उसकी मेरी मोहब्बत में फर्क बस इतना है उसे मैं पसंद होते हुए पसंद नहीं क्योंकि मुझमें खामियां बहुत हैं और मुझे वो सारी खामियों के बावजूद भी बहुत पसंद है।।
न तुझे पाना चाहता हूँ न खोना चहता हूँ बस तेरे साथ हंसना तेरे पास रोना चाहता हूँ बस गया है तू ऐसे मेरे मन में कि ताउम्र तेरी तस्वीरें संजोना चाहता हूँ माना की मोती तू,मिलना तेरा लाज़िम नहीं मैं तुझे अपने सफ़र के धागे में पिरोना चाहता हूँ है मालूम मुझे तुझे मैं कबूल नहीं तू चाहे मैं ये चाहूँ ये मेरा असूल नहीं लेकिन मगर हैं हज़ारों इस फ़साने में मशला बस इतना हैल, कि तेरा ना हो कर भी बस तेरा होना चाहता हूँ।।
इश्क़ होने का एहसास इश्क़ होने से भी बूरा होता है बात ये तब पता चली जब इश्क़ वाकई होने लगा ना मुझे पड़ी थी इश्क़ की तब ना दिखा उसमें कुछ खास कभी न जाने कब मेरा ये मन दे बैठा उसे अपना सभी अब द्वंद मची है दो अंगों में है कौन गलत और कौन सही अब हठ कोई करे जीते कोई प्रेम है खत्म तो होगा नहीं।।
भीड़ में जब खुद को अकेला पाया तब जाना की क्या हूँ मैं आसमान का सितारा नहीं न किसी को दिखने वाला हवा हूँ मैं दुनिया की हर ताल समझता चाल समझता उनकी चालों पे चाल मैं चलता फस उधेड़बुन इस दुनिया की भूल गया हूँ खुद को हीं है नहीं समझ अब मुझको कि जाने अब कहाँ हूँ मैं मतलबी लोगों से मिलकर हो गया मतलबी मैं भी ज्यादा हूँ सफेद-काली इस दुनिया में मैं कितने शतरंजों का प्यादा हूँ||