किस हद तक चलूँ इन यादों के सहारे
अब तो छोड़ दे मुझे मेरे सहारे
टूट ही जाएगी बोझ ढोते-ढोते
बेल कब तक टिकेगी लकड़ी के सहारे
पड़ रही है सीलन दिवारों में
घर अब नही चलते बुजुर्गों के सहारे
अलग हो गई इक नज़र की मोहब्बत
कोन हमेशा साथ रहता चेहरे के सहारे
कर दे मुझे आसमां का तारा,ऐ खुदा
मैं कबतक चाँद देखूँ जमीं के सहारे-
हँस देती है खिलखिलाकर सारी क़ायनात
जब घर के बुजुर्ग सच में ख़ुश होते है....-
किसी "बुजुर्ग" के चेहरे पर पड़ी "झुरियां"
बस उनके "तजुर्बे" की "कहानी" नहीं होती,
वो होती है उस "बुजुर्ग" के पूरे "उतार-चढ़ाव"
भरे जीवन का "कठिन मानचित्र"..!!!!
(:--स्तुति)-
ये वक्त समझाने का नहीं ,समझने का है
बच्चे नहीं बूढ़े ( माता पिता) है
सिखाने का नहीं सीखने का है
वक्त कम है तर्जुबा ज्यादा है
समय सुनाने का नहीं ,सुनने का है ।।
मत करो उन्हें बदलने की कोशिश
तुम्हे बनाने ( कैरियर) में की है बहुत कोशिश
बहुत किया संघर्ष,
ना देखा धूप, ना बरसात, हर मौसम में की तुम्हे बनाने की कोशिश
ना बदलों उनको, नहीं कर पाते इस उम्र में ढलने की कोशिश
ना करो कुछ, बस करो सेवा लो दुवां और कुछ करने का नहीं, बस यही करो कोशिश
।।अनिल प्रयागराज वाला।।-
बुजुर्गों के साथ कुछ पल तो बिताओ
उनको प्रेम भाव से गले लगाओ
उनके विचारों को दिल से अपनाओ
भगवान की तरह उनका सम्मान कराओ
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दर्द दिल में नहीं जिंदगी में है ...
जिसका इलाज न है किसी वैद्य के पास ,
ना किसी खुदा की बंदगी में है ...-