हर खुशबू रूह-ए-मयस्सर -ए-ततहीर
मुमकिन नही, वो पहली पहल इजहार-ए-तासीर हु-ब-हु
इत्र सा महके गैर किसी जुल्फों के साये में मुमकिन नही।-
" खानाबदोश "
मैं इक बून्द जिस सागर का वो सागर अबतक पा न सका !
हर खुशबू रूह-ए-मयस्सर -ए-ततहीर
मुमकिन नही, वो पहली पहल इजहार-ए-तासीर हु-ब-हु
इत्र सा महके गैर किसी जुल्फों के साये में मुमकिन नही।-
महाकाव्य के कोख में पल रहे भ्रूण सरीखे
एक नन्हा सा नज़्म दम तोड़ दिया !
©rahulbandhan-
अनुसंशा हो गया
एक होने कि बात फिज़ूल हो गया
मंत्रिमंडल में पारित हुआ
सदन व राज्यपाल तक जाएगा विधेयक
फिर केंद्र तक...
तब तक भ्रम में रहो
की सबकुछ ठीक हो जाएगा..-
धुएँ कि फितरत है हवा में घुल जाने का
सब्र कर उदासियों के परत से रोशनी छन्ने का..-
कभी किसी का फेवरेट मत बनो
गर बनो भी तो
तालुकात में दूरियाँ लाज़िम रखना-
संवाद हममे टूटा है
मालूम है मुझे भी उसे भी
ईल्म भी है क्या उसे
मस्तिष्क कि तंत्रिकाओं में
कई बातें कही-अनकही अब भी महफ़ूज़ है !-