैं😜
😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂
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घर-घर में है मंथरा घर-घर में षड़यंत्र
भाई-भाई में वैर हो फूंक रहे हैं मंत्र-
एक थी मंथरा और एक केकैयी भी,
साथ ही सीता थी तो वहीं मंदोदरी भी,
गर शूर्पणखा ना होती तो कथा कहाँ होती,
कहाँ फिर राम होते कहाँ उनकी व्यथा होती!-
भरोसा-यकिं इसलिए भी किसी पर
करता नहीं कोई',
कौन जाने कब मन किसका
दिख जाए बनकर कैकेयी',
और कौन भर दे कान कब किसका
बनकर मंथरा' कोई"..✍🏼आनन्द"-
आजही जगात रामायणातील "मंथरा" नावाच्या पात्राचे
प्रतिनिधित्व करणाऱ्या स्त्रिया अस्तित्वात आहेत म्हणून
घरोघरी रामायण घडतं व कारण नसतांना काहींना "वनवास" तर नाही पण "मनस्ताप" मात्र भोगावा लागतो
🫣😀🫣
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