बेचैनी क्यों हर पल है?
जाने कैसा दौर है ये?
जिसको देखो पागल है!
आज जियो जीवन अपना,
जो होगा,होना कल है..!
चिंताओं की धुंध में गुम,
मन आवारा बादल है..!
स्वतंत्र ख्यालों में जैसे,
लहराता सा आँचल है..!
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दर्द होगा , बेचैनी होगी, बेकरारी भी होगी
अगर मोहब्बत करते हो तुम्हें भी ये बिमारी जरूर होगी ।।-
वहां अब उस शहर में
जिसमें सपनों के धागे बुने थे ,
रात के पहर में !
जहां खाई थी वो कसमें
चांद को साक्षी मानकर !
वादे किए थे वहां
तेरी रूह को जानकर !
अब बढ़ जाती है बेचैनी
और फासले हंसते हैं ,रोती है
नजदीकियां अकेला मानकर !
अब बस बची है मेरे पास खाली
दवात और कलम सच जानकर!-
यू ना देखा करो तुम चाँद को इख्लास(प्रेम) नजरों से..
कि यह रोग जानलेवा होता है ।
निशान जिस्म पर नुमा नहीं होते ...
मासूम दिल इज़ितराब(बेचैनी) में रहता है।-
उदासी.... बेचैनी.... घुटन.... तन्हाई
उफ्फ़ ये ख़्वाहिशें मुझे कहाँ ले आईं!
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तुम्हें पाने की
तुम्हें अपना बनाने की
तुम्हारे रूह में बस जाने की
तुम्हारे सांसों में समाने की
आपकी मुहब्बत में हुए हम जैसे
वैसे ही आपको पागल बनाने की
खुली आँखों से देखा जो सपना
उसको हकीकत बनाने की
तेरी याद में तड़पे अबतक
तुम्हें पास में लाने की||-
न जाने क्यों फ़िर बेचैन हो उठा ये दिल मेरा,
लगता है आज फ़िर उसे मेरी ज़रूरत होगी।-
धीमी आंच पर पक रहीं हैं बेचैनियाँ,
शायद इस बार ज़ायके में थोड़ा सुकून मिल जाये।-