दिल्ली के नवाब साहब और लखनऊ का रिक्शावाला
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गमों में भी बना रहूं मैं नवाब,
अगर वो पूछे कि कैसे हो जनाब।
बस एक इसी बात का है मलाल,
बाकी सब है कमाल।-
मुफ़लिसी ने घेर रखा है काफ़ी सोहरातों से
वरना नवाब हम भी बने हैं कई महफिलों के-
पढ़ोगे लिखोगे हो जाओगे ख़राब...
खाओगे पीयोगे हो जाओगे नवाब !!!
नन्दिनीप्रिया-
वो शख़्स नया है, उसे शहर के क़ायदे मालूम नहीं
पीता नहीं शराब, उसे ज़हर के फ़ायदे, मालूम नहीं
लबों से लग जाय तो ये दोज़ख़ को भी जन्नत कर दे
यही सरकाए हर रुख़ से हिजाब, उसे मालूम नहीं
निगाहें शोख़ हों, बोतल हो और तन्हाई हो अगर
खुली आँखों से ये दिखाए ख़्वाब, उसे मालूम नहीं
एक कतरा भी हलक से उतरे, तो शब रौशन कर दे
जुगनूओं को भी ये बनाये आफ़ताब, उसे मालूम नहीं.
होश वालों की बस्ती में मिला करते हैं मुफ़लिस यहाँ
मयकदे में होते हैं शहर भर के नवाब,उसे मालूम नहीं-
गमों के साम्राज्य का नवाब हूं अब मैं
मुझे भीख की खुशियों की चाहत नहीं;-
कभी चेहरों में आसमां पढ़ता था,
आज आसमां की किताब पढ़ता हूँ ।
कभी गुल्लकों में खुशी जमा करता था,
आज हर खुशी का हिसाब पढ़ता हूँ ।
वजह नयी-नयी न दे दूँ,
सबकी असुरक्षा पर हिजाब गढ़ता हूँ ।
कितनों का अकेला साथी रहा,
खुद को सड़कों का नवाब पढ़ता हूँ ।
आसमां के पन्ने न सही,
ज़मीं की किताब पढ़ता हूँ ।
सड़कों पर लाल धब्बे देखता हूँ,
सब को कसाब पढ़ता हूँ ।
जवाबों को दबाकर
रहस्यों को बेताब पढ़ता हूँ ।
लंबी दूरी का साथी रहा हूँ,
सड़कों का नवाब पढ़ता हूँ ।-
बड़े हसीन लगे थे वो,
जो मिले प्यार में जवाब थे।
आज गुलामी के शिकार हैं,
जो दिल की दुनिया के नवाब थे।-