✍️✍️ मूरख का दिन यूं कटे जैसे मौज बहार ज्ञानी दिन भर सोच में कैसे बढ़े व्यापार ✍️✍️ तुच्छ सियासत को मिले माल पुआ अधिकार मेहनत दिन भर फांकती धूलों का अम्बार ✍️✍️ कलयुग में झूठा बढ़े सत्य कराए रार बंसी वाले है तेरी लीला अपरंपार
✍️✍️ ये बुरे दिनों की बातें हैं हम हंस-हंसकर लड़ लेते थे ✍️✍️ आपस में रोज झगड़ते थे और लड़कर फिर हंस लेते थे ✍️✍️ यूं तो घर में चीजें कम थीं पर खुशियों का अंबार बहोत ✍️✍️ जब रूंठ के कोने में रोते खुशियों से घर भर लेते थे ✍️✍️ ये बुरे दिनों की बातें हैं हंस-हंसकर हम लड़ लेते थे