AMIT ANURAGI   (अमित 'अनुरागी'✍)
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Joined 19 June 2017


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Joined 19 June 2017
12 AUG 2021 AT 13:14

तिरे हुश्न के इतने कायल हैं।
दिल सबके घायल-घायल हैं।

हर शख़्स के ख़्वाबों में है तू,
हर शख़्स की आँखें बादल हैं।

ईशान समझते हैं तुझको,
ये लोग भी कितने पागल हैं।

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6 AUG 2021 AT 7:40

हर इक मसअले का है हल
'तुम्हारा कान का झुमका'

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19 JUN 2021 AT 17:06

आकर मुकाम पर महसूस हुआ,
मुझे सफ़र में रहना चाहिये था।

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29 MAY 2021 AT 17:12

अगर
तुम्हें लगता है
कि तुम सही हो,
तो यक़ीनन
तुम सही होगे,
सिर्फ़ अपनी
कहानी में।

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27 JAN 2021 AT 11:14

तुम्हारी ज़ुल्फ़ से हो गये हैं हम।
अब संभाले नहीं सम्भलते हैं।

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2 JAN 2021 AT 8:56

मैं लिखूँ तुझको तू गुनगुनाया कर मुझे।
कभी-कभी ऐसे भी मनाया कर मुझे।

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22 MAY 2020 AT 21:07

आँखों में रखते हैं समंदर लोग।
कितना ग़म रखते हैं अंदर लोग।

उसकी बातों पर यकीं मत करना।
दिल के काले होते हैं सुंदर लोग।

औरों से तो गिला ही क्या करें।
अपने ही रखते हैं खंज़र लोग।

ये शोहरतें पहचान नहीं अक्सर।
मलबों में पलते हैं सिकंदर लोग।

तज़ुर्बा कहता है बरबादियों का।
बड़े शौक़ से देखते हैं मंज़र लोग।

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30 DEC 2019 AT 20:16

खो जातीं हैं नदियाँ समंदर से मिल के।
लाज़िम है के "प्रेम" बराबर में हो।

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24 NOV 2019 AT 18:52

एक शख़्स बनाता है दीवारों में घर।
औलादें बना देती हैं घरों में दीवारें।

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5 SEP 2019 AT 15:11

चेहरों को पढ़ने का हुनर रखिये।
सारे शहर की ख़बर रखिये।

कब किसके खून में आ मिले मक्कारी।
दोस्तों पर भी नज़र रखिये।

आवाज में गुरुर, निगाहों में गुमान।
भले ही थोड़ा सा मग़र रखिये।

सफ़र ख़त्म होने का इल्म नहीं होता।
साथ अपने हमसफ़र रखिये।

मंजिल आ गले मिलती है इक रोज।
बशर्ते थोड़ा सबर रखिये।

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