ऋषिकेश   (✍️ऋषि (भारतर्षि)🔱)
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Joined 21 February 2020


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Joined 21 February 2020
21 APR AT 21:53

"Complaints but, I still chose to visit Iron Aunty's shop to support her work!"
💅🎀🔆🐾🍁🌷🔱
तो हफ्ते के निकलते ही, शनिवार या रविवार को, मेरे कपड़े धोने की बारी आती।
फिर दोपहर तक कपड़े सुखते और बाद में उनकी इस्त्री करवाने की बारी आती।
🔱💅🎀🔆🐾🍁🌷
सुनता था मैं इस्त्री करने वालों के अफसाने मानो उनकी शिकायत सी लगती थी।
कहते थे मेरे मित्र कि वो ठीक इस्त्री नहीं करती थीं; तो ये हिदायत सी लगती थी।
🌷🔱💅🎀🔆🐾🍁
तो सुलगती थी कुछ सवालों के जवाबों के चाहत की आग,जेहन के खुले बाग में।
मुझे भरोसा नहीं होता मित्रों की बात में, मानो सुनते ही भस्म होते थे वो, आग में।
🍁🌷🔱💅🎀🔆🐾
शिकायतें सुनने के बावजूद भी, मैं उन्हीं आंटी के पास इस्त्री कराने को जाता था।
रहा होगा उनके कार्य में कोई खोट; पता नहीं; मुझे तो कतई नज़र नहीं आता था।
🐾🍁🌷🔱💅🎀🔆
मैं देखता, वो दो छोटे बच्चों की माँ कभी अकेली तो कभी पति संग काम करतीं।
जब भी उधर से गुजरता था, वो अक्सर मशरूफ दिखतीं, वो कम आराम करतीं।
🔆🐾🍁🌷🔱💅🎀
उनके रोजगार का जरिया बन्द मत हो, यही सोच शिकायतों के बाद भी मैं जाता।
मेरा उन्हें देखने का नज़रिया भिन्न था, खुशी थी,इस रोजगार से उनके पैसे आता।

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20 APR AT 12:54

✍️Sometimes you miss someone & you get the phone call immediately!✍️
🍁🔆🌷🍂💅🐾✨🎀🔱
अचरज होता है; कभी मिनट गुजरते ही, अचानक उनका फोन कॉल आता है।
संध्या के पश्चात जब जब मेरे मन में कभी अचानक ही उनका ख्याल आता है!
🔱🍁🔆🌷🍂💅🐾✨🎀
कभी दिन में भी दोपहर में भी यही हाल होता है, हाल-ए-दिल बताऊँ कैसे!
कभी विस्तृत कभी संक्षिप्त वार्ता पश्चात वार्तालाप खत्म होती, पहले जैसे।
🎀🔱🍁🔆🌷🍂💅🐾✨
तो सोचता हूँ ध्यान लगाकर कि ऐसे क्यों होता है सोचकर, सवाल आता है।
मशहूर वतन के मशरूफ जेहन में शब्द रहते, एक नाम महाकाल, आता है।
✨🎀🔱🍁🔆🌷🍂💅🐾
कभी ईश्वर की अनुकम्पाओं का असर सोच, मन ही मन मुस्कुरा भूल जाता।
तो कभी ब्रम्हाण्ड के चमत्कारिक पदार्थ का चमत्कार समझ, मैं भूल जाता।
🐾✨🎀🔱🍁🔆🌷🍂💅
देखें तो ऐसे वाकये रोज आए दिन ही होते रहते थे, इन्हें भी देखना आम हो गया।
उनका, इर्दगिर्द कहीं न कहीं पर उपस्थित होना; सहसा देखना भी आम हो गया।
💅🐾✨🎀🔱🍁🔆🌷🍂
धीमे पैरों से चलकर, नज़रों के सामने आतीं, और देखकर तुरंत वापस हो जातीं।
कभी व्यस्त दिखाई देतीं दूर, तो कभी बगल में आ बैठतीं और खुद में खो जातीं।

