तुझसा खूबसूरत
मुझे ना कोई लगे
नाराज़गी में तुम्हारी हँसी
जाने क्यूँ इतनी प्यारी लगे
मालूम ना था आवाज़ तुम्हारी
घर कर जाएगी मेरे दिल में
तुमसे इक दिन की भी दूरी
जाने क्यूँ मुझे सितम गढ़ लगे
मेरे लिए तुम्हारी नज़रों में
बस प्यार ही प्यार है समाया
तुम्हें खिज़ा कर मुझे प्यार जताना
सुनहरा बचपना सा लगे
देख लो ये आँखें
बस ढूँढता है तुम्हें हर ओर
तुम्हें पता है मुझे तुम्हारी
बाहों का घेरा संसार सा लगे
होती तो है इच्छा की
मैं भी तुम्हें इक भेंट दूँ पर
तुम्हारी मुस्कान में जीना
मेरी ज़िन्दगी मुझे उपहार सा लगे-
मत करो इतना ग़ुरूर अपने हुस्न पर
यूँ ही इतनी हसीन नहीं हो तुम
इन सफ़ेद सफ़्हों पर
जो नीली सफ़ें है
उन नीली सफ़ों के बीच
गुलाबी स्याही से
अपनी नज़्मों में
हर्फ़-दर-हर्फ़
'मैंने' उकेरा है तुम्हें
- साकेत गर्ग 'सागा'-
न कोई नज़्म, न कोई गज़ल लिखूंगी,
निगाहों में कैद तेरी मुस्कुराहट लिखूंगी।
अल्फ़ाजों को तो समझ लेगा ये ज़माना,
तेरे लिए पहनी चूड़ियों की खनक लिखूंगी।
शोर भी सुन के सबने अनसुना कर दिया,
जो तुमने समझी, मैं वो खामोशी लिखूंगी।
अरसा हो गया हमारे नैनों को टकराए हुए,
झरोखों से झांकती आंखों का इंतजार लिखूंगी।
-
ख़ुदकुशी से पहले
हर शख़्स लिखता है इक नज़्म
गहरी, उदास, खामोशी भरी
क्या कोई सुन पाता है?-
दुनिया की
सबसे बड़ी नज़्म
महाभारत
हिंदुस्तान में
लिखी गयी।
जिसमें
1 लाख
से भी ज़्यादा
शे'र हैं।-
क्यों फ़ेरा है मुझसे चेहरा... गुस्सा हो!!
आंखों का क्यूँ रंग है गहरा.. गुस्सा हो!!
नहीं करोगे प्यार की बाते.. गुस्सा हो!!
काट सकोगे तनहा रातें.. गुस्सा हो!!
बोलो कैसे तुम्हें मनाना.. गुस्सा हो!!
अच्छा ये भी नहीं बताना.. गुस्सा हो!!
छोड़ दिया है खाना वाना.. गुस्सा हो!!
मान भी जाओ चलो न ज़ाना.. गुस्सा हो!!
आँखों से क्यूँ लुटा खज़ाना.. गुस्सा हो!!
होठों को क्यूँ पड़ा चबाना.. गुस्सा हो!!
सुनो तो.. तुम सबसे न्यारे हो.. गुस्सा हो!!
गुस्से में लगते प्यारे हो.. गुस्सा हो!!
चलो बताओ क्यूँ रूठे हो.. गुस्सा हो!!
कह दो न कि "तुम झूठे हो".. गुस्सा हो!!
कहो तो मैं अब कान पकड़ लूँ.. गुस्सा हो!!
बाहों में मैं तुम्हें जकड़ लूँ.. गुस्सा हो!!
आ भी जाओ लौट के जाना.. गुस्सा हो!!
इतना क्यूँ हमको तड़पाना.. गुस्सा हो!!
दूर गगन में बने सितारा.. गुस्सा हो!!
आओगे क्या नहीं दुबारा.. गुस्सा हो!!-
कब जाना है दफ़्तर को, किस वक़्त घर को आना है
सुखा देना है आंखों में या अश्कों को बहाना है
कहाँ पर बाग है गुल का, कहाँ पर क़ैद-ख़ाना है
फासला रख के मिलना है या उनसे लिपट जाना है
हाँ, मैं अक्सर भूल जाता हूँ।।-