कश्ती थी जब मझधार में हवाओं ने जालिम ख़ता किए
तूफा़ं ने रस्ते दिये मुसलसल जन्नत नजर आ ही गयी|
दीपक को हवाओं से ग़र हुनर है बचाने का
रोशनी लड़खडा़ए कहीं पर बुझ नहीं सकती|
हम होश में मदहोश थे रब की जो शर्त मुझसे थी
दामन की आग लपटों ने हवनकुण्ड का रुख़ किया|
मैं पैदल थी, बद् घोडो़ं पे, लक्ष्मण रेखा न पार हुयी
बर्छी- भाले गुमदिशा हुए फिर तो बस जयकार हुई|
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जा़म ए इश्क़ की तासीर खु़श्बूदार है
वो खुशबू भी जीने का सब़ब बनती है|-
आई थी सपनों में अभी वो नूर बन के,
जिन्दगी अब हसरत के सिवा कुछ भी नहीं|-
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई
वर्षों से हम भाई-भाई
आतंकी भड़काते हैं
नेता भी बहकाते हैं
जनता की लाशों पर दोनों
स्वसाम्राज्य बनाते हैं
जनहित और देशहित ये है
सच की हम पहचान करें
न्याय दिलाने की खातिर हम
भाई हेतु बलिदान करें
जिसने जो भी खोया है
उसके हक का भी सम्मान करें|
साथ अगर हम सब आएंगे
ये दोनों भी डर जाएंगे
तीन जाति गर होगी केवल
जनता, आतंकी और ये नेता
जुटकर हम फिर इन दोनों की
खूब खैर लगाएंगे|
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We made strategy to lock ourselves together forever....just to find that the whole universe and our parents conspired for the same 😜🌹🌹
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That I fear if world will admire you.
Because today's world recognizes fake only.-
an enthusiastic journey taking us to the destination supreme.
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