वंदना मोहन दुबे   (वंदना मोहन दुबे)
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Joined 10 January 2019


Joined 10 January 2019


आखर-आखर गूँथकर, शब्दों के सुमन चढ़ाऊँ।
गौरी पुत्र गणेश आपके,सम्मुख शीश नवाऊँ।

भावों की हल्दी माड़कर,अंतस्तल में आकार दिया।
शिव सपूत गजानन तेरा,आस्था से अलंकार किया।
दिव्य दिवस पुनीत आज,वंदन कर कृपा कमाऊँ।
आखर-आखर गूँथकर, शब्दों के सुमन चढ़ाऊँ।

हरी उमंगें हरी दूब सी, उनसे करूँ प्रसाधन।
पान समान ह्रदय से, करती हूँ आराधन।
कल्पनाओं के मोदक से, मैं तुमको भोग लगाऊँ।
आखर आखर गूँथकर, शब्दों के सुमन चढ़ाऊँ।

भाव सरित बहे सदा, स्नेहांजलि है ये अर्पित।
त्रुटियों का शमन हो,सृजन रहे आलोकित।
अनुकंपा की चाह लिए,काव्य कुसुम चढाऊँ।
आखर-आखर गूँथकर,शब्दों के सुमन चढ़ाऊँ।




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मुंशी प्रेमचंद जी जन्मतिथि विशेष 🙏

लमही गाँव जन्म हुआ,सुनाम धनपत राय,
प्रेमचंद जी की कलम ने,रचे महान अध्याय।

आम जन की पीर लिखी,लिखा गबन गोदान,
कलम पुरोधा मुंशी जी, का साहित्य है महान।

ईदगाह की कहानी, हामिद का किरदार,
सीख प्रेम-त्याग की दी,रखो सब परिवार।

कालजयी कथाएँ लिख,हिंदी को दिया मान,
उपन्यास सम्राट कहाय,उर्दू का भी था ज्ञान।

महान लेखनी सम्मुख, करबद्ध है प्रणाम,
प्रेरणा पढ़ मिले सदा,भाव मिले अविराम।
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ना झलक ना दीदार,
सीधे हलक पे करे वार।
जो घर ना बैठे हम आप-
होगा श्वासों पे प्रहार।
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#लॉकडाऊन
#कोविड

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धानी चूनर ओढ़े धरा,
निखरे नीला आकाश।
फागुनी बयार बह रही,
दहके विपिन पलाश।
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नज़रों के तराज़ू पे ग़ैरों को तौलना शग़ल है लोगों का,
हदें ख़ुद की भूल ग़ैरों पे तंज कसना शग़ल है लोगों का।
ज़रा सलीक़े से पेश होकर उन्हीं की ज़ुबां में जवाब दे तो-
तिलमिलाकर बेअदबी के तमग़े से नवाजना शग़ल है लोगों का।
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पीली साड़ी पहनकर निखरे तुम्हारा रूप
फूल केशों में सजे दमके दप-दप रूप
तुम्हें देख एेसा लगे जैसे फगुनहटे
की खिली सुनहरी चटख नहाई सी धूप

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अपने सपनों के लिए, जीता है इंसान।
हारना, थकना,उठना,मूल मंत्र पहचान।।

निराशा शिखर पर रहे,सदा समर्पित भाव।
लगन प्रयासों में रहे, सबसे बड़ा सुझाव।।
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दोहे

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जहाँ से लौटना मुश्किल हो।

मंज़िल तो हो नज़दीक मगर,
दिल की खुशियाँ बोझिल हों।

सफर वो ही अच्छा है जहाँ,
साथी हो न केवल मुक़ाबिल हो।

कभी हिसाब करने बैठो तो,
खाली न रहो हाथ में हासिल हो।

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माँ की पुण्यतिथि

पलकों पर जो बॉंध टिका था,संयम टूटा फिर बह निकला।
जब-जब तुमको याद किया माँ-अक्षर आँसू में डूबकर निकला।

अंबर से असंख्य दुआएँ आती हैं,अलाएँ-बलाएँ सब टल जाती हैं।
जब-जब तुमको सिमरूं माँ-अपार शक्ति मुझे मिल जाती है।

मन-बगिया में स्मृति की फुलवारी,नेह धार से सिंचित है उर-क्यारी।
स्नेह-सुमन चढ़ा तुमको पूज लिया-फिर तस्वीर उठा तुम्हें अंक में भींच लिया।

माँ देखो तुमको फिर याद किया।
माँ देखो तुमको फिर याद किया।
🙏🙏🙏🙏🙏

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माँ की पुण्यतिथि

मन को पंछी बना,चिठिया माँ के देस भेजी है।
उस चिठिया में हर बात,मन की लिख भेजी है।

हर आखर प्रेम की,अश्रुधार से सींचा है।
माँ मैंने उस पाती में,संवेगों का उदगार लिख भेजा है।

उस पंछी से वात्सल्य में,पगी कुछ बातें कर लेना।
मन-बरगद की शाख़ों में,बिठा ठंडी छाँव में झुला देना।

कुछ राह दिखा देना,उलझे प्रश्नों को सुलझा देना।
अपनी अमृतबानी का रस,प्यासे मन पंछी को पिला देना।

उस आख़िरी रात जो बिन मिले,बिन कुछ कहे चली गई थी।
उसका कोई संदेसा हो तो,माँ तुम ज़रूर भिजवा देना।
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