Babu Gangiya   (✍बाबू गांगिया© "अदम्य")
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Joined 6 November 2017


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7 FEB 2020 AT 11:44

अकेलेपन मे, नाम से पुकारा गया में
अंधेरों से बेहतर मुझे कोई नही जानता

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2 FEB 2020 AT 12:51

चाँद अधूरा सजता रहा पुरा होकर सिमट गया
और ईस परिक्षेप की रेखा उसे अंधेरों में ले गई

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2 FEB 2020 AT 0:03

जो संसार की व्यथाओं में विलीन है
उस धरा और नभ के मध्य प्रेम मौन है

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14 OCT 2018 AT 9:24


लगें जैसें की हिंदी का श्रंगार हो तुम
वर्ण व्यंजन ध्वनि सा आधार हो तुम

चाँद की अलसायी हुईं उन आँखों में
रंगीन,सारा का सारा निखार हो तुम

दरीचा आफ़ताबी, आसमानी आँगन
सतरंगी गिरे वो हल्की फ़ुहार हो तुम

क्या कहूं में, तुमको हो शख़्सियत क्या
बार बार पढ़ें जिसे वो अख़बार हो तुम

जब जब पढ़ा मैंने तुमको,तुम्हीं से तो
लगा हिंदी का असल घर बार हो तुम

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1 FEB 2020 AT 13:36

सूख गया समंदर तो
किनारा ही रह जाएगा

जो अपनो से तृप्त है
खारा ही रह जाएगा

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1 FEB 2020 AT 8:48

माँ-बाप की शाख़ छोड़कर कुछ 'अनक्ष'
प्यार से वफ़ा की उम्मीद लगाए बैठते है

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31 JAN 2020 AT 23:17

वजूद पिता ने भी किस तरह से खंगाला है
बिगड़ें बेटें है औऱ उसने बेटियों को संभाला है

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26 JAN 2020 AT 12:06

एक औऱ आज़ादी बाहर से मिली है
एक आज़ादी अंदर मिलना चाहिए

देश को फिर तरक़्क़ी विकास चाहिए
तो देश भृष्टाचार से मुक्त होना चाहिए

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22 JAN 2020 AT 22:02

उलझा है ज़माना धर्म ज़ात की पाबंदियों में
ज़मी पे इंसान खुद का भगवान जो हो गया है

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12 JAN 2020 AT 10:25

साँसों के शोर पर,
साँसों का जोर है


बाहर दिखता हूं में,
अंदर कोई औऱ है

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