Abhishek sharma   (Untoldemotion-Abhishek)
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Joined 30 March 2020


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Joined 30 March 2020
24 DEC 2022 AT 17:56

मात्र ये दीवारें, बाड़, तारबंदी ही
निर्धारित नहीं करती है सीमाओं को
कुछ बेजुबानों के लिए
लक्ष्मणरेखा है ये सड़कें भी
जिन्हें लाँघते हुए
इन्हें हाथ धोना पड़ता है
अपने प्राण, पनखेरूओं से।

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1 MAY 2022 AT 13:39

एक चित्रकार
सजाता है
एक चित्र को,
ब्रुश और रंग से।
एक कवि
रचता है एक
काल्पनिक दुनियां
कविताओं की,
कागज और कलम से।
ठीक वैसे ही
रचा जाता है
संसार का सारा
संसारिक और भौगोलिक सुख
आरी, दरांती, करोति,
कुल्हाड़ा, कुदाल, करण्डी,
फावड़ा, हथौड़ा और
मजदूर के पसीने से।

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19 MAR 2022 AT 19:55

बेशक छुइये आसमानों की बुलंदियों को पर,
धरती से भी हाथ मिलाते रहिए।
ओ बड़े-बड़े शहरों में रहने वालों,
कभी-कभी अपने गांव भी आते रहिए।।

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18 MAR 2022 AT 14:12

डर नहीं लगता है अब मुझे इन रंगों से,
मैंने अपनो को कई रंग बदलते देखा है।

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20 JAN 2022 AT 20:14

जी तरयां
भगवान शंकर री जटा हूँ
गंगा जी निकळया
अर जगत रो उद्धार करयो
वी तरयां
माणस रे मसतक स्यूँ
निकळयो है "साहित्य अर कविता"
जको लारलै अनेकां साला हूं
अर आन आळे अनेकां साला तक
करसी सगळी माणस जाति रो उद्धार।

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5 JAN 2022 AT 1:02

आज रिश्तों पर नफ़रतें इस क़दर हावी है।
घरों में नहीं, लोगों ने दिलों में दीवार बनाई है।।

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30 DEC 2021 AT 11:52

"कविता"

जियां
बोरियां हु लदू-पदु
झाड़की ने फंफेडया हूँ,
तड़-तड़, तड़-तड़, तड़-तड़
झड़े है बोरिया।
बियां ही
मने फंफेडया,
झड़ सी शबद
अर बां शबदां री बन सी कविता।
क्यूंके कविता समायोड़ी है मेर'अ
रग-रग माय।

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6 DEC 2021 AT 17:11

देर से ही सही पर वीराने में प्रभात तो हुई।
छोटी ही सही पर एक नई शुरुआत तो हुई।।

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31 OCT 2021 AT 15:06

ये महोब्बत आशिकों की नींद, सकूँ, चैन
और भी पता नहीं क्या क्या निगलेगी,
किसी को अपने प्यार पर वाह वाह तो
किसी की प्यार में आह निकलेगी।
खुशकिस्मत है जहां में वो हुआ इश्क मुकम्मल जिनका,
वरना बिछड़ कर महोब्बत में
किसी की डोली किसी की अर्थी निकलेगी।

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21 SEP 2021 AT 23:57

गर है इश्क़ तो खामोशियाँ सुना करो,
यूं ना वेबजह ख्यालों के ताने बुना करो,

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