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परहेज का बड़ा महत्व है
परहेज करें ‘सही’ से-
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ताज्जुब है वो अब भी हंस रहा है
अभी उसको गिरा के आया हूं
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मेरी आंखों में दो कांटे चुभे तो
एक उसको चुभा के आया हूं-
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जिसे बर्बाद होना है वो सच के घर बैठे
जिसे जीना हो चैन से, वो इधर बैठे-
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आदमी घोंसलों में आ गया है
विकास हौसलों में आ गया है
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जैसे जैसे ये भीड़ बढ़ती गई
अकेलापन दिलों में आ गया है
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शिकस्त भरोसे की लाजिम है
मसीहा कातिलों में आ गया है
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रौनकें अब सफर में है ही नहीं
वजूद मंजिलों में आ गया है-
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घोर कलयुग की तरफ जा रहे हैं
हम नए युग की तरफ जा रहे हैं
नफरतों को विकास कह रहे हैं
हम ये किस रुख की तरफ जा रहे हैं-
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चाय के प्याले अलग रखते हैं
हम कुछ मिसालें अलग रखते हैं
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मोहब्बत टांगकर खूंटी पे कहीं
हम इसको पाले अलग रखते हैं-
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वो कुल मिजाज थे लफ्जों से कुछ नहीं बोले
तल्ख लहजे की उन आंखों ने खूब डांट दिया-
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तेरे मिजाज में रक्खा हुआ है
बड़प्पन आज में रक्खा हुआ है
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कभी ये सिर कभी वो ढूंढ़ता है
विनय! क्या ताज में रक्खा हुआ है-