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14 APR AT 11:18

✍️"The pigeons roaming freely here and there knew that work is worship!"
🐾💅🥀🔱🌷🍁🎀
रूक रूककर, दिख जो रहे थे ऊपर, कभी उड़ते हुए स्वच्छंद आसमान में!
वहीं, कभी भटकते हुए भी कुछ नज़र आ रहे थे कबूतर, नज़रों के सामने।
🎀🐾💅🥀🔱🌷🍁
नीचे जमीन पर दौड़ती गाड़ियों को ऊपर से वो भी देखते, तो पीछा करते।
कुछ दूर तक संग संग उनके, दूर तक जाते, वो थकते नहीं थे पीछा करके।
🍁🎀🐾💅🥀🔱🌷
वापस जब वो लौटते घर को, वो आकर गूटर गूं करते थोड़ा विश्राम करते।
उन मन्दिरों की छतों पर भी रहते जहाँ भक्त कभी श्रीकृष्ण, श्रीराम करते।
🌷🍁🎀🐾💅🥀🔱
अप्रैल की तेज गर्मी दिनबदिन अपनी प्रचंडता की ओर बढ़ती दिखाई देती।
कबूतरों की झुंड इस गर्मी में बाहर उड़ती व कभी दाने चुगती दिखाई देती।
🔱🌷🍁🎀🐾💅🥀
छोटे बच्चों का ध्यान रखते हुए, ठीक मनुष्यों की तरह परिश्रम करते रहते।
क्या फर्क पड़ता और पड़ता भी तो थोड़ा! आदत हो गई गर्मी सहते सहते।
🥀🔱🌷🍁🎀🐾💅
अपनी आदत से मजबूर इन कबूतरों का यूं विचरण जैसे आदत बन गई थी।
पता था कर्म ही पूजा है इन्हें भी शायद, ये कर्म जो अब इबादत बन गई थी।

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9 APR AT 19:58

✍️"The unwavering dedication to immerse oneself in the realms of reading, writing, explaining, experimenting, and experiencing is truly awe-inspiring!"✍️

🌷🎀🔱💅🐾🍁
In the day's brightness,
under the tree, in the light sunlight.
He likes to read write-ups!
He wants to sit and loves to write.
🍁🌷🎀🔱💅🐾
The pencil and papers,
Both are busy now a days.
Both are exhausted.
It is true, the history says.
🐾🍁🌷🎀🔱💅
The long history of writing!
That explains struggles and fighting.
Struggles! struggles of the days at beginning,
about continuous efforts, night, day, evening.

💅🐾🍁🌷🎀🔱
Table inside the room, yes, it prays
and keeps asking so many questions!
It is changing its mood as always
with contrasting facial expressions!
🔱💅🐾🍁🌷🎀
The table is tired, but inspired.
It has energy, it is not retired!
Table is asking in this summer, under the tree!
"Dear, when exactly you are making me free!"
🎀🔱💅🐾🍁🌷
Finally at the end, the dear replied,
In the soft tone about his busiest zone!
Bones of his body were about to take rest!
But he was obsessed towards writing the best.

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6 APR AT 8:01

"Troublesome Days In Old Age!"
🎀🍁🐾
अन्दर से मानो अत्यन्त दुःखी थीं वो!
बिखरे हुये थे बाल उनके, अस्तव्यस्त थे।
फिर भी वो रोज मुखड़े पर, हल्की सी तनिक मुस्कान लिए!
🔱🎀🍁
अपनी नातिन के संग खूब काम करतीं!
उम्र भी अब सत्तर पार कर गई थी उनकी!
वो फिर भी काम करतीं, चूंकि दिक्कत उन्होंने पहचान लिए।
🐾🍁💅
बेटी जो अपने चारों बच्चे छोड़ गई थी उनके साये तले!
सोचकर कि यहीं ये सभी खिलें, फूलें, फलें!
💅🍂🔱
फिर आगे, उनकी बेटी ने कहीं और नये घर में दूसरी शादी कर ली।
पता नहीं क्यों! इस घटना को अचानक ही अंजाम दिए।
🎀💅🐾
तो सत्तर की उम्र में अपनी बेटी के बच्चों की परवरिश का भार;
इनके उद्धार के वास्ते, उन्होंने अपने कंधों पर ही थाम लिए।
🐾🍁🔱
कोई दूधमुंहे थे बेचारे, किसी ने अभी अभी ही थोड़ा बोलना सीखा था!
चारों नन्हे थे, दो को छोड़, बाकी दो ने तो अभी मुँह खोलना सीखा था।
🍂🍁🎀
ग्यारहवीं की कक्षा में गणित का छात्र मैं, उन दिनों अवकलन, समाकलन करता।
गाँव की चहारदीवारी के मध्यस्थ मैं, इन घटनाओं का भी विस्तृत आकलन करता!
🔱🐾💅
बेटे बेटी तो नहीं, आज यही बच्चे बड़े हुए तो उन्हें माँ बाप समझकर पाल रहे थे।
उनके परवरिश का कर्ज था मगर ये फर्ज भी तो था; जो आज उन्हें संभाल रहे थे।

