सामान बांधो, अब चलो ग़ालिब,
अब इस मुहब्बत की बस्ती में वो बसती नहीं...!-
कूचे को तेरे छोड़ कर
जोगी ही बन जाएँ मगर
जंगल तेरे, पर्वत तेरे, बस्ती तेरी, सहरा तेरा-
लौट आया हूं शायरो की बस्ती में
अब कहो दिल का दर्द सुनाऊं
या तेरी यादों की खुशबु फैलाऊ-
शहर वालों जरा सिद्धत से पेश आया करो।
यहां पर जो बस्ती है गांव वालों की हस्ती है।-
हम गुम हो गये,
आधुनिकता के मस्ती में
अब कहाँ मिलता है,
सावन के झूले बस्ती में-
उजाड़ दी तमाम बस्ती उसने गांवों की,
वो अब ऊंचे महलों में सुकून ढूंढा करता है !-
कितने सच, कितने अफ़साने,
कैसी ये रेखाओं की बस्ती है.!
वही मुकम्मल है ताने बाने
जो ये किस्मत बुना करती है...!!-
वो रेत निकलती हाथों से,
इन्हें चाह के भी ना रख पाऊं।
दरिया-ए-वक़्त में बह के मैं,
क्यूँ साहिल से बिछड़ा जाऊं।
सवालों की अंधेरी बस्ती में,
अब रोशनी कहाँ लाऊँ।
ना मैं पूछुं..ना मैं बोलूँ ,
सब छोड़ यूँ ही लिखता जाऊं।।-
जनाब बेवकूफों की बस्ती में रहने वाले
लोगों से हम सीखने की उम्मीद नहीं करते-