ये दुनिया बहुत छोटी है!
(अनुशीर्षक पढ़ें)-
On philosophy, reading and
whatever I can think of.
(Read Caption)-
"भला मौत और नींद का भी
कोई रिश्ता हो सकता है?"
(अनुशीर्षक पढ़ें)-
रेगिस्तान को रेगिस्तान होने में वक्त लगता है। उसे पहले कई सावन गुजारने पड़ते हैं, बिना बारिश के। उसे कई बारिशों की 'ना' सुननी पड़ती है। हर 'ना' के साथ वो अपने अंदर की नमी खोता जाता है। अंत में कुछ बचता है तो फ़क़त रेत। जिसमें ना नमी होती है, ना नमी को सोखने की ताकत। ऐसे में अगर कोई बारिश उस पर तरस खाकर कुछ बूंदें भी बरसा दे, तो वो उसे सैलाब सी लगती हैं। पर उसकी रेत पहले ही अपनी नियति को स्वीकार करे बैठी होती है। रेगिस्तान चाहकर भी बारिश को नहीं सहेज सकता। उसे बारिश को जाने देने पड़ता है। बारिश भी ठान लेती है फिर कभी किसी रेगिस्तान पर ना बरसने की। ऐसे में बेहतर है कि रेगिस्तान और बारिश दूर ही रहें, कभी मिले ही ना।
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