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2 APR AT 8:56

"Elders used to take decisions for critical matters in the Village!"
🌷🍁🍂🐾💅🔆🎀🔱
सावधानी से,चतुराई से, सूझबूझ से, समझदारी से आगे कदम बढ़ाते।
बैठक सी लगती लोगों की भीड़ बरगद के नीचे,जो दूर से नज़र आते।
🔱🌷🍁🍂🐾💅🔆🎀
आए दिन कहीं गुपचुप,कभी चुपचुप राहों पर बात होती चलते चलते।
कभी छिप-छिप, कहीं चुपचाप चौराहों पर बात होती घर से निकलते।
🎀🔱🌷🍁🍂🐾💅🔆
समाधान हो न हो, समाधान नहीं होने की समस्या का समाधान पहले!
करने तो होंगे ही; निराकरण के लिए जरूरी है! तो हो सावधान पहले!
🔆🎀🔱🌷🍁🍂🐾💅
वहाँ जब निर्णय होते तो,उसमें गाँव के बड़े ही, बड़े बड़े फैसले करते।
आती जब बारी वयस्कों की तो बड़े समर्थन करते उनमें हौसले भरते।
💅🔆🎀🔱🌷🍁🍂🐾
गाँव की समस्याओं के निराकरण,कम आबादी में,गाँव में ही हो जाते।
पर बैठकों के आयोजन बहुत कम होते, और समस्याएँ हर रोज आते।

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30 MAR AT 21:24

"Being kind-hearted leads us to always think well of everyone!"
🍂💅🍁🐾🎀🔆🌷🔱
पर निकल आए हैं तसव्वुर के भी,उसे हुस्न-ए-महताब पर भी शक है।
रूख़-ए-महताब है नेक है वो,उसकी क्या मजाल तुम्हें गुमनाम कर दें।
🔱🍂💅🍁🐾🎀🔆🌷
जुर्रत नहीं हो सका उनसे कभी, कि वो गुप्त बातों को सरेआम कर दें।
नामी-गिरामी लोगों को लाकर सड़क पर खड़ा कर दें, बदनाम कर दें।
🌷🔱🍂💅🍁🐾🎀🔆
नौबत तो वैसे बहुत कम ही आई, फूल बिखरने की राहों पर, फिर भी!
कभी हिम्मत नहीं हुई उनकी, कि राहों पर, काँटों का इन्तज़ाम कर दें।
🔆🌷🔱🍂💅🍁🐾🎀
देखा है बहुत उठते हैं जुर्म के विरूद्ध उनके हाथ, और पाँव भी उनके।
कि उनकी कभी बस चले और जरूरत पड़े तो वो चक्काजाम कर दें।
🎀🔆🌷🔱🍂💅🍁🐾
जमीन से उठें हैं,देखकर लगता है जिस तरह बड़ों को प्रणाम करते हैं!
वो विनम्र हैं, प्रेम की समझ है उन्हें, वे चाहें तो सभी को सलाम कर दें।

