लकीरों की साज़िश देखी जो मैंने
खुद से मुहब्बत पूरी निभाई
रुसवाई का सिलसिला यूं बना
खुदाई मुझे जिस तलक ले गई।
अश्कों ने समेटे सीने के खंजर
घावों को बाबस्ता सीता गया
दर्दों पे अपने कफ़न डालकर
मुस्कराता हुआ फिर मैं जीता गया।
आए थे वो तलाशा मुझे
गिरवी जब था रुलाया ही क्यूं
बामुश्किल छुड़ाया था अपने को हमने
तुम्हें भी तो कितना बताया था हमने
हमारी तो कीमत कौड़ी लगायी
वजूद को ऐसे मिटाया था तुमने।
मुझे तुमसे कोई शिकवा नहीं है
कि दस्तूरे जीवन दिखाया जो तुमने।
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