तुम्हरी शरण के सिवा, अब मेरा ठिकाना कहीं नहीं,
बस पार करदो मेरी नौका और अपना है नहीं।
नाव भंवर में डूब रही अब तो सुनो पुकार,
नाम लूं तो प्रभु आ जाओ अब न कोई हमार।
हे शिव दीन दयालु प्रभु, करिये कृपा महान,
कभी न भूलू आपको यही दीजिये ज्ञान।
मन डोले प्रभु चरणों में, कपट कीजीये नष्ट,
कभी न भटकूँ जगत में, हरो आपदा और कष्ट।-
मतलब के इस दौर में खुदगर्ज़ी काम न आये,
लोग षड़यंत्र रचकर सोचते हैं कि उनका नाम न आये।
परिश्रमों से बुलंदियों का सफ़र भले ही मुश्किल हो,
किसी को गिराकर आगे बढ़ना हो, ऐसी शाम न आये।-
इम्तिहानों की अग्नि में तपकर, फ़िर भी मैं तो स्वर्ण रहूंगा,
छल से मुझको मात मिली है, फ़िर भी मैं तो कर्ण रहूंगा।
सूत बताकर द्रोण ने मुझको खड़ा किया फ़िर कोने में,
जात दिखा रहे वो मुझको, जो ख़ुद जन्मे थे दोने में।
प्राणों का तो भय नहीं था पर भय था मित्रता खोने में,
परम शौभाग्य कभी मिल नहीं पाया कुंती पुत्र होने में।
सूत जाति के होने से, द्रौपदी संग प्रीत न हो पाई,
वचन निभाना और दानी होना, अंत ये रीत न हो पाई,
प्राण का जाना निश्चित था और अंत में जीत न हो पाई,
पर हार कर भी सदियों तक मैं, सबके मुख पर वर्ण रहूंगा,
छल से मुझको मात मिली है, फ़िर भी मैं तो कर्ण रहूंगा।
सारथी बनाया कृष्ण को और रथ पर बिठाया हनुमान को,
साबित करने ख़ुद को श्रेष्ठ, मुझसे लड़वाया भगवान को,
फ़िर कहते हो श्रेष्ठ तुम्हीं हो, क्या कहें इस अभिमान को,
वीर योद्धाओं के बगिया का, मैं सबसे उत्तम पर्ण रहूंगा,
छल से मुझको मात मिली है, फ़िर भी मैं तो कर्ण रहूंगा।-
तेरे मेरे प्यार का कुछ ऐसा नाता है,
अब तेरे सिवा न मुझको कोई भाता है।
मेरी रक्षा करते हैं दोनों हाथ तेरे,
मैं बालक हूँ और तू मेरा दाता है।
हर पल हर वक़्त रहना तू साथ मेरे,
दूर होने से तुझसे जी घबराता है।
तुम्हीं से ये दिन है, तुम्हीं से ये रातें,
धन्य वही है जो तुझको पाता है।-
ढूंढ न पाता था मैं उसको,
वो झरनों सी बहती थी।
दर-बदर भटकने पे पता चला,
झील के उस पार वो रहती थी।
मैं हर रोज़ उससे मिलने जाता,
वो भी एक दिन मिलने आई।
उड़ती ज़ुल्फ़ें, नैन कजरारे,
क्या हिरणी जैसे चलती थी।
जब जब मुझसे मिलने आती,
फ़िर यही वो अक़्सर कहती थी।
म्हारा बालम थारे जैसा हो,
मैं ऐसा ही चाहती थी।-
कुछ ऐसा रिश्ता है मेरा तुम्हारा, मुझमें हो तुम और मैं ख़्याल तुम्हारा।
तुम अगर रती तो मैं कामदेव, तुम अंश सती का मैं महाकाल तुम्हारा।
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वो रब तुझे सबकी बुरी नज़र से बचाये,
तुझे कहीं किसी की नज़र लग न जाये।
वो तेरा साड़ी पहनकर मेरे पास आना,
हाय यही वो अदा है जो मुझे दीवाना बनाये।
तुझे कोई देखे तो जलेगा मेरा दिल,
ख्यालों में भी न कोई तेरी ख़ुशबू चुराये।
ये दुनिया के सच से मैं वाकिफ़ हूँ जाना,
इसलिए रखता हूँ तुझको पलकों में छुपाये।
तेरे बिन मैं जीने का सोचूँ भी कैसे,
तू साथ रहे हमेशा यही माँगता हूँ दुआयें।-
भगत, सुखदेव, राजगुरु को, चौबीस को फाँसी आई थी,
फ़िर डर के मारे अंग्रेज़ों ने, फाँसी की डेट घटाई थी।
जलियांवाला बाग की घटना, उनके हृदय को नोंच रखी थी,
आज़ादी बनेगी मेरी दुल्हन, ये भगत सिंह ने सोच रखी थी।
मार के जॉन सांडर्स को, फ़िरंगी ख़ेमा हिला डाला,
मात्र इंक़लाब के नारों से, हाहाकार मचा डाला।
116 दिन भूख हड़ताल से, फिरंगियों की मंशा तार हुई,
गोरों ने टेके थे घुटने और उसी दिन गोरों की हार हुई।
भगत सिंह सा लाल हो, ये स्वप्न बने कई पितरों के,
स्वतंत्र कर गए देश को, चूम के फाँसी संग मित्रों के।
पढ़ भी न पाये अंतिम पन्ना और बोले चलो गमन करते हैं,
तीनों स्वतंत्रता सेनानियों को, हम शत शत नमन करते हैं।-
शेर की एक दहाड़ से, हर दुश्मन अधीर होता है,
सदियों में पैदा एक "चंद्रशेखर" सा वीर होता है।
काकोरी कांड करके ब्रिटिश साम्राज्य हिला डाला,
एक अकेले सौ से भिड़कर, गोरों को धूल चटा डाला।
आज़ाद हूँ, आज़ाद रहूँगा ऐसा उनका नारा था,
शौर्य देखकर आज़ाद का, हर एक फ़िरंगी हारा था।
अज़माने को अपनी ताक़त, वन टू या फोर बुलालो,
हाथ न आऊंगा फ़िरंगी के, चाहे जितना ज़ोर लगालो।
अपनों ने ही छल किया और वो दिन भी तब आ गया,
ख़ुद मार गोली कनपटी पे, अपना वचन निभा गया।
अपने लहू से इस धरती को, सींच कर वो चला गया,
आज़ाद करवाना है भारत को, याद सबको दिला गया।
पुण्यतिथि पर शत शत नमन भारत के वीर सपूत को🙏🏼-
अपने मन में झाँक मुसाफ़िर, करले शिव का ध्यान,
मन से उसको जप ले बंदे, शिव ही दया निधान।
अंतर्मन में छुपा खज़ाना तुझको तो मिल जाएगा,
ध्यान लगे जब शिव से तेरा, तू उसको पा जाएगा।
दिल से गर तू शिव गायेगा, बन जायेंगे सारे काम,
मन से उसको जप ले बंदे, शिव ही दया निधान।
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