ViSomQuotes   (सोमांशु विश्नोई 'मुसाहिब)
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Joined 12 September 2018


Joined 12 September 2018
10 OCT 2024 AT 14:24

लोह-स्टील पिघलाकर जिसने
इस देश को हीरा बनाया है,
जिस महापुरुष के आगे "FORD"
कुछ पल भी नहीं टिक पाया है।
एक जीवंत आत्मा लिए आप
जीवन से जीत गए आख़िर,
और हार गए वो सभी कुटिल
जितनो ने दम दिखलाया है।

एक निष्छल मन वाला स्वरूप
जीवन में आपने अपनाया,
और स्वच्छ, सरल आभा से विश्व में
व्यक्तित्व का परचम लहराया।

व्यापार व प्यार के समावेश का
आपसे दर्शन मिलता है,
और प्रतिद्वंदी भी नतमस्तक
होकर आपके संग-संग चलता है।

रत्नों को पिघलाकर भी अब न
इतना प्रकाश जल पाएगा
और लाख तलाशे जौहरी, लेकिन
आप-सा "RATAN" नहीं मिल पाएगा।

आपके गुण-ओ-प्रतिभा के आगे
शब्द भी सहमे रहते हैं
इसलिए तो हम सब मिलकर
आपको "TATA" कहते हैं।

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14 AUG 2024 AT 6:15

....

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22 JUN 2022 AT 0:39

प्रेम व्रत

मेरा प्रेम! तुम्हारे लिए वृत्ताकार है,
आरंभ से अंत तक...!
किन्तु इसकी चाप;
अधीन है
तुम्हारी प्रेम त्रिज्या के।

(शेष अनुशीर्षक में)

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8 NOV 2021 AT 21:00

कुछ चीज़ें अकारण ही होती हैं शायद
जैसे तेरा मेरे लिए इंतज़ार...है ना!

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1 NOV 2021 AT 20:34

कौन कहता है कि मुहब्बत हुस्न का सुबूत मांगती है,
उसकी सांसों की महक ने हमको इश्क़ सिखा दिया॥

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16 OCT 2021 AT 8:50

A loving woman is the lovely one
When I met you I learnt to love❤️

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6 JAN 2021 AT 10:16

तुम दिन का प्रकाश नहीं,
ना लंबी अंधेरी रात हो।

तुम भोर की सुर्ख लालिमा,
साँझ की मधुर बेला हो।

क्या इस मिलन की उपमा दे सकेगा कोई?
क्या इस संगम को रेखाओं में विभाजित किया जा सकता है?
नहीं...!
तुम ही तो इस सौंदर्य की रचयिता हो।
अत्यंत मोहक, सुगंधित, पवित्र, कोमल, चंचल, अविरल तरल...कह तो सकता हूं तुम्हें; किन्तु तुम इन सबसे परे, अंत:मन के निर्वात मंडल में विचरण करती और कांतिमय हृदय के क्षीरसागर में गोते लगाती सिर्फ एक रूप हो!
तुम "साहिबा" हो - तुम "साहिबा" हो।

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12 MAY 2020 AT 20:07

तू कभी मरा नहीं,
तेरा परवाज़ आज भी हर दिल में ज़िन्दा है।
तेरी ऊंचाई कोई नाप नहीं सकता,
तू फड़फड़ाता "नादान परिंदा" है ॥

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4 MAY 2020 AT 22:09

क्या करूँ बयां कोई लफ़्ज़ नहीं,कोई बात नहीं बताने को।
पर लगे है अभी बाकी रही, मेरी आरज़ू तुझे जताने को॥

तेरी रेखाओं को छू ना सका, ना अंखियों को तेरा दर्श हुआ।
हाँ आज सिहर उठा है मन, तेरी बाँहों में बस जाने को॥

तेरी नर्म-सी बातों की खुशबू, कभी तल्ख ताबिश झुंझलाहट।
मैं चाहूँ तू अता करे मुझपे, वो रंग सभी बरसाने को॥

तेरा दर्द ओ' ग़म मेरे दिल को, करता बेचैन है ज़ार ज़ार।
तेरा मीत नहीं हमनफ़स हूँ मैं, ले चल मुझे हमसफ़र बनाने को॥

तुझे इल्म नहीं तेरी जान की, तू जान है मेरी जान की।
तेरी जान के सदके जाएगी, मेरी जान ज़मी से जाने को॥

अब चश्म में आब नहीं बाकी, मेरे लबों की प्यास बुझाने को।
ऐं सनम मेरे तू लौट भी आ, सांसें हैं चली रुस जाने को॥

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11 APR 2020 AT 12:46

तेरे अश्कों का हर मोती पिरो लेते हैं हम;
अपने अश्कों के धागों में,
तुम ही बोलो इससे ज्यादा तुमको चाहने की;
और चाहत क्या होगी...?

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