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28 MAR AT 5:02

"Sometimes the Eyelashes also reveal the condition of the Heart!"
🌷💅🐾🍂🍁🔱🎀
किसी आस में, नदी के ठीक किनारे ही पास में वह मुन्तज़िर बैठा था।
कभी कहता वो "हूँ उदास मैं, कभी बिंदास मैं",आज वह तीर बैठा था।
🎀🌷💅🐾🍂🍁🔱
हाँ, सवालों की फेहरिस्त, मानसपटल पे जो ऊफान ले रही थी उसके।
वो देखता भी, समस्याओं की जड़ों में उनके काफी अंदर तक घुस के!
🔱🎀🌷💅🐾🍂🍁
मुसलसल दुश्वारियों का सामना कर करके, इनकी जैसी लत लगी हो।
समाधान के जरिये भी मिल रहे थे, समाधान की जैसे आदत लगी हो।
🍁🔱🎀🌷💅🐾🍂
ऋतु परिवर्तन का आभास जैसे होता ही न हो उसे,अब समान लगती।
सुबह की ठंडक, दोपहर की गर्मी, संध्या की उमस,सब समान लगती।
🍂🍁🔱🎀🌷💅🐾
बीच बीच में, उनके अफ़्सुर्दा मुखड़े पर, तबस्सुम की झलक दिखती।
कभी गम व खुशी! इन्हें बयां करती उनकी आँखों की पलक दिखती।

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26 MAR AT 21:49

"The water shortage during summer days is becoming critical!"
🍁💅🔆🎀🐾🔱🍂🌷
यूं दोपहर की कड़ी धूप में निर्जलीकरण से,इस देह का निश्तेज होना।
ठण्ड में धूप की चाह में धूप लेता था बड़े देर से तो ऐसे निश्तेज होना।
🌷🍁💅🔆🎀🐾🔱🍂
कभी भाता था, रास आता था, जाड़े में धूप का मुसलसल तेज होना।
बसन्त में, ग्रीष्म में यही ज़रा कष्टकारी नज़र आता है ऐसा तेज होना।
🍂🌷🍁💅🔆🎀🐾🔱
कहानियों में भी जिक्र होते थे गर्मियों के किस्से, वे भी यही कहती थीं।
आए दिन अखबारों में भी गर्मी को लेकर, खबरों की तादाद रहती थी।
🔱🍂🌷🍁💅🔆🎀🐾
कभी मनोहर दृश्य गर्मियों के, गाँव में देखने, निकट से खूब मिलते थे।
शहरों में ये कहाँ मिलेगा! गाँवों में वहाँ तो बंजर में भी फूल खिलते थे।
🐾🔱🍂🌷🍁💅🔆🎀
शहरों में डामरीकरण से जल की समस्या भी विकराल रूप ले रहा है।
बैंगलोर भी समस्याग्रस्त है कई जगहों पर, जमीन पानी नहीं दे रहा है।

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23 MAR AT 22:10

"Eating Meat Directly shows carelessness towards Animal Life!"
🌷🍁🎀💅🔱🍂🐾
उन्हें पता लगा तो लगा कि लगेंगे फूल बगिया में एवं दुश्वारियां खत़म!
खुशियों का आगमन भी होगा स्वच्छता के चलते गंदगी रहेगी हरदम!
🐾🌷🍁🎀💅🔱🍂
ज़िन्दगी में हरपल खुशी की आशा हो तो भी कभी न करना ये सित़म!
कि बस ऐसे सोचते ही मत रह जाना कि निराशा हो गई पूर्णतः खत़म।
🍂🐾🌷🍁🎀💅🔱
दिन, दोपहर या रात्रि की बेला में, उस ओर अन्तत: कब बढ़ेंगे कदम?
देखते हैं उदाहरण,ज्यादातर स्वच्छता को लेकर जागरूक नहीं हैं हम।
🔱🍂🐾🌷🍁🎀💅
इन्सान जो आजकल जानवरों को मारकर खाने का आदी हो चुका है!
भूल जाता है उन गंदे घरों को माँस खरीदते वक्त, वो आदी हो चुका है।
💅🔱🍂🐾🌷🍁🎀
लालच में इन्सान क्या क्या नहीं करता, बेजुबान जानवरों को मारकर!
मक्खियाँ हटाकर माँस खाता है, जानवर जान देते हैं अन्ततः हारकर।

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