लगा के "आग" शहर को,"बादशाह" ने कहा, उठा है आज दिल में "तमाशे" का शौक बहुत, झुका के सर सभी "शाह-पस्त" बोल उठे, "हुजूर" का शौक "सलामत" रहे, "शहर" तो और भी बहुत हैं..!!!!
दुनियां के रीति रिवाजों से आजाद हूं मैं..... तन्हा गलियों का बादशाह बेताज हूं मैं...... दुनियां में इक नये दौर का आगाज हूं मैं...... सुनना चाहे जिसे हर कोई ऐसा राग हूं मैं......
"इतिहासकारों" को विशाल इमारतों के लिए, याद रहे जिस "काल" में इमारतें बनी थी उस काल के "बादशाह के नाम", पर "इमारतों" को तो याद होंगे जिसने वो इमारतें बनाई बस उन "शिल्पकारों के नाम"..!!! :--स्तुति