सुसि ग़ाफ़िल   (© सुसि 'ग़ाफ़िल'🍁)
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लगातार लिखते रहो !
वरना तुम्हारा अंदर बाहर आने से पहले तुमको निगल जाएगा ।

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Joined 13 September 2020


लगातार लिखते रहो !
वरना तुम्हारा अंदर बाहर आने से पहले तुमको निगल जाएगा ।

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Joined 13 September 2020

ज़िंदगी जीणी बोझ ओरी स
आँख खौलणी मौत ओरी स
मेहँदी त नाम लिख क बैठी थी वा
ईब नाम मिटोना ज़िंदगी की बड़ी चोट ओरी स

रातां न चाँद देखूँ
भूख ना लागे आपनी आंद देखूँ
डूबदा सूरज न देखूँ जौहड़ प बठ क
तू ना दीखै मनै कितोड़े भी
तन्नै मैं अपणे घर की काँदा म देखूँ

“ ग़ाफ़िल “ मर गा राख बुझा क
जान चाल पड़ी ध्यान हटा क
तोआ माडा होग्या बूँदां म आ क
बाबू पागल होग्या बेटा न समझा क

नस काट क लहू कौनी सींचा जाँदा
धक्का त तेरा हाथ कौनी खींचा जाँदा
बैठकां म बैठ क पीऐ जाऊँ सूं दारू रातां न
तैरी याद के बिना ईबी साँस कौनी खींचा जाँदा |

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ना जीतना छोड़ सकते, ना हँसना छोड़ सकते ।

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अफ़सोस की बात है तीस की उम्र में बचपना गया, ख़ुशी इस बात की है चला तो गया ।

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जीतने का मज़ा भी तभी है जब लोग हार की रेखा खींच कर सोने जा चुके हों ।

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प्रेमी अगर ईश्वर होते तो प्रेमिकाओं की हर इच्छा को पूरा करते, अफ़सोस प्रेमी मानव है कभी कभी वह उनके अश्रुओं को देखने के अलावा कुछ नहीं कर सकता ।

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उबड़ ख़ाबड़ रास्तों पर नंगे पाँव रखने से हमें ज़िंदगी की बारीकी का पता चलता है, मैं अक्सर रखता हूँ शायद मुझे आनंद आता है ।

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ज़ख़्मी कंधों को सहलाते हुए हाथ ईश्वर के होते हैं ।

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कुछ कार्यों को पूरा करने के लिए मनुष्य को पुनर्जन्म लेना पड़ता और कुछ को अधूरा छोड़ने में ही मुक्ति है ।

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कोई भी दौड़ ऐसी नहीं है जिसके पूरे होते ही ज़िंदगी आसान हो जाए ।

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अफसोस की प्रतिलिपियां फिर जंगल के वर्चस्व को खा गई ।

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