मात्र ये दीवारें, बाड़, तारबंदी ही
निर्धारित नहीं करती है सीमाओं को
कुछ बेजुबानों के लिए
लक्ष्मणरेखा है ये सड़कें भी
जिन्हें लाँघते हुए
इन्हें हाथ धोना पड़ता है
अपने प्राण, पनखेरूओं से।-
मैं कोई लेखक या कवि नहीं हूँ, बस लोकडाउन में लिखना शुरू किया है।
अगर आप सभी महानुभ... read more
एक चित्रकार
सजाता है
एक चित्र को,
ब्रुश और रंग से।
एक कवि
रचता है एक
काल्पनिक दुनियां
कविताओं की,
कागज और कलम से।
ठीक वैसे ही
रचा जाता है
संसार का सारा
संसारिक और भौगोलिक सुख
आरी, दरांती, करोति,
कुल्हाड़ा, कुदाल, करण्डी,
फावड़ा, हथौड़ा और
मजदूर के पसीने से।-
बेशक छुइये आसमानों की बुलंदियों को पर,
धरती से भी हाथ मिलाते रहिए।
ओ बड़े-बड़े शहरों में रहने वालों,
कभी-कभी अपने गांव भी आते रहिए।।-
डर नहीं लगता है अब मुझे इन रंगों से,
मैंने अपनो को कई रंग बदलते देखा है।-
जी तरयां
भगवान शंकर री जटा हूँ
गंगा जी निकळया
अर जगत रो उद्धार करयो
वी तरयां
माणस रे मसतक स्यूँ
निकळयो है "साहित्य अर कविता"
जको लारलै अनेकां साला हूं
अर आन आळे अनेकां साला तक
करसी सगळी माणस जाति रो उद्धार।-
भगवती दुर्गा माँ की कृपा से
आज जीवन के 27 वर्ष पूर्ण हुए....
जय दुर्गे🙏🙏-
आज रिश्तों पर नफ़रतें इस क़दर हावी है।
घरों में नहीं, लोगों ने दिलों में दीवार बनाई है।।-
"कविता"
जियां
बोरियां हु लदू-पदु
झाड़की ने फंफेडया हूँ,
तड़-तड़, तड़-तड़, तड़-तड़
झड़े है बोरिया।
बियां ही
मने फंफेडया,
झड़ सी शबद
अर बां शबदां री बन सी कविता।
क्यूंके कविता समायोड़ी है मेर'अ
रग-रग माय।-
देर से ही सही पर वीराने में प्रभात तो हुई।
छोटी ही सही पर एक नई शुरुआत तो हुई।।-
ये महोब्बत आशिकों की नींद, सकूँ, चैन
और भी पता नहीं क्या क्या निगलेगी,
किसी को अपने प्यार पर वाह वाह तो
किसी की प्यार में आह निकलेगी।
खुशकिस्मत है जहां में वो हुआ इश्क मुकम्मल जिनका,
वरना बिछड़ कर महोब्बत में
किसी की डोली किसी की अर्थी निकलेगी।-