मोहब्बत में चांद तारे तो सब तोड़ते है
तुम बस सावन भर मेरे लिए बेलपत्र तोड़ लाना 😍
हर हर महादेव
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बेल पत्र और फूल चढ़ाया
दूध,जल से अभिषेक कराया
एक चिलम गांजा बनाया
इस तरह अपने महाकाल को मनाया।-
आशुतोष तुम्ह अवढर दानी। आरति हरहु दीन जनु जानी॥
(गोस्वामी तुलसीदास)
हरहु अपर्णा रोग दुराशा । देहु अभय जीवन हित आशा ।।
आशिष अमिय नेह कर बरषा । श्रावण मास प्रकृति हिय हरषा ।।
कनक फूल फल बेल तिपाता । भांग क्षीर जल नाथ सुहाता ।।
माथ किशोर सुधाकर सोहे । जटा गंगधारा अवरोहे ।।
पिंगल नाग सुशोभित ग्रीवा । नीलकंठ भव गरल तु पीवा ।।
गौरकपूर देह प्रिय राखी । लाज राखि प्रभु भगिनी राखी ।।-
एक रात जब वो व्यस्त था
मैं उसके पीठ पर कविता लिख रही थी
मैंने उतनी तल्लीनता से
कभी बेलपत्र पर राम भी नहीं लिखा था
अंगुलियों की पोरों में
उस रात कोई श्याम बसा था शायद
जिसे पूरी दुनिया बस राधा लग रही थी!
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श्रावण के हर सोमवार
तड़के भोर भिनसहरे ही,
घर से कुछ दूरी पर है जो,
मैं उस मंदिर में जाती हूँ।
आज पूजन की थाल लिए
पाँव चले थे मंदिर को
किन्तु मन उदास बड़ा था
भोले के पूजन के लिए
पास मेरे बेलपत्र नहीं था।
क्या बेलपत्री के बिना,वो
मेरी पूजा स्वीकार करेगा?
सोच विचार में डूबा मन
मंदिर की सीढ़ी तक आ पहुंचा था
तभी एक स्त्री ने पुकार लगाई,
आपको बेलपत्र चाहिए ?
मुड़कर देखी दोनों हाथों में
थी वो ढेरों बेलपत्र लिए खड़ी।
हर्षित हो उठा मेरा मन,
कोटिशःधन्यवाद प्रभुजी!
-रेणु शर्मा
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भंग धतूरा धूप बेलपत्र से
शिव गोरा की उपासना करती।
हर सौभाग्यवती हरतालिका
तीज का निर्जल व्रत करती।-
शिव कैलाशी
घट-घट वासी
तन-मन अविचल
भोले हैं अविनाशी
भाल भस्म रमाये
तन में मृगछाल
गल में मुंडमाल
कर सदा विराजे
डमरू और त्रिशूल
दुग्ध-घृत-मधु
प्रिय रुद्र सदा
आक धतूरा बेलपत्र
श्रावण मास निहाल
भक्त ह्रदय बसत
भोले अति कृपालु-
हल्दी मेहंदी की उम्र में भस्म से प्रेम कर बैठे
प्रेम पत्र पढ़ने की उम्र में बेल पत्र से प्रेम कर बैठे-
एक सूखा पेड़ खड़ा है अब तक,
सिंदूरी सन्ध्या के आंगन में,
कुछ पत्ते डाली पर लगे हैं अब तक,
कुछ बिखर गए नभ अंचल में,
मैं सन्ध्या पूजन को निकली जब,
देखा शिव मंदिर के प्रांगण में,
था शिव भक्त खड़ा वो अब तक,
एक मनवांछित वर की आस लिए,
मैं मौन खड़ी स्तब्ध देखती,
उसके तप बल की ज्योति प्रबल,
जल रहा था उसका अंग_अंग,
खुद को करता वो और प्रबल,
जब त्याग दिया सब कुछ अपना,
भोले हो गए उससे प्रसन्न...
बोले मांगो वर मुझसे आज धरा हो धन्य_धन्य,
वो जर्जर था निसहाय भी था... फिर भी बोला वो शक्ति भर,
मैं मांगू फिर से हर शाख हरी,
हो मुक्ति भरी हर चाह मेरी,
जब तक खड़ा रहूं इस प्रांगण में,
प्रभु वंदन कुरूं बस रात_दिवस,
एक रोज का सूखा वृक्ष अब बेलपत्र बन लहराता है,
प्रभु चरणों में चढ़कर अब अपना मान बढ़ाता है,
मेरा मन भी व्याकुल था जब चली थी संध्या वंदन को,
देखा जब ये विश्वास प्रबल तो भूल गई हर उलझन को,
शिव की भक्ति है भाव प्रबल हर लेती है उन्मात प्रबल,
हर लेती है सबकी पीड़ा जब मन में हो विह्वल भाव प्रबल...
#मेरीसोच@sudha-