राम कह ले या प्रेम कर ले
प्रेम मे प्रभु है बसे
कृष्ण कह ले या राधा भज ले
उसमें भी प्रेम है बसे
बस प्रेम कर ले घृणा को तज ले
इक प्रेम मे ही रस बसे.
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गले लगूं जब तेरे मैं,गर्म आगोश़ मे उबलूं मैं
इक इक अंग पिघले मेरा,कदमों मे तेरे बह जाऊं.
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करी नींद ने तौबा, करीब आंखों के अब नही आती
रात भर तनहाईयों से अक्सर, हम खेला करते है
ख्वाबों ने भी की तौबा, ना रहे सच्चे झूठे किस्से
बदल बदल करवटें, हम खुद को ही झेला करते है
आंखें बंद करते ही, परेशानियां छेडा़ करती है
कभी इस करवट,उस करवट रह रह ठेला करती है
है हिसाब किताब शिकायतें अपनों की बाकी मुझ पर
सामने आ आकर, सब अपना मेला भरती है
क्या करें क्या ना करें, तुम्हीं बताओ अये जिंदगी
जख़्मों से बस वो ही, रह रह खेला करती है
दर्द सीने मे उठे, और बह ना निकले पाये कहीं
जाँ मेरी अब खुदा से, अक्सर यही कहती है.-कनु
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दरख़्त था मैं, कभी जो हर भरा था
हरियाली का चारो ओर मेरे पहरा था
चहचहाते पक्षियों से आंगन गुंजता मेरा
संबंध हमारा सबसे ही से बडा़ गहरा था
समय की मार के कई थपेडे़ झेले मैने
कभी खुशियों के देखे कई मेले मैने
दीप इसने भी लगाये, गीत गाये उसने
प्रेम की बातें सुनी,और कई दर्द के झमेले मैने
कहाँ वक्त भी, यकसां रहा करते है
सूखकर ठूंठ हुआ, दर्द यही सहा करते है
अब नही कोई दीप, कोई मेले आंगन मेरे
छिटककर दूर दूर, सब ही रहा करते है
नज़रे सबकी, तिरस्कार लिये उठती है
काम का कुछ भी नही रहा, यही कहती है
अब पहले सा फलदार, मैं रहा पेड़ नही
थामें ज़मी, है जो साथ मेरे, मुझको वही सहती है.कनु
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कर्म काल का निर्धारण करता है, कर्म ही फलस्वरुप अच्छे और
बुरे रुप मे मनुष्य के समीप उपस्थित होते है।
इसमे भूतकाल और वर्तमान के कर्मफल संलग्न
रहते है।
सारा खेल मन का है, जिसका मन नियंत्रण मे है
भले आंखें कुछ भी देखे, मष्तिक मन को विचलित
करने वाले विचार नही भेज सकता।
मन को साधना आसान प्रक्रिया नही है। यह भी बहुत कठोर तप है।
इसलिये मनुष्य मन के आधीन रह उल्टे सीधे कर्म करता रहता है, जिसके परिणाम स्वरुप अच्छा, बुरा
समय समक्ष आता जाता रहता है।
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बचाओ मोरी मैया
घन घन बाज रहे बरतनवा
चुप, शालीन लगे बच्चनवा
संकट मे मोरे प्राण
बचाओ मोरी मैया
बिल्ली दुबकी,कुतरवा भागे
दोनो है इक दुजे के आगे
जो सोय रहे वो सबहीं जागे
इक दुजे चुप हो के ताके
कौन विपत्ति पडी़ आन
बचाओ मोरी मैया
हे मैया मोरी के का लाई
देखभार के नहीं तुम आई
का अग्निदेव की बहन ले आई
निसदिन बैठ के आग लगाई
मुंह फाड़ करे निष्प्राण
बचाओ मोरी मैया
बैठे बैठे हमका फुंके
जतन कौनो नाही चूके
जनमदिन पर मांगे बुके
खर्चा फालतू पर नाहीं रुके
प्रभु ले लेयौ हमरे प्राण
बचाओ मोरी मैया
नागिन सी फुफकारी मारे
हमरा होत है वारे न्यारे
कौन बचा जो हमका तारे
रोज चले मुख बाण
बचाओ मोरी मैया
बचाओ मोरी मैया-कनु
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😂महिला दिवस😂
क्रोध भरा तेरा रुप है देखा, नैना बरसे अंगार
मनवा थर थर कांपे, बीती बतलाई ना जाये
मनमर्जी तेरी घर मे चले है, कंठ सभी रुखा सूखा
लीला तेरी अपरम्पार, किसीसे दरषाई ना जाये
पुरुष इत उत दुम हिलावै, दुबक दुबक रहे ठाढ़
तुम्हीं बताओ यार, बीती यह कहीं कौन बताये
शक्ति बाण कहीं चल ना जावै कौन,गंवाये प्राण
क्रोध इनका है अपार, देवता भी है घबराये
कोई पांंव मे लोट रहा है, भागे ब्रम्हा विश्नू के पास
संकट मे सबके प्राण, लीला इनकी कही ना जाये.
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मोरे भोले होरी मनाय रहै
संग माँ के वो हरषाय रहै,
हिय मे भर के प्रेम का रंग
सुंदर मुखडा़ दरषाय रहे.
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अधरों पे रंग राग
सजनी गावै फाग
तन मन हिलौरे भरे
जिया लिये अंगडा़ई है
होरी लौट आई है
होरी लौट आई है
सजनी के नैन देखो,अधरन कमल खिले
उडे़ पलाश पुष्प, अधरों से जा मिले
पी के खातिर, मनवा तड़प उठे
सजनी को याद आज, पी की आई है
होरी लौट आई है
होरी लौट आई है
कहीं ढोल बाज रही
कहीं मृदंग राग गा रही
अबीर औ गुलाल से
आसमां भयो है लाल
पी के जिया मे सजनी समाई है
पी के घर आज सजनी आई है
होरी लौट आई है
होरी लौट आई है
मनवा बिन पंख उडै़
नैन नैन ठाढे़ तडै़
भीगी भीगी चोली बोली
बस करो पी प्रेम की दुहाई है
होरी लौट आई है
होरी लौट आई है.
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बहुत एहतराम करते है तेरा
शब- ए- बारात का दिन आया
मुआफी हमारी भी खातिर हो
मुहब्बती रंग हमारे हाथों आया
मुहब्बत रंगो की है महफिल
मैं दोनो हाथों भर भर लाया
तुम मुहब्बत मेरी लेकर, फिर खुदा के दर जाना
देख खुदा फिर बोलेंगे, तू रंगों मे क्यों ना रंग आया
मुहब्बत हो ग़र मुझसे, खातिर मेरे भी ले आना
सब मेरे है,मै सबका हूं क्यूं यकीं तू ना कर पाया
नहीं एतराज कुछ मुझको, आखिर वो भी तो जिंदा है
तू इंसानी तकरीरों मे फंस, खुदा को समझ ना तू पाया
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