ज़िंदगी जीणी बोझ ओरी स
आँख खौलणी मौत ओरी स
मेहँदी त नाम लिख क बैठी थी वा
ईब नाम मिटोना ज़िंदगी की बड़ी चोट ओरी स
रातां न चाँद देखूँ
भूख ना लागे आपनी आंद देखूँ
डूबदा सूरज न देखूँ जौहड़ प बठ क
तू ना दीखै मनै कितोड़े भी
तन्नै मैं अपणे घर की काँदा म देखूँ
“ ग़ाफ़िल “ मर गा राख बुझा क
जान चाल पड़ी ध्यान हटा क
तोआ माडा होग्या बूँदां म आ क
बाबू पागल होग्या बेटा न समझा क
नस काट क लहू कौनी सींचा जाँदा
धक्का त तेरा हाथ कौनी खींचा जाँदा
बैठकां म बैठ क पीऐ जाऊँ सूं दारू रातां न
तैरी याद के बिना ईबी साँस कौनी खींचा जाँदा |-
लगातार लिखते रहो !
वरना तुम्हारा अंदर बाहर आने से पहले तुमको निगल जाएगा ।
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