मिलों दूर इधर-उधर बहुत पास बहुत
पास बहुत दूर यही आलम सांझ का
बेगम बिना राजा तड़प हरदम हरपल
राजा बहुत दूर-दूर क्लेश के महल में
तंग हवाओं के शिखर पर बैठे कबूतरों
की चुगलियों में जिक्र दर्द का बेइंतहा
सुनो सुनो बस रहने दो रुको रुको जरा
कई बार कबूतर ने यह बात दौहराई थी
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